भारत में वरिष्ठ नागरिकों के लिए सहज एवं गरिमापूर्ण जीवन की ओर: पेंशन न्याय के साथ नीडोनॉमिक्स दृष्टिकोण

प्रो. मदन मोहन गोयल संस्थापक, नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट एवं तीन बार कुलपति

सभ्यता की नैतिक शक्ति इस बात में निहित है कि वह अपने बुज़ुर्गों के साथ कैसा व्यवहार करती है। भारत में जहां वृद्धजनों के प्रति आदर हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा का हिस्सा है, वहीं आर्थिक वास्तविकता एक चिंताजनक विरोधाभास प्रस्तुत करती है। भारत के सभी वर्गों और समुदायों के वरिष्ठ नागरिकों को सहानुभूति और गरिमा के साथ नियमित, महंगाई-सूचकांकित आय — चाहे वह पेंशन से हो या बचत से — प्रदान की जानी चाहिए और उसे कर (टैक्स) के बोझ से मुक्त रखा जाना चाहिए। यही अच्छे पुराने जीवन में आसानी   ” का सच्चा अर्थ है।

एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर और नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट (एनएसटी ) के प्रवर्तक के रूप में मेरा दृढ़ विश्वास है कि सेवानिवृत्ति तभी सुखद होती है जब व्यक्ति आत्मसम्मानपूर्वक जीने के लिए पर्याप्त साधन रखता हो। पेंशन और महंगाई राहत  पर कर लगाना न तो नैतिक दृष्टि से उचित है और न ही आर्थिक रूप से। नैतिक अर्थशास्त्र के अनुसार पेंशन “आय” नहीं, बल्कि “स्थगित वेतन” है — यह आजीवन सेवा के बदले में अर्जित अधिकार है, न कि नई कमाई। इस पर कर लगाना, उस श्रम की गरिमा पर कर लगाने के समान है जो पहले ही राष्ट्र को समर्पित किया जा चुका है।

पेंशन पर कर लगाने के विरुद्ध नैतिक और आर्थिक तर्क

नीडोनॉमिक्स  (आवश्यकताओं का अर्थशास्त्र) एक मानव-केंद्रित दर्शन है, जो नीति-निर्माताओं से आग्रह करता है कि वे ज़रूरत  और लोभ  के बीच अंतर करें। यह नीति-निर्माण में नैतिकता, सहानुभूति और स्थायित्व पर बल देता है ताकि आर्थिक न्याय वित्तीय स्वार्थ पर हावी हो सके। इस नैतिक दृष्टिकोण से पेंशन और महंगाई राहत (डीआर)  पर कर लगाना अनुचित है।

पेंशन किसी विलासिता की वस्तु नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा का साधन है, जो दशकों की निष्ठा, योगदान और उत्पादकता से अर्जित होती है। इसे कर योग्य आय मानना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि प्रशासनिक असंवेदनशीलता का उदाहरण भी है। पेंशनभोगी प्रायः निश्चित आय पर निर्भर रहते हैं, जबकि स्वास्थ्य, आवास और दैनिक जीवन के खर्च लगातार बढ़ते हैं। महंगाई उनकी सीमित क्रय शक्ति को और घटाती है, जिससे उन्हें अपनी मूलभूत आवश्यकताओं से समझौता करना पड़ता है।

जब सरकारें पेंशन और महंगाई भत्ते पर कर लगाती हैं, तो वे वास्तव में उन लोगों से राजस्व प्राप्त कर रही होती हैं जो उसे पुनः अर्जित करने में असमर्थ हैं। यह न केवल आर्थिक न्याय की भावना का उल्लंघन है, बल्कि गांधीजी के अंत्योदय सिद्धांत — अर्थात सबसे कमजोर के कल्याण को प्राथमिकता — के भी विपरीत है।

भारत की स्थितिवैश्विक पेंशन सूचकांक और घरेलू वास्तविकता

ग्लोबल पेंशन इंडेक्स 2025 (मर्सर सीएफए संस्थान ) में भारत को पेंशन की पर्याप्तता और स्थायित्व के मामले में निम्न श्रेणी में रखा गया है। यह रैंकिंग केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि उस कठोर सच्चाई को उजागर करती है जिसमें हमारे बुज़ुर्ग महंगाई, अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा और नीतिगत उपेक्षा के बीच संघर्ष कर रहे हैं।

नीति आयोग की 2024 की रिपोर्ट भारत में वरिष्ठ देखभाल सुधारवरिष्ठ देखभाल प्रतिमान की पुनर्कल्पना ” के अनुसार, भारत के 78 प्रतिशत वृद्धजन किसी भी प्रकार की पेंशन सहायता से वंचित हैं। यह तथ्य एक ऐसे राष्ट्र की सामाजिक सुरक्षा पर सवाल उठाता है जो 2047 तक विकसित भारत  बनने की आकांक्षा रखता है।

जनसांख्यिकीय लाभांश  बिना नैतिक आर्थिक योजना के शीघ्र ही जनसांख्यिकीय बोझ  बन जाता है। जनगणना अनुमानों के अनुसार 2050 तक भारत की लगभग 20 प्रतिशत जनसंख्या 60 वर्ष से अधिक आयु की होगी, किंतु हमारे पेंशन तंत्र, स्वास्थ्य सेवाएं और कर नीतियां इस परिवर्तन के लिए तैयार नहीं हैं।

गरिमापूर्ण वृद्धावस्था के लिए नीडोनॉमिक्स दृष्टिकोण

नीडोनॉमिक्स यह निर्देश देता है कि सार्वजनिक नीति को लोभ-आधारित शासन के बजाय आवश्यकता-आधारित अर्थशास्त्र पर केंद्रित होना चाहिए। वृद्धावस्था के संदर्भ में इसका अर्थ है कि सरकार को दिखावटी कल्याण योजनाओं से आगे बढ़कर नैतिक अर्थशास्त्र पर आधारित नीतियां बनानी चाहिए जो गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करें।

  1. पेंशन और महंगाई राहत  को करमुक्त किया जाए:

पेंशन और महंगाई राहत (डीआर)  धन-सृजन के साधन नहीं, बल्कि अस्तित्व और आत्मसम्मान के उपकरण हैं। इन पर कर लगाना तर्कहीन और अनैतिक है।

  1. महंगाईसूचकांकित समायोजन:

पेंशन और महंगाई राहत (डीआर)  को नियमित रूप से महंगाई से जोड़ना आवश्यक है ताकि वास्तविक आय का मूल्य सुरक्षित रहे। अन्यथा, पेंशन का मूल्य घटता रहेगा और सेवानिवृत्त व्यक्ति परनिर्भर बनते जाएंगे।

  1. वरिष्ठ नागरिक बचत योजना ( एससीएसएसका विस्तार:

एससीएसएस में निवेश की अधिकतम सीमा समाप्त की जानी चाहिए और मासिक ब्याज भुगतान की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि वरिष्ठ नागरिकों की नकदी प्रवाह स्थिति बेहतर हो सके।

  1. सार्वभौमिक पेंशन कवरेज:

नीडोनॉमिक्स आधारित नीति के अंतर्गत यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी वरिष्ठ नागरिक आर्थिक सुरक्षा से वंचित न रहे। इसके लिए संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के श्रमिकों को कवर किया जाना चाहिए।

  1. नीडोहेल्थ और नीडोहैप्पीनेस इंडेक्स:

केवल आर्थिक सुरक्षा पर्याप्त नहीं है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य, मानसिक शांति और सामाजिक जुड़ाव समान रूप से आवश्यक हैं। इसके लिए नीडोनॉमिक्स समग्र कल्याण पर बल देता है।

  1. डिजिटल और वित्तीय समावेशन:

अनेक वरिष्ठ नागरिक डिजिटल अर्थव्यवस्था से बाहर हैं। नीडोनॉमिक्स एक उद्देश्यप्रधान डिजिटल भारत की कल्पना करता है जिसमें बुज़ुर्ग सुरक्षित और सुलभ तरीके से ई-गवर्नेंस, डिजिटल भुगतान और ऑनलाइन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सकें।

राजकोषीय लालच से परेनीतिनिर्माताओं के लिए नैतिक दिशा

राजकोषीय अनुशासन की खोज में सरकारें प्रायः पेंशन को वित्तीय दायित्व मानती हैं, जबकि यह नैतिक उत्तरदायित्व होना चाहिए। नीडोनॉमिक्स इस सोच को चुनौती देता है और कहता है कि किसी राष्ट्र की सच्ची संपत्ति उसके  सकल घरेलू उत्पाद में नहीं, बल्कि उसके नागरिकों, विशेष रूप से बुज़ुर्गों के कल्याण में निहित होती है।

इसलिए आर्थिक नीतियों को नैतिक संयम  द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए — जिसे मैं शासन का नीडोनॉमिक्स कहता हूँ। नीति-निर्माताओं को यह भेद समझना चाहिए कि क्या वांछनीय  है और क्या आवश्यक । राजस्व के लिए पेंशन पर कर लगाना भले वांछनीय लगे, पर यह न तो आवश्यक है और न ही न्यायोचित।

आगे की राहभाषण नहींसुधार चाहिए

भारत की वृद्धावस्था को नैतिक विकास के अवसर में बदलने के लिए निम्नलिखित सुधार आवश्यक हैं:

  • एक राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक आर्थिक सुरक्षा मिशन की स्थापना जो सभी पेंशन और कल्याण योजनाओं का समन्वय करे।
  • नीडोनॉमिक्स-आधारित बजटिंग, जिससे वरिष्ठ नागरिकों पर खर्च को व्यय नहीं, बल्कि सामाजिक स्थिरता में निवेश माना जाए।
  • निजी एवं सहकारी क्षेत्र को वरिष्ठ नागरिक अनुकूल आवास, बीमा और स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश हेतु कर प्रोत्साहन दिए जाएं।
  • एक “ बुजुर्ग गरिमा चार्टर” तैयार किया जाए जो सेवानिवृत्त नागरिकों के नैतिक और आर्थिक अधिकारों को परिभाषित करे।

निष्कर्ष

2047 तक विकसित भारत  का निर्माण अपने बुज़ुर्गों की उपेक्षा पर नहीं हो सकता। करमुक्त पेंशन, महंगाई-संरक्षण और वरिष्ठ नागरिक बचत योजनाओं का विस्तार कोई दान नहीं, बल्कि न्याय है — एक नैतिक और आर्थिक आवश्यकता। नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट एक ऐसे भारत की कल्पना करता है जहां आर्थिक विकास नैतिक शासन के साथ संतुलित हो और वृद्धजन चिंता नहीं, बल्कि आश्वासन के साथ जीवन व्यतीत करें। अब समय आ गया है कि हम वृद्धावस्था को बोझ नहीं, बल्कि आशीर्वाद के रूप में देखें — जो सहानुभूति, नैतिकता और नीडोनॉमिक्स से सुरक्षित हो। भारत को केवल जनसांख्यिकीय लाभांश के लिए नहीं, बल्कि जनसांख्यिकीय गरिमा  के लिए भी जाना जाना चाहिए।

 

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