राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने जारी किया निर्देश, RTI एक्ट के दायरे मे लाते हुए सभी थानों में FIR की कॉपी 48 घंटे के भीतर उपलब्ध कराई जाएं
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 15 अक्टूबर। आयुक्त राहुल सिंह ने अपने आदेश में कहा है कि अगर 48 घंटे के प्रावधान के तहत FIR की कॉपी प्राप्त करने का आरटीआई आवेदन आता है तो पुलिस विभाग को FIR की कॉपी 48 घंटे के भीतर उपलब्ध करानी होगी।
सिंह ने ये भी चेताया कि जानबूझकर FIR की जानकारी को रोकने वाले दोषी अधिकारी के विरुद्ध ₹25000 जुर्माने या अनुशासनिक कार्रवाई आयोग द्वारा की जाएगी। इस आदेश में संवेदनशील अपराधिक मामलों और वो FIR जिसमे जाँच प्रभावित हो सकती है को RTI के दायरे से बाहर रखा गया है।
48 घंटे में जानकारी का नियम
बहुत कम लोगो को जानकारी है कि आरटीआई एक्ट में 30 दिन मे जानकारी लेने के प्रावधान के अलावा 48 घंटे में भी जानकारी प्राप्त करने के कानून है। ये केवल उन मामलो मे लागू होता है जब व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता का सवाल आता है। सिंह ने स्पष्ट किया ऐसी स्थिति जहां नागरिकों के जीवन या स्वतंत्रता खतरे में हो और जहां 48 घंटे में जानकारी देने से व्यक्ति के अधिकारों के हनन होने पर रोक लगती हो वहां यह अधिकारियों का कर्तव्य है कि 48 घंटे के अंदर जानकारी संबंधित व्यक्ति को उपलब्ध कराई जाए। सूचना का अधिकार अधिनियम में 48 घंटे में जानकारी देने के नियम में प्रथम अपील और द्वितीय अपील कितन समय बाद की जा सकती इसका उल्लेख नहीं है। राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने इसको स्पष्ट करते हुए कहा कि 48 घंटे मैं अगर जानकारी नहीं मिलती है तो 48 घंटे के बाद प्रथम अपील और उसके 48 घंटे के बाद द्वितीय अपील की जा सकेगी और ये न्यायिक मापदंड और सूचना के अधिकार अधिनियम की मूल भावना के अनुरूप होगा।
FIR की जानकारी जानने के कानूनी हक
सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने FIR के उपर आदेश जारी करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 एवं अनुच्छेद 19 का भी सहारा लिया। सिंह ने आदेश मे स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 21 में प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के तहत व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बचाव का अधिकार मिला है। वही अनुच्छेद 19 (1) में किसी भी नागरिक के लिए जानकारी को प्राप्त करने का अधिकार मिला हुआ है। सिंह ने उन इन अनुच्छेदों की व्याख्या करते हुए कहा कि आरोपी जिसके विरूद्ध एफआईआर दर्ज की गई है उसे भी यह जानने का अधिकार है कि उसके विरुद्ध किन धाराओं के तहत किस व्यक्ति ने क्या आरोप लगाए गए हैं। वहीं राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने FIR के बारे में कहा कि FIR, CrPC की धारा 154 के तहत तैयार एक सार्वजनिक दस्तावेज है और यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 74 के तहत भी सार्वजनिक दस्तावेज है।
आयोग ने बनाया केरल हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आधार
FIR की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने उच्च न्यायालय केरल एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को भी आधार बनाया है। सिंह ने कहा कि कई पुलिस थानों में एफ आई आर की प्रति आरटीआई के तहत आवेदक को उपलब्ध कराई जा रही है और कई थानों में FIR की प्रति नहीं दी जा रही है। वही कई थानों में दहेज संबंधित मामलों में जानकारी महिलाओं से संबंधित होने के कारण संवेदनशील बताते हुए पुलिस विभाग के पोर्टल पर अपलोड की जा रही है और कई थानों से यह जानकारी अपलोड नहीं की जा रही है। सिंह ने कहा कि यह विधि के पालन में एकरूपता की व्यवस्था नहीं है। 2015 मे केरल उच्च न्यायालय ने एफ आई आर की कॉपी आरटीआई के तहत 48 घंटे में उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। वही सर्वोच्च न्यायालय ने 2016 में एफ आई आर की कॉपी 24 घंटे कर भीतर ऑनलाइन उपलब्ध कराने के अलावा आरोपी पक्ष एवं पीड़ित पक्ष को 48 घंटे के अंदर उपलब्ध कराने के आदेश दिए थे।
आयोग ने FIR की जानकारी पर सिविल प्रक्रिया संहिता बैठाई थी जांच
राज्य सूचना आयोग ने FIR को लेकर यह आदेश बालाघाट जिले से संबंधित प्रकरण में दिए है। इस प्रकरण में अपीलकर्ता लीला बघेल ने कुल छह FIR की जानकारी लेने के लिए वहा के थाने मे RTI दायर की थी। लीला बघेल ने एक अन्य थाने में भी आरटीआई लगाकर वहां से FIR की जानकारी प्राप्त कर ली थी पर बालाघाट के लालबर्रा थाने ने उन्हें जानकारी देने से इस आधार पर मना कर दिया था कि FIR की कॉपी देने से जांच प्रभावित हो जाएगी। इनमे से एक FIR प्रकरण दहेज प्रताड़ना का लीला बघेल के परिवार के विरुद्ध दर्ज था। पुलिस विभाग और आरटीआई आवेदक के बीच आरोप-प्रत्यारोप के चलते FIR की जानकारी पर आयोग द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत जांच शुरू की गई। जांच के बाद आयोग के सामने यह खुलासा हुआ कि सिर्फ एक FIR जो पॉक्सो से संबंधित थी उसकी जानकारी नहीं दी जा सकती थी पर बाकी सब FIR में चार्जशीट भी दायर हो चुकी थी उसके बाद भी पुलिस ने जांच प्रभावित होने का बहाना करते हुए FIR की कॉपी देने से मना कर दिया। इस प्रकरण संबंधित थाना प्रभारी को आयोग द्वारा ₹25000 जुर्माने का कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।
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