समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,25 फरवरी। भारतीय जनता पार्टी (BJP) की नेतृत्व वाली सरकारों में हाल ही में असंतोष के स्वर खुलकर सामने आए हैं। महाराष्ट्र, राजस्थान और हरियाणा—इन तीनों राज्यों में पार्टी को आंतरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उसने राजनीतिक संतुलन साधते हुए फिलहाल स्थिति को काबू में कर लिया है।
महाराष्ट्र: एकनाथ शिंदे और ‘पैरलेल सरकार’ का मुद्दा
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर यह आरोप लगा कि वे सरकार के भीतर एक समानांतर सत्ता केंद्र बना रहे थे। शिंदे के शिवसेना गुट और भाजपा के बीच कुछ मुद्दों पर खींचतान की खबरें लगातार आ रही थीं।
हालांकि, बीजेपी ने स्थिति को संभालते हुए अंदरखाने शिंदे को भरोसे में लेने की रणनीति अपनाई। माना जा रहा है कि शिंदे के अधिकार क्षेत्र और निर्णय लेने की स्वतंत्रता को लेकर पार्टी नेतृत्व के साथ बातचीत हुई, जिससे मामला शांत हुआ।
राजस्थान: किरोड़ी लाल मीणा की बगावत के सुर
राजस्थान में कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने अपनी ही सरकार पर लोक कल्याणकारी योजनाओं में कमियों और प्रशासनिक खामियों को लेकर खुली आलोचना की। उनकी नाराजगी पार्टी के लिए एक चुनौती बन सकती थी, लेकिन बीजेपी नेतृत्व ने इसे बड़ा मुद्दा बनने से पहले संभाल लिया।
मीणा की नाराजगी को दूर करने के लिए
- पार्टी आलाकमान ने संवाद कायम किया
- कुछ नीतिगत बदलावों पर आश्वासन दिया गया
- मीणा को पार्टी लाइन पर लाने की कोशिशें सफल रहीं
इसका नतीजा यह रहा कि वे फिलहाल सार्वजनिक रूप से सरकार की आलोचना से पीछे हट गए हैं।
हरियाणा: अनिल विज की सरकार पर तीखी टिप्पणियां
हरियाणा के वरिष्ठ मंत्री अनिल विज ने अपनी ही सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए और प्रशासन पर सीधा हमला किया। विज की पहचान एक बेबाक और स्वतंत्र विचारधारा वाले नेता के रूप में है, और वे कई बार सरकार के फैसलों की आलोचना कर चुके हैं।
बीजेपी ने विज के असंतोष को दूर करने के लिए
- उनसे सीधे संवाद किया
- कुछ विभागीय फैसलों में उनकी राय को महत्व दिया
- उन्हें संगठनात्मक जिम्मेदारियों में अधिक शामिल किया
इस कूटनीतिक रणनीति से फिलहाल अनिल विज के तेवर नरम पड़ गए हैं।
बीजेपी की रणनीति: असंतोष को प्रबंधन में बदलना
तीनों राज्यों में बीजेपी ने असंतोष को दबाने के बजाय राजनीतिक संवाद और आंतरिक सहमति के ज़रिए इसे प्रबंधित किया। इसके तहत:
- संवाद की नीति – असंतोष जताने वाले नेताओं से सीधे बातचीत कर उनकी शिकायतें सुनी गईं।
- सत्ता संतुलन – गुटीय संतुलन बनाए रखने के लिए कुछ मामलों में छूट दी गई।
- संगठनात्मक मजबूती – असंतुष्ट नेताओं को अधिक जिम्मेदारियां देकर उन्हें पार्टी लाइन पर बनाए रखा गया।
निष्कर्ष
बीजेपी ने महाराष्ट्र, राजस्थान और हरियाणा में आंतरिक असंतोष को फिलहाल कुशलता से संभाल लिया है। लेकिन यह साफ है कि भविष्य में यह असंतोष फिर से उभर सकता है। पार्टी को अपनी रणनीति लगातार मजबूत करनी होगी ताकि सरकार और संगठन के बीच संतुलन बना रहे और असंतोष की आवाजें चुनावी नुकसान में तब्दील न हों।
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