नीतीश जी का अतीत ही बताता है, इस तरह के संकल्प का उनकी नजरों में कोई मोल नहीं है- शिवानन्द तिवारी

*शिवानन्द तिवारी

भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन से अलग होने के बाद नीतीश जी ने बिहार विधानसभा में घोषणा किया था कि मैं मिट्टी में मिल जाऊंगा लेकिन फिर इनके (भाजपा) साथ नहीं जाऊंगा। आज उन्हीं नीतीश कुमार जी ने बिहार की जनता को संदेश दिया कि यह मेरा अंतिम चुनाव है। इस प्रकार उन्होंने बिहार के मतदाताओं पर भावनात्मक तीर चलाया है। चुनाव प्रचार के अंतिम दिन यह उनका अंतिम अस्त्र था।
बात पुरानी है, जब हम लोग लालू यादव से अलग होकर जनता दल(ज) बनाया था जो बाद में समता पार्टी बना था. 1995 का विधानसभा चुनाव हम लोग लालू यादव के खिलाफ लड़े थे। याद होगा जार्ज साहब के नेतृत्व में चौदह सांसद जनता दल से बाहर आए थे। ऐसा लग रहा था कि बिहार में हमारी सरकार बनेगी। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री का हाव भाव भी प्रदर्शित करने लगे थे। चुनाव नतीजा आया तो नीतीश कुमार को लेकर महज सात लोग बिहार विधानसभा का चुनाव जीत पाए थे। उनमें से एक स्वयं नितीश कुमार भी थे। गांधी मैदान में उसके बाद सभा हुई थी। उस सभा में नीतीश कुमार ने घोषणा किया था की अब मैं बिहार में खूंटा गाड़ कर बैठूंगा और लालू यादव के विरुद्ध संघर्ष करूंगा। उसके बाद नीतीश जी दिल्ली गए और वहां से उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और लोकसभा की सदस्यता को बनाए रखा। इस प्रकार जो लोग नीतीश कुमार को लंबे अरसे से जानते हैं और समय-समय पर लिए गए इस तरह के उनके संकल्पों से वाकिफ हैं उनको आज की उनकी घोषणा से कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि नीतीश जी का अतीत ही बताता है इस तरह के संकल्प का उनकी नजरों में कोई मोल नहीं है।
शिवानन्द

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