श्री हरिहर मंदिर या जामा मस्जिद? सर्वे पर सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क का तीखा बयान

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,20 नवम्बर।
संबल से समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद जियाउर्रहमान बर्क ने एक धार्मिक स्थल के सर्वे को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है। मामला श्री हरिहर मंदिर और जामा मस्जिद से जुड़ा है, जो एक विवादित स्थल के रूप में चर्चा में है। सांसद बर्क ने सर्वे को गैर-जरूरी और विवाद भड़काने वाला करार दिया है। उनका कहना है कि यह स्थान मस्जिद था, मस्जिद है, और मस्जिद ही रहेगा।

विवाद की पृष्ठभूमि

संबल में स्थित इस धार्मिक स्थल पर यह विवाद है कि क्या यह ऐतिहासिक रूप से एक हिंदू मंदिर था, जिसे बाद में मस्जिद में बदल दिया गया। ऐसे मामलों में पहले भी कई बार सर्वे किए गए हैं, जिनका उद्देश्य ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करना और विवादों का निपटारा करना है।

हाल ही में, अदालत के आदेश के बाद इस स्थल पर सर्वे की प्रक्रिया शुरू की गई। इसके तहत संरचना, पुरातात्विक सबूत, और ऐतिहासिक रिकॉर्ड की जांच की जानी है।

सांसद बर्क की प्रतिक्रिया

सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क ने इस मुद्दे पर कड़ी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा:

  1. मस्जिद का दावा: बर्क ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह स्थान एक मस्जिद था और हमेशा मस्जिद ही रहेगा।
  2. सर्वे पर आपत्ति: उन्होंने सर्वे की वैधता पर सवाल उठाते हुए इसे धर्म विशेष के खिलाफ साजिश बताया।
  3. समाज में शांति की अपील: उन्होंने कहा कि ऐसे विवाद समाज में फूट डालने और शांति भंग करने का काम करते हैं।

राजनीतिक रंग

यह मामला केवल धार्मिक विवाद तक सीमित नहीं है। यह क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति में भी चर्चा का विषय बन गया है।

  • सपा का रुख: समाजवादी पार्टी का कहना है कि ऐसे विवाद सांप्रदायिक माहौल खराब करते हैं और इनसे बचा जाना चाहिए।
  • बीजेपी का पक्ष: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इस मुद्दे को हिंदू आस्था और सांस्कृतिक पहचान से जोड़ रही है। उनका कहना है कि इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।

धार्मिक विवादों का बढ़ता चलन

भारत में धार्मिक स्थलों से जुड़े विवाद कोई नई बात नहीं हैं। हाल के वर्षों में वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि जैसे मामले भी चर्चा में रहे हैं। ऐसे मामलों में अदालत की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि धार्मिक और राजनीतिक तनाव को नियंत्रित करने का काम न्यायपालिका ही करती है।

निष्कर्ष

संबल का यह मामला धार्मिक और सामाजिक ताने-बाने के लिए एक चुनौती बनता जा रहा है। जहां एक ओर सर्वे ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करने का दावा करता है, वहीं दूसरी ओर इस पर राजनीति और भावनाओं का असर साफ दिखाई देता है।

यह जरूरी है कि ऐसे मामलों में संयम और संवेदनशीलता बरती जाए। अदालत के निर्णय का सम्मान करते हुए समाज को शांति और सद्भाव बनाए रखने की दिशा में प्रयास करना चाहिए।

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