*श्रेष्ठा जोशी
पुरुष अर्थात पिता ,भाई ,पति, मित्र, बेटा… वास्तव में हमारे जीवन के वे स्तंभ हैं,जिनके बिना हर स्त्री अधूरी हैl इन रिश्तो में एक से अधिक रिश्ता जाने अनजाने हर स्त्री को मिलता ही है।
पुरुष समाज से जो सुरक्षा, सम्मान ,अपनापन ,हमें मिलता है, ममिलता रहा है ,वही हमारे जीवन की सबसे बड़ी शक्ति होती हैl
जिसके सहारे हम दुनिया के हर जंग को जीत लेते हैंl हमारी हर ललकार में हमें यह एहसास होता है कि हमारे पीछे आप यानी पुरुष खड़े हैं…..
हमारी हर एक नाराजगी इस बात का सबूत है कि वे ,हमें मना लेंगे…..
और, हमारी हर एक इच्छा यह जानती है कि आप उसको पूरा करने की हर संभव कोशिश करते रहते हैंl अपने सामाजिक जीवन में कितना अनुभव मैंने किया है जितना भी किया है यह महसूस किया है कि खूब बोलने वाली महिला व कम बोलने वाले पुरुष की भी अपनी अपनी भूमिकाएँ हैं ।
कई मसलों पर ज़्यादातर स्त्रियाँ को अपनी भावनाएं सीधे प्रकट नहीं कर पाती और पुरुष को यह समझने में बहुत देर लग जाती है उससे कभी कभी आपस में भ्रम उत्पन्न हो जाता है परंतु पुरुष की भूमिका वहाँ पर बढ़ जाती है।मेरा मानना है कि स्त्रियां पुरुष के बिना अधूरी ही है और वह ऐसा जानती भी है और मानती भी है पर रहती नहीं वह अपनी हर बात पर ,उसको बता देना चाहती है अपनी हर बात उससे मनवा लेना चाहती है वह अपनी सुबह की शुरुआत से लेकर दिन के अंतिम वक्त में तक अपने पति की बात हो या शुभ चिंतकों की चिंता की वजह से कभी ख़ुशी,कभी ग़म की स्थिति आती है ।इसमें स्त्री का एक तरह का प्रेम ही होता है -जिसे पुरुष समाज समझ जाता है ।
स्त्रियाँ कई बार अपनी बातों को अपने प्रेम अपनी ममता से जताना और बताना तो चाहती है पाती कह नहीं पाती,वहाँ भी पुरुष की भूमिका बढ़ जाती है ।
कहते है –
“तुम बिन जिया जाए कैसे ?
कैसे जिया जाए ?
तुम बिन सदियों से,
लंबी है ये रातें ,
सदियों से ,
लंबे हैं यह दिन ,
तुम बिन”
इसीलिए तो हर एक स्त्री अपने से जुड़े हुए पुरुष का पूरा समय अपने लिए चाहती है lफिर चाहे वह पिता ,भाई हो पति हो, बेटा हो ,या मित्र …..
परिवार के लिए खरा उतारने के लिए अपने सपनों को त्याग कर जिम्मेदारी को उठाने के नाम पुरुष हैl
एक पति के रूप में अपनी स्त्री के लिए उसकी भावनाओं को समझ संवेदनशीलता का परिचय देने का नाम पुरुष हैl
एक बेटी के लिए बहन के लिए अपनी कमाई का ₹1 बिना किसी स्वार्थ के देने का नाम पुरुष हैl
यही सब करने के बाद जो सम्मान पुरुष को नहीं मिल पाता और जब सब चीजों पर तिलांजलि देकर चट्टान की तरह खड़ा होता है अपने वचन के लिए लड़ जाता है,अड़ जाता है ,यही उसका पुरुषार्थ कहलाता हैl
आप है तो हम हैंl
मेरे जीवन में मेरे पिता मेरे तीनों भाई,मामा जी,ताऊ जी,चाचा जी,मौसा जी,फूफा जी,जीजा जी ,जवाई -इन सभी का प्रत्यक्ष , अप्रत्यक्ष रूप से मेरे जीवन में काफ़ी महत्व है और सदैव रहेगा ।
इस अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस पर मैं सभी भाईयों का ,पुरुष मित्रों का ,जिन्होंने समय-समय पर मुझे सम्मान दिया हैं, दे रहे हैं-उन सबका आभारी हूं, रहूँगी ।
आज का दिन समग्र पुरुष समाज के लिए मंगलमय हो!!
आप सबको अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस की शुभकामनाएं!!!
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लेखिका श्रेष्ठा जोशी स्वतंत्र लेखन कार्य के साथ आहार विशेषज्ञ व काउंसलर भी है । सुश्री श्रेष्ठा,मध्य प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश मंत्री भी रह चुकी है ।
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