शिवगिरि केवल तीर्थ नहीं सामाजिक चेतना का जीवन दर्शन है : उपराष्ट्रपति
93वीं शिवगिरि तीर्थयात्रा का उद्घाटन, श्री नारायण गुरु के विचारों को बताया आज के भारत के लिए मार्गदर्शक
समग्र समाचार सेवा
वर्कला (केरल), 30 दिसंबर:उपराष्ट्रपति ने मंगलवार को केरल के वर्कला स्थित शिवगिरि मठ में 93वीं शिवगिरि तीर्थयात्रा का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि शिवगिरि केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि सामाजिक जागरण, आत्मसम्मान और मानव गरिमा का जीवंत दर्शन है, जिसकी परिकल्पना महान समाज सुधारक श्री नारायण गुरु ने की थी।
आस्था और सामाजिक दायित्व का संगम
उपराष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि शिवगिरि आध्यात्मिक साधना और सामाजिक दायित्व के संतुलन का प्रतीक है। यहां आस्था समाज को ऊपर उठाती है और विवेक भक्ति के साथ चलता है। उन्होंने कहा कि शिवगिरि तीर्थयात्रा किसी कर्मकांड तक सीमित नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वच्छता, संगठन, श्रम और आत्मसम्मान के माध्यम से समाज को जागृत करने का आंदोलन है।
![]()
एक प्रश्न जिसने समाज को झकझोरा
उपराष्ट्रपति ने कहा कि श्री नारायण गुरु द्वारा उठाया गया प्रश्न—एक मनुष्य को दूसरे से कमतर क्यों समझा जाए, सदियों से चली आ रही सामाजिक असमानता को चुनौती देने वाला था। उन्होंने बताया कि गुरु ने इस अन्याय का उत्तर अपने अमर संदेश एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर, समस्त मानवता के लिए के माध्यम से दिया।
शांत लेकिन स्थायी सामाजिक क्रांति
उन्होंने कहा कि श्री नारायण गुरु की क्रांति शांत, करुणामय और स्थायी थी। यह क्रांति गरिमा, समानता और मानवता के मूल्यों पर आधारित थी। गुरु ने अंधविश्वास का विरोध करते हुए तर्क और विवेक को महत्व दिया, जिससे वे अपने समय के संत ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के मार्गदर्शक भी बने।
![]()
सेवा ही सच्ची साधना
भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत में प्रेम को सर्वोच्च उपासना माना गया है। श्री नारायण गुरु ने अपने जीवन और आचरण से यह सिद्ध किया कि समाज सेवा, कर्मकांड से बड़ी है और मनुष्य के प्रति प्रेम ही सच्ची भक्ति है।
केरल की विश्व को दो महान देन
उपराष्ट्रपति ने कहा कि केरल की सबसे बड़ी देन आदि शंकराचार्य और श्री नारायण गुरु हैं, जिनकी दार्शनिक परंपराएं आज भी संपूर्ण मानवता को प्रेरणा देती हैं।
तीर्थयात्रा का अर्थ परिवर्तन
उन्होंने कहा कि भारत में तीर्थयात्रा का अर्थ केवल भ्रमण नहीं, बल्कि आत्मिक और सामाजिक परिवर्तन है। शिवगिरि इस भारतीय परंपरा का सशक्त उदाहरण है। संतों ने सदियों से भाषा और क्षेत्र की सीमाओं से ऊपर उठकर समाज को जोड़ने का कार्य किया है।
![]()
युवाओं से विशेष आह्वान
उपराष्ट्रपति ने युवाओं से आह्वान किया कि वे श्री नारायण गुरु की शिक्षाओं से प्रेरणा लें और समानता, बंधुत्व तथा न्याय जैसे संवैधानिक मूल्यों को अपने जीवन में अपनाएं। उन्होंने विश्वास जताया कि शिवगिरि से प्रसारित विचार भारत को सामाजिक न्याय, गरिमा और सार्वभौमिक भाईचारे की दिशा में आगे बढ़ाते रहेंगे।
कार्यक्रम से पूर्व उपराष्ट्रपति ने शिवगिरि मठ में श्री नारायण गुरु की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर गुरु के जीवन और दर्शन पर आधारित चार पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।
इस कार्यक्रम में केरल के राज्यपाल, केंद्रीय राज्य मंत्री, केरल सरकार के मंत्री, सांसद सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति, संत और समाजसेवी उपस्थित रहे।



Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.