चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदर लाल बहुगुणा का कोरोना से निधन, ऋषिकेश एम्स में थे भर्ती

समग्र समाचार सेवा
देहरादून, 21मई। चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदर लाल बहुगुणा का आज कोरोना से निधन हो गया। बता दें कि 94 साल के सुंदरलाल बहुगुणा कोरोना संक्रमित थे और पिछले कई दिनों से ऋषिकेश के एम्स में उनका इलाज चल रहा था लेकिन आज उनका निधन हो गया। उनका नाम पर्यावरण के क्षेत्र में बेहद इज्जत से लिया जाता है उनके जाने से उत्तराखंड को एक बड़ी क्षति पहुंची।

बता दें कि चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म 9जनवरी सन 1927 को देवों की भूमि उत्तराखंड के ‘मरोडा नामक स्थान पर हुआ। उनकी प्राथमिक शिक्षा उत्तराखंड में हुई उसके बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. किए।

सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी किए। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया।

अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना भी की। सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

बहुगुणा के ‘चिपको आन्दोलन’ का घोषवाक्य है-

क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।
सुन्दरलाल बहुगुणा का मानना था कि पेड़ों को काटने की बजाय और अत्यधिक पेड़ लगाने चाहिए। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में इनको पुरस्कृत भी किया।

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