स्मार्ट फोन,बच्चों को यूं ही न थमा दें…

अनीता सिंह
     अनीता सिंह

*स्मार्ट फोन,बच्चों को यूं ही न थमा दें…

बच्चों को वो चीज नहीं देनी चाहिए जो उसे अच्छी लगती हो बल्कि वो चीज देनी चाहिए जो उनके लिए अच्छी हो । आज इसी मुद्दे पर बात करना है । आजकल स्मार्ट फोन शिशुओं से लेकर बड़े बच्चे तक धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहें हैं । इसका कोई विकल्प भी नहीं बल्कि कोरोना काल में छोटे छोटे बच्चों की आन लाइन क्लासेज में यह जरूरी होता गया ।

नयी उम्र के माता पिता को उनके बच्चों को लेकर लालन पालन में उनके मानसिक विकास की तमाम समस्याएँ तब और बढ़ जाती है जब वे एकल परिवार हैं। आजकल बुजुर्गों या छोटे भाई बहनो के बिना न्यूक्लियस फेमली सेट अप में अधिकतर शहरी लोग रह रहे हैं । पति दिन भर कार-रोजगार के सिलसिले में बाहर रहते हैं जबकि घर पर बची अकेली होम मेकर पत्नी बच्चों की आया और शिक्षिका दोनों भूमिकाओ को एक साथ निभा रही होती है । इसलिए यह मेट्रो और महानगरों के निवासियों की आम समस्या है । बच्चों को तमाम प्रकार से सक्रिय रखने की बाध्यता के चलते माताएँ बहुत आसानी से मोबाइल स्क्रीन में बाल चित्रों – गीतों या कार्टून फिल्मों के माध्यम से बच्चों को बहलाना शुरू कर देती हैं । बस नयी दिक्कतों की शुरुआत यहीं से होती है ।

वैसे भी छोटे बच्चों को सकारात्मक रूप से व्यस्त रखना और उनकी उछल कूद तथा सक्रियता को सही दिशा देना माता पिता या अभिभावकों के लिए हमेशा से चुनौती पूर्ण रहा है । लेकिन जब इन नन्हे बच्चों को आप टोकते हैं, उनको उनकी गतिविधियों के प्रति “नो – नो” कह कर उनमें निराशा जगाते हैं । तब स्थित और भी विपरीत हो जाती है दो वर्ष का बच्चा हो या उससे थोड़ा बड़ा, उसके सीखने की जिज्ञासा उम्र के साथ बढ़ती है तब यह बर्ताव सही नहीं है । पाँच वर्ष से आठ वर्ष के बच्चों को “नहीं नहीं”, “ऐसा बच्चे नहीं करते”, “ओह ये मत कर”, “अरे लोग क्या सोचेंगे , वेरी बैड”, “यू आर गुड बेबी” , “नो यू आर नऊ नॉट आ चाइल्ड” आदि कह कर कभी डांटे, कभी बहलाएँ, कभी रुकावट पैदा करें । तब यह तो और भी अनुचित है, इससे बचना चाहिए ।

बाल मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि यह सभी बातें बच्चों के कोमल मनो -मस्तिष्क में उनकी समस्या का सही हल नहीं है । प्राकृतिक रूप से बच्चों को नया सीखने की इच्छा रहती है, उसी में वे सही और गलत को पहचान करना शुरू करते हैं तथा अपने मस्तिष्क में इन तथ्यों को याद कर बिठाते जाते हैं । यह वो अवस्था होती है जब उनमें किसी प्रकार का भय या संकोच नहीं होता है और वे खुश रहना चाहते हैं, अपनी प्रशंशा सुनना चाहते हैं, यहाँ तक कि बड़ों को अपने साथ खेलने या नृत्य करने या मस्ती करने का खुला प्रस्ताव भी देते हैं । फिर माता पिता क्या करें, चुप हो कर सब देखते रहें, उनकी गलत या सही क्रिया कलापों का समर्थन करते हुए क्या अपनी ज़िम्मेदारी से हाथ खड़े कर लें , आखिर वे क्या करें । यह प्रश्न मस्तिष्क में सभी के उभरता है । मै इसका उत्तर देना चाहूंगी कि आप अपनी ज़िम्मेदारी से इस्तीफा न दें बल्कि इस समस्या के हल पर मनोवैज्ञानिक परिणामों की मदद लेना शुरू करें ।

हमें सबसे पहले बच्चों की सक्रियता उनकी जिज्ञासा उनकी पसंद और उनकी अरुचि को समझना होगा । उसी के अनुरूप खुद माता पिता या अभिभावक के रूप में अपने व्यवहार और सलाह को न्याय संगत , वातावरण संगत और बच्चे के स्वस्थ्य संगत बनाना होगा ताकि उन्हे सही दिशा मिल सके । वस्तुतः हमें इस पर गंभीर और सजग होने की जरूरत है ।

स्मार्ट फोन आज के समय जरूरत की महत्वपूर्ण घरेलू डिवाइस है । हम विभिन्न कार्यों के लिए स्मार्ट फोन पर व्यस्त रहते हैं । इसी स्मार्ट फोन को लोग बच्चों को खिलौने की तरह पकड़ा भी दे रहे हैं । इसलिए सबसे पहले जरूरी है कि आप अपने स्मार्ट फोन पर उसकी सेटिंग इस प्रकार से रखें कि छोटे बच्चे यदि उसे थामे हुए पूरे घर में चहल कदमी कर रहे हों तब कोई ऐसा बड़ा नुकसान न हो कि जिसकी वजह से आप तकलीफ में पड़ जाएँ । इसके लिए सबसे पहले स्मार्ट फोन के अंदर अपने ईमेल एकाउंट , फेसबुक , व्हाट्सेप आदि सोशल मीडिया सहित आन लाइन पेमेंट की सभी सुविधाओं को पासवर्ड से सुरक्षित करें । फोटो गैलरी , कैमरा आदि को भी लॉक करें ताकि कभी ये स्मार्ट फोन बच्चों के हाथों से छूट कर बालकनी आदि से बाहर गिरे तब आपके महत्वपूर्ण संदेशों और वालेट आदि का दुर्पयोग कभी न हो सके । बच्चों को निर्धारित कमरे – लाबी में रहने को ही कहते रहें ताकि कभी वे वाशरूम के टैप या बकेट के पानी से आपके स्मार्टफोन को नहलाना न शुरू कर दें । ऐसी स्थित से निपटने के लिए बच्चों के खिलौनो में भी स्मार्ट फोन आ रहे हैं । उन्हे ही छोटे बच्चों को गिफ्ट करें । और अपने स्मार्ट फोन को देने से परहेज रखें ।

बच्चों को बहलाने या उन्हे खाना खिलाने में उनको राइम्स या कार्टून फिल्मे दिखाने से बचें इसकी जगह टेलीविज़न के किड्स चैनल का उपयोग करें यदि फिर भी आपकी अपनी सहूलियत यदि स्मार्ट फोन से बन रही है तब आप आन लाइन राइम्स या कार्टून प्ले करने के बजाय पहले से निर्धारित पसंद को डाउन लोड करके रख लें और उसकी को प्ले करें । यह देखने में आया है कि आन लाइन प्ले करने में कई बार विज्ञापन और गंदे अरुचिकर फिल्में या वीडियोज़ भी प्ले हो जाते हैं जिनका बच्चों के कोमल मन में गलत प्रभाव पड़ सकता है । आनलाइन गेम्स में बच्चों को पहुँचने का रास्ता खुद न बनें उसकी जगह गेम्स खिलौनो की शॉप में से लेकर आयें ताकि बच्चों के स्किल में बढ़ोत्तरी भी हो और समाल स्क्रीन को लगातार देखने से उनकी आँखों पर कोई दुष्प्रभाव भी न पड़े ।

*अनीता सिंह, अँग्रेजी भाषा से पोस्ट ग्रेजुएट है। बेसिक अनुभव व शिक्षा विशाखापत्तनम व मुंबई में हुई है । कानपुर महानगर में महिलाओं के लिए कम्प्यूटर की बेसिक लर्निंग स्कूल फेमिनेट को सन 2002 से कई वर्षों तक संचालित करती रही हैं। भारत के तमाम दूरस्थ स्थलों का भ्रमण अनुभव है । वर्तमान में समाज एवं साहित्य सेवा में संलग्न हैं ।

Comments are closed.