समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 20जुलाई। औरंगाबाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक बेटा अपने बूढ़े और बीमार पिता के भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है और साथ ही पिता को गुजारा भत्ता देने की शर्त के रूप में उसके साथ रहने का निर्देश नहीं दे सकता है।
एकल-न्यायाधीश न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी ने अपने बेटे से भरण-पोषण की मांग करने वाली एक पिता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि बेटे ने पिता से अपने साथ रहने के लिए जोर दिया।
न्यायाधीश ने 8 जुलाई को पारित अपने आदेश में कहा “बेटा पिता के भरण पोषण की अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकता। ऐसा प्रतीत होता है कि वह एक शर्त रख रहा है कि याचिकाकर्ता (पिता) आकर उसके साथ मां की तरह रहे। बेटा ऐसी शर्त नहीं लगा सकता।”
अदालत एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देने वाली एक पिता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अहमदनगर जिले के शेवगांव में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी द्वारा पारित रखरखाव के आदेश को रद्द कर दिया था।
जस्टिस कंकनवाड़ी के सामने बेटे ने दावा किया कि उसकी मां और पिता के बीच मतभेदों के कारण, पिता अलग रह रहा था, हालांकि उसकी मां उसके साथ रह रही थी।
न्यायाधीश ने हालांकि कहा कि माता और पिता के बीच मतभेदों के इन मुद्दों पर विचार करने की जरूरत नहीं है।
कोर्ट ने कहा “दुर्भाग्य से अब पिता के लिए यह स्थिति पैदा हो गई है कि वह अपना भरण-पोषण नहीं कर पा रहा है और फिर उसे किसी और पर निर्भर रहना पड़ रहा है। बेटा कहने की कोशिश कर रहा है कि पिता के दोषों के कारण, माँ के बीच मतभेद हैं। और पिता और वे एक साथ नहीं रह रहे हैं। तो अब भी पिता अपने दोषों को पूरा करने के लिए पैसे की मांग कर रहे हैं। हम इन विवादित तथ्यों में हमेशा के लिए नहीं जा सकते हैं।”
न्यायाधीश ने कहा कि पिता, जिनकी उम्र 73 वर्ष से अधिक थी, एक मजदूर के रूप में काम कर रहे थे, जो प्रति दिन ₹20 कमाते थे।
न्यायाधीश ने आगे कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत मामलों का फैसला करते समय न्यायालयों को अति तकनीकी नहीं होना चाहिए।
इसलिए, कोर्ट ने बेटे को अपने पिता को प्रति माह ₹3,000 का भुगतान करने का आदेश दिया।
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