सोरेन सरकार का फैसला- अब जिसके पास 1932 का खतियान होगा वही कहलाएगा झारखंड का स्थानीय निवासी

समग्र समाचार सेवा
रांची, 17सितंबर। झारखंड सरकार ने राज्य में स्थानीयता को परिभाषित करने के लिए 1932 के खतियान को आधार बनाने का फैसला किया है. सरकार के इस फैसले के अनुसार वैसे लोग जिनके वंशजों का नाम 1932 के खतियान यानि की जमीन के सर्वे में है वही झारखंड के स्थानीय निवासी कहलाएंगे. ऐसा नहीं है कि इस तरह का फैसला पहली बार लिया गया है. 2002 में तत्कालीन राज्य सरकार ने भी 1932 के खतियान को आधार बनाकर स्थानीयता परिभाषित किया था. आगे चलकर 5 जजों की संविधान पीठ ने इसे खारिज कर दिया था. अब मौजूदा सरकार ने फिर से इसे उठाया है.

अब इसका सीधा मतलब यही होगा कि जिन लोगों के पास 1932 का खतियान होगा या फिर जिनके पूर्वजों का नाम उस खतियान में होगा वही लोग झारखंड के स्थानीय निवासी कहलाएंगे. जिनके पास 1932 का ख़तिहान नही होगा वैसे लोगों के पास एक ऑप्शन है कि स्थानीय ग्राम सभा उनके रहन सहन और संस्कृति के आधार पर उन्हें वेरीफाई कर सकती है. इससे वो यहां के स्थानीय कहला सकेंगे. वहीं इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार आनन्द कुमार कहते हैं कि ऐसी स्थिति में ग्रामसभा के सामने भी वैसे लोगों को पहचानने में परेशानी आ सकती है. उन्होंने कहा कि राज्य के कई इलाके ऐसे हैं जहां 1932 के काफी बाद में जमीन का सर्वे हुआ है वैसे में वहां के लोगों को लेकर क्लियरिटी नहीं है.

जो यहां चालीस पचास साल से रह रहे हैं और यहीं बस गये हैं उनके बारे में आनंद कहते हैं कि एक तरह से देखा जाए तो वैसे लोगों को पहचान का संकट होगा. सबसे बड़ी बात यह है कि एक तरफ उनके पूर्वज अपना सारा कुछ छोड़कर या फिर बेचकर दूसरे राज्य से माइग्रेट होकर यहां चले आये. अब न तो उनके पास अपनी पुरानी जगह से जुड़ी कोई पहचान बची और अब सरकार के इस फैसले से उन्हें झारखंड में कोई आइडेंटिटी नहीं मिलने वाली.

वहीं झारखंड हाई कोर्ट के वकील संगम कुमार कहते हैं कि सरकार के इस फैसले के खिलाफ वैसे लोग जरुर आवाज उठाएंगे जो यहां लम्बे समय से रह रहे हैं. उन्हें आरक्षण का लाभ सिर्फ इसलिए नहीं मिल पाएगा क्योंकि वो खतियानी नहीं है. ऐसे लोग न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे.

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