शरद पवार की विवादास्पद स्वीकारोक्ति: सांप्रदायिक सद्भावना के नाम पर तथ्यों को बदलने की कोशिश

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,11 नवम्बर। मुंबई में 1993 के सीरियल ब्लास्ट में सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान चली गई, जिनमें ज्यादातर हिंदू समुदाय के लोग शामिल थे। इन धमाकों के दौरान महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने हाल ही में एक चौंकाने वाली स्वीकारोक्ति की है। पवार का कहना है कि उन्होंने जानबूझकर मुस्लिम समुदाय को हिंदू समुदाय के आक्रोश से बचाने के लिए तथ्यों को बदलने का प्रयास किया था। उनके अनुसार, उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में असली धमाकों की संख्या 11 की बजाय 12 बताई, जिसमें एक फर्जी धमाके की घटना मुस्लिम क्षेत्र में जोड़ दी गई।

शरद पवार ने अपने बयान में यह भी कहा कि उन्होंने जानबूझकर उस समय के आतंकवादी घटनाओं में इस्तेमाल किए गए विस्फोटकों का प्रकार दक्षिण भारत के हिंदू आतंकवादियों और श्रीलंका के एलटीटीई आतंकियों के साथ जोड़ दिया था। उनका उद्देश्य यह था कि मुस्लिम समुदाय की छवि खराब न हो और हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव न बढ़े। पवार ने इस कदम को सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने की कोशिश बताते हुए कहा कि वे चाहते थे कि हिंदू समुदाय को लगे कि धमाकों में केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि मुसलमान भी मारे गए हैं।

इस बयान के सामने आने के बाद राजनीति में विवाद की लहर उठ खड़ी हुई है। आलोचकों का कहना है कि किसी जिम्मेदार पद पर बैठा व्यक्ति अगर सांप्रदायिक सद्भावना के नाम पर जनता को भ्रमित करता है, तो यह गंभीर चिंता का विषय है। यह भी कहा जा रहा है कि यह एक तरह से पीड़ितों के साथ अन्याय है, जिनकी जान उस आतंकी हमले में गई।

इस खुलासे ने देश में यह बहस छेड़ दी है कि सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के नाम पर वास्तविकता को छुपाना किस हद तक जायज है। कई लोग इसे राजनीतिक लाभ के लिए जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करार दे रहे हैं और कह रहे हैं कि इस तरह की स्वीकारोक्ति से देश में विश्वास की कमी बढ़ सकती है।

शरद पवार के इस बयान ने न केवल उन दिनों के फैसलों पर सवाल उठाए हैं, बल्कि नेताओं और उनकी जवाबदेही पर भी नए सिरे से विचार करने की जरूरत को रेखांकित किया है।

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