समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 8सितंबर। ट्रेनों की लेट लतीफी पर अब रेलवे अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता, उसे यात्रियों को मुआवजा देना होगा. ट्रेनों के लेट होने पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख दिखाया है और कहा है कि ट्रेनों के लेट होने से अगर किसी यात्री को नुकसान होता है तो रेलवे को मुआवजे का भुगतान करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन को निजी क्षेत्र के साथ कंपीट करना है तो उसे अपने सिस्टम और कार्यशैली में सुधार लाना ही होगा. कोर्ट ने रेलवे को ट्रेन में देरी के एक मामले में एक यात्री को 30,000 रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है।
जस्टिस एम आर शाह और अनिरुद्ध बोस की बेंच ने कहा कि रेलवे ट्रेनों की लेट लतीफी के लिए अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकता है. अगर रेलवे यात्रियों को ट्रेन में देरी की वजह बताने में नाकाम रहता है तो उसे यात्रियों को मुआवजा देना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यात्रियों का समय कीमती है और ट्रेनों में देरी के लिए किसी न किसी को जवाबदेही लेनी ही होगी. कोर्ट ने कहा, ‘यह प्रतिस्पर्द्धा और जवाबदेही का समय है और अगर पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन को निजी क्षेत्र के साथ कंपीट करना है तो उसे अपने सिस्टम और कार्यशैली में सुधार करना होगा. कोर्ट ने कहा कि देश के लोग/यात्री शासन/प्रशासन की दया पर निर्भर नहीं रह सकते हैं. किसी को तो इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी।’
इस मामलें पर कोर्ट कोर्ट ने लिया यह फैसला
संजय शुक्ला अपने परिवार को साथ 11 जून 2016 को अजमेर-जम्मू एक्सप्रेस से यात्रा कर रहे थे और ट्रेन को सुबह 8 बजकर 10 मिनट पर जम्मू पहुंचना था लेकिन यह 12 बजे अपने गंतव्य पर पहुंची। उन्हें दोपहर 12 बजे की फ्लाइट से जम्मू से श्रीनगर जाना था। इससे शुक्ला परिवार की फ्लाइट मिस हो गई और परिवार को टैक्सी से जम्मू से श्रीनगर जाना पड़ा। इसके लिए उन्हें टैक्सी के लिए 15,000 रुपये देने पड़े। इसके साथ ही उन्हें लॉजिंग के लिए भी 10,000 रुपये देने पड़े।
इसके बाद अलवर जिले के कंज्यूमर फोरम ने उत्तर पश्चिम रेलवे को संजय शुक्ला को 30 हजार रुपये का मुआवजा देने का ऑर्डर दिया है। स्टेट और नेशनल फोरम ने भी कंज्यूमर फोरम के इस फैसले को सही ठहराया है
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