शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने बिहार चुनाव में हर सीट पर गौरक्षा उम्मीदवार उतारने का ऐलान

समग्र समाचार सेवा
पटना, 22 सितंबर: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक तापमान बढ़ता जा रहा है। अब इस राजनीतिक गहमागहमी में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का नया कदम और हलचल पैदा कर रहा है। उन्होंने ऐलान किया है कि बिहार की सभी 243 सीटों पर अपने गौरक्षा उम्मीदवार उतारेंगे। इस घोषणा के बाद राज्य की राजनीतिक पार्टियों में खलबली मच गई है।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद इस समय बिहार में गौ मतदाता संकल्प यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि गौरक्षा के मुद्दे पर कोई भी राजनीतिक दल गंभीर नहीं है। इसलिए, हर विधानसभा क्षेत्र में गौरक्षा के उम्मीदवार मैदान में उतारने का निर्णय लिया गया है।

गौरक्षा को लेकर स्पष्ट संदेश

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, “हमने स्वतंत्रता संग्राम में इसलिए भाग लिया क्योंकि हमें भरोसा दिलाया गया था कि स्वतंत्रता मिलने पर गौहत्या पर प्रतिबंध लगेगा, लेकिन यह नहीं हुआ। राजनेताओं ने 80 साल वादों में ही बिता दिए।” उन्होंने आगे कहा, “हमारी पहली प्राथमिकता गाय है और हमारे घर में पहली रोटी गाय के लिए बनती है। हमें गोरक्षा के लिए वोट देना चाहिए।”

स्वामी का यह भी कहना है कि “देर-सवेर इस देश में गौभक्तों की सरकार बनेगी।” उनका यह संदेश स्पष्ट रूप से बिहार में हिंदुत्व और गोरक्षा के मुद्दे को प्रमुखता देने का इरादा दर्शाता है।

सनातनी विचारधारा पर जोर

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि यह देश सनातनियों का देश है, जहाँ करीब 80 करोड़ सनातनी रहते हैं। लेकिन देश में सनातनी विचारधारा की कोई राजनीतिक पहचान नहीं है। उन्होंने कहा कि रूस, चीन और अमेरिका की विचारधाराएँ प्रबल हैं, लेकिन सनातनी राजनीति शुरू करना जरूरी है, और इसके लिए गोरक्षा प्रमुख मुद्दा होना चाहिए।

राजनीतिक असर और संभावित नुकसान

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने संकेत दिया कि उम्मीदवारों के नाम नामांकन प्रक्रिया के बाद तय किए जाएंगे। अब यह सवाल उठता है कि गौरक्षा उम्मीदवारों का मैदान में उतरना किस दल को नुकसान पहुँचाएगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम एनडीए और भाजपा को मुख्य रूप से प्रभावित कर सकता है, क्योंकि भाजपा हिंदुत्व और गोरक्षा के मुद्दे पर मुखर है।

हालांकि, सीमांचल क्षेत्र में वोटों का ध्रुवीकरण होने की वजह से यह कदम महागठबंधन के लिए भी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। ऐसे में यह चुनाव और भी रोचक और अप्रत्याशित मोड़ ले सकता है।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का यह कदम स्पष्ट करता है कि बिहार का विधानसभा चुनाव 2025 केवल राजनीतिक दलों की लड़ाई नहीं रहेगी, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर भी महत्वपूर्ण मापदंड तय करेगी।

 

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