सुखविंद्र सिंह मनसीरत
हिन्दी दिवस के नाम पर,न हो हिन्दी में काम।
अंग्रेजी है काम पर, हिन्दी को है विश्राम।।
हिन्दी मातृ भाषा कहे , कैसा मेरा दाम।
अंग्रेजी मे काम हो, हिन्दी का मात्र नाम।।
पिता जी डैड को कहें ,माता जी हैं मोम।
वाइफ अब पत्नी हुई, बिगड़ी हिंदी कौम।।
हिन्दी रहीम – कबीर की , सूरदास-रसखान।
छायावादी कवि चार हैं,हिन्दी मान-अभिमान।।
हिन्दी भाषा महान है , दिल का है मनभाव।
जन-जन की आवाज है,जन-जन का स्वभाव।
रस- अलंकार-छंद हैं ,अनुभूति की है खान।
पद्य – गद्य दो रूप हैं, व्याकरण बहुत महान।।
हिन्दी भाषा उठाव पर,करो मंथन विचार।
मनसीरत मन से कहे ,हिन्दी दिवस का सार।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
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