पॉश एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: राजनीतिक दलों पर लागू नहीं होगा यौन उत्पीड़न कानून

राजनीति में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल: क्या राजनीतिक दल कार्यस्थल नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने क्यों ठुकरा दी यह अहम मांग

  • सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों पर POSH एक्ट लागू करने की मांग वाली याचिका खारिज की।
  • कोर्ट ने कहा कि यह कानून बनाने का काम विधायिका का है, न्यायपालिका का नहीं।
  • याचिका में राजनीतिक दलों में काम करने वाली महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल की मांग की गई थी।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 2 अगस्त, 2025: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में राजनीतिक दलों पर ‘कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013’ (POSH Act) लागू करने की मांग वाली जनहित याचिका को विचार योग्य नहीं माना और उसे खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देश की राजनीति में महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों को लेकर एक नई बहस छेड़ सकता है। याचिकाकर्ता ने राजनीतिक दलों में काम करने वाली महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

क्यों दायर की गई थी याचिका?

यह याचिका अधिवक्ता शोभा गुप्ता द्वारा दायर की गई थी। याचिका में यह तर्क दिया गया था कि राजनीतिक दल भी एक तरह के ‘कार्यस्थल’ हैं, जहां हजारों महिलाएँ कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों और नेताओं के रूप में काम करती हैं। इन महिलाओं को भी यौन उत्पीड़न से सुरक्षा मिलनी चाहिए। याचिका में मांग की गई थी कि राजनीतिक दलों को अपने यहाँ ‘आंतरिक शिकायत समिति’ (ICC) का गठन करने के लिए बाध्य किया जाए, जैसा कि POSH एक्ट के तहत अन्य सभी कार्यस्थलों के लिए अनिवार्य है। याचिका का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि राजनीतिक जीवन में महिलाओं को बिना किसी डर के काम करने का अवसर मिले।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों खारिज की याचिका?

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि POSH एक्ट को राजनीतिक दलों पर लागू करने के लिए कानून में संशोधन करना होगा, और यह काम न्यायपालिका का नहीं, बल्कि संसद का है।

विधायिका का विषय: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह एक ‘नीतिगत मामला’ है और भारत के संविधान में शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के अनुसार, कानून बनाना संसद का विशेषाधिकार है।

कानूनी संशोधन की जरूरत: खंडपीठ ने कहा कि वर्तमान कानून के दायरे में राजनीतिक दल नहीं आते, और उन्हें शामिल करने के लिए कानून में बदलाव करना होगा। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुझाव दिया कि वह या तो केरल उच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर करें या महिला सांसदों के माध्यम से संसद में एक निजी विधेयक पेश करने का प्रयास करें।

कोर्ट के इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस तरह के सामाजिक और संस्थागत सुधारों के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और विधायिका की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है।

क्या है ‘पॉश एक्ट’ और राजनीतिक दलों पर क्यों है बहस?

पॉश एक्ट, 2013 का उद्देश्य भारत में सभी कार्यस्थलों पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाना है। यह कानून हर उस संस्थान पर लागू होता है जहाँ 10 या उससे अधिक कर्मचारी हैं। इस कानून के तहत, हर संगठन को एक आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनानी होती है, जो यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच करती है।

राजनीतिक दलों पर इस कानून को लागू करने की मांग लंबे समय से हो रही है, क्योंकि महिला नेताओं और कार्यकर्ताओं को अक्सर राजनीतिक कार्यक्रमों, बैठकों और अभियानों के दौरान अनुचित व्यवहार का सामना करना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद, यह देखना होगा कि क्या राजनीतिक दल और संसद इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर कोई कदम उठाते हैं या नहीं।

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