श्री गुरुजी माधवराव गोलवलकर: संघ के विचारों को नई दिशा देने वाले महान व्यक्तित्व

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,20 फरवरी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने अपने जीवनकाल में संघ को मजबूत नींव पर खड़ा किया, लेकिन उनके देहांत के बाद संघ का नेतृत्व जिन समर्थ कंधों पर सौंपा गया, वे थे श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर, जिन्हें पूरा संघ परिवार प्रेम से ‘श्री गुरुजी’ कहकर पुकारता है। श्री गुरुजी ने संघ को एक नई गति और दिशा दी, जिसके कारण यह संगठन आज देश के सबसे प्रभावशाली संगठनों में से एक है।

श्री गुरुजी का जन्म और शिक्षा

श्री माधवराव गोलवलकर का जन्म 19 फरवरी, 1906 (विजया एकादशी) को नागपुर में उनके ननिहाल में हुआ था। उनके पिता श्री सदाशिवराव गोलवलकर उन दिनों नागपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर रामटेक में अध्यापक थे। माधवराव बचपन से ही अत्यधिक मेधावी छात्र थे।

उन्होंने अपनी सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं और अपनी कक्षा में सबसे तेज छात्र माने जाते थे। उनके शिक्षकों को कई बार यह कहना पड़ा कि जब तक कोई अन्य छात्र उत्तर न दे पाए, तब तक माधवराव उत्तर न दें। एक बार गणित के एक कठिन प्रश्न का उत्तर जब किसी छात्र और शिक्षक को नहीं आया, तब माधवराव को बुलाकर वह प्रश्न हल कराया गया।

उन्होंने केवल पाठ्यक्रम की पढ़ाई ही नहीं, बल्कि अन्य कई विषयों में भी गहरी रुचि ली। हॉकी, टेनिस, सितार और बांसुरी वादन उनके प्रिय शौक थे। नागपुर के हिस्लॉप क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उन्होंने अपने प्रधानाचार्य श्री गार्डिनर को बाइबिल के एक गलत संदर्भ पर टोक दिया था, जो बाद में सही पाया गया। इससे उनकी ज्ञान की गहराई का पता चलता है।

संघ से जुड़ाव और ‘श्री गुरुजी’ की पहचान

उच्च शिक्षा के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) जाने के बाद माधवराव का संपर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से हुआ। वे नियमित रूप से शाखा में जाने लगे। जब डॉ. हेडगेवार काशी आए, तो माधवराव ने उनसे चर्चा की और संघ के प्रति उनकी आस्था और भी मजबूत हो गई।

उन्होंने एमएससी की पढ़ाई पूरी की और मद्रास में शोधकार्य करने गए, लेकिन वहाँ का मौसम अनुकूल न होने के कारण वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में प्राध्यापक बन गए। उनके मधुर स्वभाव और प्रभावशाली शिक्षण शैली के कारण छात्र उन्हें ‘गुरुजी’ कहने लगे, और यही नाम उनकी पहचान बन गया।

संघ नेतृत्व की जिम्मेदारी

डॉ. हेडगेवार की दृष्टि में माधवराव एक अत्यंत योग्य और निष्ठावान कार्यकर्ता थे। इसलिए, 1939 में उन्हें संघ का सरकार्यवाह (महासचिव) नियुक्त किया गया। संघ के विस्तार के लिए उन्होंने पूरे देश में प्रवास किया।

21 जून 1940 को जब डॉ. हेडगेवार का निधन हुआ, तो माधवराव गोलवलकर को संघ का दूसरा सरसंघचालक बनाया गया। इसके बाद उन्होंने संघ को पूरे देश में और अधिक संगठित करने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी।

देश विभाजन और गांधी हत्या के आरोपों का सामना

1947 में भारत को आजादी तो मिली, लेकिन विभाजन का दर्द भी झेलना पड़ा। इसके बाद 1948 में महात्मा गांधी की हत्या का झूठा आरोप संघ पर लगाया गया और संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

श्री गुरुजी को जेल भेज दिया गया, लेकिन उन्होंने धैर्यपूर्वक इस चुनौती का सामना किया और संघ को सही दिशा में आगे बढ़ाया। उनके प्रयासों के कारण संघ का कार्य पूरे देश के हर जिले तक फैल गया और संगठन पहले से अधिक मजबूत हुआ।

हिंदू दर्शन और राष्ट्रवाद पर गहरी पकड़

श्री गुरुजी को हिंदू धर्मग्रंथों और भारतीय दर्शन पर इतनी गहरी पकड़ थी कि एक बार उन्हें शंकराचार्य के पद के लिए नामित किया गया था, लेकिन उन्होंने इसे विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया।

उनका मानना था कि हिंदू संस्कृति और राष्ट्रवाद को मजबूत करने के लिए संघ के कार्य में रहना अधिक महत्वपूर्ण है। उनकी विचारधारा ने लाखों स्वयंसेवकों को प्रेरित किया और संघ को विचारधारा की स्पष्ट दिशा दी।

जीवन का अंतिम चरण और निधन

1970 में श्री गुरुजी को कैंसर हो गया। उन्होंने शल्य चिकित्सा कराई, जिससे कुछ समय के लिए स्वास्थ्य में सुधार हुआ, लेकिन बीमारी पूरी तरह ठीक नहीं हुई।

इसके बावजूद वे संघ कार्य के लिए लगातार प्रवास करते रहे। लेकिन अंततः 5 जून 1973 की रात को उनका निधन हो गया।

श्री गुरुजी की विरासत

श्री गुरुजी केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा और प्रेरणा के स्रोत थे। उनके नेतृत्व में संघ ने देशभर में विस्तार किया और एक सशक्त राष्ट्रवादी संगठन बना

आज भी RSS की विचारधारा और संगठनात्मक कार्यप्रणाली में श्री गुरुजी का योगदान अमूल्य माना जाता है। उनका जीवन राष्ट्रसेवा, समर्पण और संगठन निर्माण का एक अद्वितीय उदाहरण है, जिसे हमेशा याद रखा जाएगा।

श्री गुरुजी माधवराव गोलवलकर का जीवन हमें सिखाता है कि विचारधारा और निष्ठा के बल पर एक संगठन और राष्ट्र को मजबूत किया जा सकता है। उनका जीवन और योगदान संघ और भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.