संघ प्रचारक गोपाल राव येवतीकर का निधन, सीएम शिवराज ने कहा- यह व्यक्तिगत क्षति…

समग्र समाचार सेवा
इंदौर, 1दिसंबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक गोपाल राव येवतिकर का बुधवार 30नवंबर को निधन हो गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अंतिम यात्रा में शामिल होने उज्जैन पहुंचे। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ प्रचारक ने उनके जैसे कई स्वयंसेवकों को तैयार किया और वह केवल स्वयंसेवक नहीं बल्कि एक विचारधारा थे।

स्व.गोपाल जी येवतीकर का जन्म 4 अक्टूबर 1937 में इंदौर में हुआ था। आपने विश्व हिंदू परिषद,वनवासी कल्याण आश्रम और सिख संगत आदि संगठनों में कार्य किया,बाल्यकाल से स्वयंसेवक रहे गोपाल जी 1961 में इंदौर से प्रचारक बने और अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्रकार्य को समर्पित किया।

संघ में प्रचारक के रूप में आप भोपाल, होशंगाबाद में विभाग प्रचारक रहे। 1984 के खालिस्तानी अलगाववाद के कठिन समय में संघ की योजना से आपको पंजाब भेजा गया। आप पंजाब में सिख संगत के संगठन मंत्री रहे और आपने विपरीत परिस्थितियों में सामाजिक सद्भाव हेतु पंजाब में बड़ा कार्य किया।उनके जीवन का अन्तिम दशक समर्थ रामदास के साहित्य के माध्यम से अध्यात्म के प्रचार में ही बीता ।आज प्रातः उज्जैन के संघ कार्यालय आराधना में उन्होंने अन्तिम श्वास ली ।

प्रसिद्धि परांगमुख गोपाल जी मध्यभारत प्रान्त के अनेक स्थानों पर जिला व विभाग प्रचारक रहे । भोपाल विभाग में संघ कार्य हेतु उनका लम्बा कार्यकाल बीता । आज जब संघ में कार्यकर्ताओं के दायित्व व क्षेत्र परिवर्तन की बात आती है तो उनसे वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा चर्चा की जाती है । किन्तु गोपाल जी के क्षेत्र व स्थान परिवर्तन का घटनाक्रम स्वर्गीय बाबा साहब नातु (तत्कालीन मध्यभारत प्रान्त प्रचारक) ने एक बार सहज चर्चा में बताया था ।

नब्बे के दशक में पंजाब प्रान्त में आतंकवाद चरम पर था । उसी समय हर प्रान्त से एक प्रचारक पंजाब भेजने का निश्चित हुआ । एक दिन बाबा साहब ने गोपाल जी को बुलाकर कहा कि ” गोपाल राव ! रात को सपने में गुरु गोविन्दसिंह आये थे । वे तुम्हें पंजाब बुला रहे हैं” । बाबा साहब ने बताया कि गोपाल जी ने एक क्षण की देरी किये बिना कहा कि “कब जाना है बाबा साहब ! बताइये ” और गोपाल जी ने प्रान्त प्रचारक की इच्छा को आज्ञा मानकर पंजाब में एक दशक तक विपरीत परिस्थितियों में संघ कार्य किया । बाद में मध्यभारत प्रान्त में लम्बे समय तक राष्ट्रीय सिख संगत के कार्य विस्तार के लिए उन्होंने सघन प्रवास किया ।

जीवन के अन्तिम समय तक वे कल्याण आश्रम के माध्यम से जनजाति समाज के उत्थान व गौसेवा के कार्य में लगे रहे । संघ में एक गीत गाया जाता है ” मन मस्त फकीरी धारी है, बस एक ही धुन जय-जय भारत” । गोपाल जी गीत की इस पंक्ति के पर्याय थे । अपने देश और समाज को समर्पित एकदम फक्कड़ जीवन उनका रहा ।

सात-आठ वर्ष पूर्व सहज चर्चा में उन्होंने कहा था कि ” लोग पूछते हैं कि आजकल आप क्या कर रहे हैं ? तो मैं कहता हूँ हिलते-डुलते बर्तन को हाथ लगाने का काम कर रहा हूँ” । उन्होंने इसका आशय भी समझाया कि जो कार्यकर्ता किसी कारण से नाराज हो जाता है, मैं उससे मिलकर उसकी पीठ पर हाथ रखकर उसके दुःख दर्द सुनता हूँ” । अध्यात्म में ऐसा कहा जाता है कि अपने प्रियजनों के दुःख-दर्द भी कोई ग्रहण कर सकता है ।

ऐसे कितने ही कार्यकर्ताओं का दुःख-दर्द स्वयं लेने वाले गोपाल जी के शरीर में अब शायद ओर दर्द लेने का सामर्थ्य नहीं रहा।
परमपिता परमेश्वर उन्हें अपने लोक में स्थान दें ।

Comments are closed.