पूनम शर्मा इंग्लैंड और यूरोप में मुसलमानों द्वारा सड़कों पर नमाज़ पढ़ने की घटना आजकल आम हो गई है समूचे भारत में एक बार में सड़कों पर नमाज़ पढ़ना किस बात का द्योतक है ? क्या अब जनसंख्या इतनी बढ़ गई है कि ईदगाह और मस्जिदों में जगह नहीं रही ?अब यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है कि इस घटना को देश के गैर मुसलमान लोग किस प्रकार लते हैं और भारत की सरकार किस प्रकार लेती है ? यह किस तरह का पंथ है ? योगी आदित्यनाथ ने सड़कों पर नमाज़ पढ़ने के लिए जो मनाही की थी वह मुसलमान लोगों ने जिद बना ली कि सड़कों पर ही नमाज़ पढ़ेंगे । यह सब क्या है ? भारत के रहने वाले मुसलमान इस देश की सरकार के नियमों को नहीं मानते क्या यह एक संकेत है ? या फिर यह एक साजिश है, जिससे समाज में बँटवारा पैदा किया जा सके? सड़क पर नमाज़ पढ़ने के इस घटनाक्रम को केवल एक धार्मिक आस्था के रूप में नहीं देखा जा सकता, बल्कि इसे एक गंभीर सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी समझने की जरूरत है।
भारत में मस्जिदों, ईदगाहों और अन्य धार्मिक स्थानों पर नमाज़ पढ़ने के पर्याप्त स्थान हैं। फिर सड़क पर नमाज़ पढ़ने की आवश्यकता क्यों महसूस की जाती है? यह सवाल खुद में अहम है। क्या धार्मिक अनुयायी इस बात पर ध्यान दे रहे हैं कि जहाँ वे नमाज़ पढ़ रहे हैं, वहां सामान्य जनता का कष्ट न हो? सड़कों पर नमाज़ पढ़ने से यातायात बाधित होता है, जो सार्वजनिक जीवन में असुविधा का कारण बनता है। इसके अलावा, यह सामाजिक सौहार्द को भी प्रभावित करता है, क्योंकि जब एक धार्मिक समुदाय सार्वजनिक स्थानों पर अपना धार्मिक कर्तव्य निभाता है तो यह दूसरे समुदायों के लिए असुविधाजनक हो सकता है। यह क्या सही है कि एक समुदाय अपनी धार्मिकता के प्रदर्शन के लिए सार्वजनिक स्थानों पर जगह घेर ले?
सड़कों पर नमाज़ पढ़ने का मुद्दा अब एक गंभीर चेतावनी बन चुका है। क्या यह खुली चुनौती भरा संकेत है कि समाज में एक समुदाय देश के नियम और कानून की अवहेलना भी कर सकता है । क्या यह एक प्रकार की चुनौती है, जो भारतीय समाज के बहुलवादी ताने-बाने को कमजोर करने की कोशिश करती है? जब यह घटनाएँ होती हैं, तो समाज में एक तरह का तनाव उत्पन्न होता है। भारत, जो विविधताओं से भरा देश है, यहाँ धार्मिक परंपराओं का सार्वजनिक रूप से पालन करने के मामले में संवेदनशीलता की आवश्यकता है। यह जरूरी है कि हम अपने धार्मिक कर्तव्यों को ऐसे स्थानों पर निभाएँ , जहाँ से दूसरों को कोई परेशानी न हो और सार्वजनिक व्यवस्था बनाई रखी जा सके।
भारत में बहुसंख्यक हिंदू समाज की प्रतिक्रिया इस पर कैसी होनी चाहिए ? राम मंदिर को दी गई सुरक्षा व्यवस्था में एक वर्ष में करोड़ों का खर्च होता है । भारत में किसी भी धार्मिक स्थल मुख्यत: जो कश्मीर में हैं उनमें भी भारत की सेना के बिना तीर्थ के दर्शन करना असंभव है ।किसी भी मस्जिद में क्या इतनी सुरक्षा कभी भी मुहैया कराई गई है क्या कभी किसी को इस बात की आवश्यकता पड़ी ?
सड़कों पर नमाज़ पढ़ने को लेकर उनके मन में कई सवाल उठते हैं। भारत के गैर मुसलमान इसे एक प्रकार से राजनीतिक और धार्मिक दबाव के रूप में महसूस करते हैं। खासकर जब देश के विभिन्न हिस्सों में सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक उत्सवों और प्रार्थनाओं के आयोजन पर हंगामा खड़ा हो जाता है, तो गैर-मुसलमान समुदाय इस बात को एक चुनौती के रूप में देखता है। यह सिर्फ एक धार्मिक गतिविधि नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक संदेश भी देती है। ऐसे मामलों में, मुसलमानों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वे अपनी धार्मिक क्रियाओं को ऐसे स्थानों पर करें, जिससे अन्य समुदायों को कोई असुविधा न हो।
भारत सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह सभी नागरिकों को धर्म, जाति और संस्कृति से ऊपर उठकर समान अधिकार प्रदान करे। जब योगी आदित्यनाथ जैसे नेता सड़क पर नमाज़ पढ़ने की अनुमति नहीं देते, तो यह केवल एक प्रशासनिक आदेश नहीं होता, बल्कि यह एक समाज में शांति बनाए रखने का प्रयास होता है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी धार्मिक गतिविधि सार्वजनिक व्यवस्था और शांतिपूर्वक जीवन की प्रक्रिया को बाधित न करे। भारत का संविधान इस बात की इजाजत नहीं देता कि आप सड़कों का इस कार्य के लिए उपयोग करें । यदि सड़क पर नमाज़ पढ़ने की घटनाएँ लगातार बढ़ती हैं, तो यह सार्वजनिक सुरक्षा और शांति के लिए खतरे का कारण बन सकती हैं।
क्या इसे एक और मुसलमान देश पाकिस्तान की तरह बनाने की धमकी समझा जाए?
कुछ लोगों द्वारा यह समझा जाना कि “हम इसे पाकिस्तान बनाएँगे “, यह एक अत्यंत विवादास्पद और खतरनाक विचार है। यह भाषा भारतीय समाज में नफरत और कट्टरता को बढ़ावा देती है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, जहाँ हर धर्म के लोग एक साथ रहते हैं। अरब देशों में कहीं भी इस प्रकार की घटनाएँ नहीं होती हैं वहाँ का कानून इस बात की इज़ाज़त नहीं देता । इस प्रकार किसी एक समुदाय का दूसरे पर अपनी धार्मिकता थोपना देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुँचा सकता है। ऐसे बयानों से सामाजिक सौहार्द बिगड़ता है और यह देश की संप्रभुता के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
सड़क पर नमाज़ पढ़ने की घटनाएँ केवल धार्मिक मामले नहीं हैं, बल्कि ये सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। भारत जैसे विविधता वाले देश में, जहां विभिन्न धर्मों और संस्कृति के लोग एक साथ रहते हैं, यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपनी धार्मिक गतिविधियों को ऐसे ढंग से करें, जिससे अन्य समुदायों को कोई असुविधा न हो। सड़क पर नमाज़ पढ़ने की घटनाएँ यदि बढ़ती हैं, तो यह समाज में असंतोष और तनाव को जन्म दे सकती हैं, जो अंततः पूरे देश की शांति और एकता के लिए खतरा बन सकती हैं। इसलिए, इस मुद्दे पर सभी को संयम और समझदारी से काम लेना चाहिए।
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