दीपावली का महत्त्व और उसकी विशेषता

हरिओम विश्वकर्मा
“दीपानाम् आवली: दीपावली:” यहाँ षष्ठी-तत्पुरुष समास है, जिसका अर्थ है दीपों का समूह। इस दिन पूरा देश दीपों की जगमगाहट से चमकता रहता है । यह पर्व पाँच दिनों तक मनाया जाता है । जो कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुरु होकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया तक चलता है ।
1. धनत्रयोदशी (धनतेरस ) ।
2. नरक चतुर्दशी (नरक चौदश) ।
3. दीपावली ।
4.गोवर्धन पूजा ।
5. यम द्वितीया (भैया दूज) ।

आइये क्रमश: इनके बारे में जानते हैं और इनके महत्त्व को समझते हैं………।

1. #धनत्रयोदशी(धनतेरस) :- यहाँ जो धन शब्द आया है उसे भ्रम के कारण लोग रुपया-पैसा-समृद्धि समझ लेते हैं। लेकिन वास्तव में यह शब्द आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरी के लिए आया है। पुराणों के अनुसार समुद्र-मंथन के समय 14 रत्नों में से एक 14वें रत्न के रूप में अमृत कलश लिए हुवे भगवान धन्वन्तरी का प्रादुर्भाव हुआ था। यह धनत्रयोदशी पर्व उनकी ही जयंती के रूप में आदिकाल से मनाया जाता रहा है। शास्त्रों में कहा गया है “शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्” अर्थात सर्वप्रथम शरीर की ही रक्षा की जानी चाहिए। इसलिए तो आरोग्य के देवता भगवान धन्वन्तरी के पुजन के साथ हमारा प्रकाश पर्व प्रारंभ होता है।
इस दिन अकालमृत्यु के नाश के लिए घर के मुख्य द्वार पर आटे का दीपक जलाकर यम हेेतु दीपदान किया जाता है ।
#पद्मपुराण में कहा गया है :-
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां तु पावके ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति ।।

दीपदान करते समय निर्णय-सिन्धु में उल्लेखित निम्नलिखित मन्त्र पढ़ना चाहिए –
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यजः प्रीयतां मम ।।

साथ ही इस दिन औषधीय वृक्षों जैसे तुलसी, नीम, पीपल, बेल आदि के समक्ष दीप भी जलाया जाता है । आयुर्वेद के जानकर वैद्य-जन आज के दिन औषधि निर्माण और संरक्षण का कार्य भी करते हैं ।
भगवान धन्वन्तरी के प्राकट्य के समय उनके हाथ में स्वर्ण-कलश था इसलिए आज के दिन सोने-चाँदी के बर्तन आदि की खरीदारी की प्रथा भी चल पड़ी।
आज के दिन कुबेर पूजन भी किया जाता है और उनसे व्यापार वृद्धि की प्रार्थना की जाती है। आज के दिन से ही व्यापारी लोग अपना हिसाब खाता अर्थात बही-खाता लिखना शुरू करते हैं।

2. #नरक_चतुर्दशी(नरक चौदस) :- आज के दिन की महिमा बहुत है।
आज के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर को मार कर उसके कैद से १६००० स्त्रियों को मुक्त कराया था।
सतयुग के राजा रन्तिदेव ने नरक यातना से बचने के लिए घोर तपस्या की थी और आज के ही दिन यमराज उसकी तपस्या से प्रसन्न हुवे थे।
कुरुक्षेत्र में भीष्म-पितामह ने आज के ही दिन बाणों की शैया ग्रहण की थी।

स्कन्दपुराण में अकाल मृत्यु से बचने के लिए आज के दिन यमराज को तिल तेल का दीपदान करने का विधान किया गया है। आज के दिन यमराज के निमित्त घर के बाहर 16 छोटे दीपों के साथ एक बड़ी चौमुखी दीप जलाई जाती है। दीपकों को जलाने से पहले उनका पूजन भी कर लेना चाहिए। चौमुखी दीपक घर के बाहर यम के लिए दीपदान करना चाहिए और बाकि 16 दीपक घर के विभिन्न भागों में पितरों के स्वागत में जलाकर रखनी चाहिए। इस दिन मंदिरों में जाकर भी ब्रह्मा, विष्णु, महेश के लिए दीपदान करना चाहिए ऐसा निर्णय-सिन्धु में बताया है। निर्णय सिन्धु में नरक निवारण चतुर्दशी के दिन तैलाभ्यङ्ग स्नान करने तथा यमतर्पण करने का निर्देश और विधान भी प्राप्त होता है।

3. #दीपावली :- कार्तिक कृष्ण अमावस्या को यह पर्व मनाया जाता है। इसके बारे में पुराणों में बहुत सी कथा मिलती है । विष्णुपुराण के अनुसार समुद्र-मंथन के समय आज के ही दिन लक्ष्मी जी का प्रादुर्भाव हुआ था।
जनमानस में 14 वर्ष के बनवास के बाद राम जी के अयोध्या लौटने की ख़ुशी में यह पर्व मानाने की परंपरा है।
आज के ही दिन धर्मराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया था।
सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक भी दीपावली के ही दिन हुआ था।

आज के दिन धूमधाम से भगवती लक्ष्मी व भगवान गणेश जी का षोडशोपचार पूजन किया जाता है और मिठाई बांटी जाती है। व्यापारी वर्ग इस दिन विशेष पूजन करते हैं । #सिंह लग्न में भगवती का पूजन करना बहुत ही प्रभावशाली और समृद्धिदायक होता है क्योंकि समुद्र मंथन के दौरान सिंह लग्न में ही भगवती लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ था।
इस दिन पुरे घर को साफ और पवित्र कर के दीपक जलाया जाता है। नए वस्त्र पहने जाते हैं, घर के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है।
आज की दिन महानिशा पूजन अर्थात् काली पूजन करने का भी विधान है इनका पूजन मध्यरात्रि से शुरू किया जाता है।
आज का दिन साधकों के लिए वरदान साबित होता है। आज के दिन की गई साधना सिद्धी प्रदान करने वाली होती है। दीपावली पर्व अभिचार कर्म के लिए भी सबसे ज्यादा उपयुक्त है।

4. #गोवर्धन_पूजा :- यह पर्व दीपावली के दुसरे दिन मनाया जाता है। इस पर्व को पुराणों में अन्नकूट भी कहा गया है। आज के दिन ही भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा कर गाय और ग्वालों की रक्षा की थी। आज के दिन मुख्यरूप से गौ आदि पशुओं का पूजन करने और उनको मक्के का पाखर (मक्के को उबाल कर बनाया गया पशु आहार) खिलाने का विधान है। आज के दिन के सम्बन्ध में अलग अलग जगहों पर कई लोकाचार प्रचलित हैं। जिनके अनुसार लोग अपने अपने तरीकों से इस पर्व को पुरे हर्षोल्लास के साथ मानते हैं।

5. #यम_द्वितीया(भैया दूज) :- यह पर्व मुख्य रूप से भैया दूज के नाम से प्रचलित है। आज के दिन बहनें अपने भाई के शत्रुओं के नाश की कामना से और जीवन भर मधुर सम्बन्ध बने रहने की कामना से गाय के गोबर से एक पूजन मंडल तैयार करती हैं और उसमे चना कुटती हैं। वह चना अपने भाइयों को खिलाती हैं उन्हें अपने लोक परंपरा के अनुसार गलियां देती हैं उन्हें उनके कमियों से अवगत कराती हैं और फिर गाली देने के पश्चाताप स्वरुप बेर के कांटे अपने जीभ में चुभाती हैं। भाई आज के दिन फल, फूल, मिठाई और दक्षिणा देकर पैर छूकर अपने बहन का आशीर्वाद लेता है जीवन भर स्नेह बनाये रखने का भरोसा दिलाता है। यह पर्व भाई बहन के स्नेह का बहुत महान पर्व है।

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