समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,28 सितम्बर। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की नेता सुप्रिया सुले ने हाल ही में खुलासा किया कि उन्होंने बारामती लोकसभा चुनाव ‘फकीर’ की तरह लड़ा था और अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं थीं। एक साक्षात्कार में सुले ने अपनी चुनावी यात्रा और चुनौतियों के बारे में खुलकर बात की, जिससे यह साफ हो गया कि उनके लिए बारामती की सीट हमेशा एक प्रतिष्ठित लड़ाई रही है, लेकिन जीत की गारंटी कभी नहीं मानी जा सकती थी।
‘फकीर’ की तरह चुनाव लड़ने का अनुभव:
सुले ने कहा कि जब उन्होंने बारामती लोकसभा चुनाव लड़ा, तो वह एक ‘फकीर’ की तरह थीं, जिसका मतलब है कि उनके पास सत्ता या अधिकार का मोह नहीं था। उनका ध्यान केवल जनता की सेवा और उनके विश्वास को जीतने पर केंद्रित था। उन्होंने कहा कि चुनाव लड़ना आसान नहीं था, और उनके पास न तो असीमित संसाधन थे और न ही कोई भव्य प्रचार अभियान। उनके चुनावी अभियान का आधार केवल लोगों के साथ व्यक्तिगत संपर्क और उनकी समस्याओं को समझना था।
जीत को लेकर आश्वासन नहीं:
सुले ने स्वीकार किया कि चुनाव लड़ते समय वह कभी भी अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं थीं। उन्होंने कहा कि राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं होता और हर चुनाव एक नई चुनौती लेकर आता है। उनके अनुसार, बारामती एक ऐसी सीट रही है जहाँ से उनकी पार्टी एनसीपी का गहरा संबंध रहा है, लेकिन फिर भी उन्होंने जीत को कभी हल्के में नहीं लिया। हर बार उन्हें जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।
जनसंपर्क और सेवा की अहमियत:
सुले ने अपने राजनीतिक सफर के दौरान जनसंपर्क और सेवा को सबसे महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि राजनीति केवल चुनाव जीतने तक सीमित नहीं है, बल्कि जनता के लिए सतत सेवा और उनके विश्वास को बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है। उनके अनुसार, बारामती के लोगों का उन पर जो भरोसा है, वह उनके काम और ईमानदारी का परिणाम है। वह मानती हैं कि अगर राजनेता जनता की समस्याओं को गंभीरता से लें और उनके समाधान के लिए काम करें, तो चुनाव जीतना स्वाभाविक हो जाता है।
परिवार की राजनीतिक विरासत:
सुप्रिया सुले शरद पवार की बेटी हैं, जिनकी राजनीति में एक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित भूमिका रही है। उनके परिवार का बारामती से गहरा संबंध है, और इस सीट पर उनका प्रभाव दशकों से बना हुआ है। हालांकि, सुले ने यह स्पष्ट किया कि उनकी जीत सिर्फ उनके परिवार की विरासत के कारण नहीं है, बल्कि जनता के साथ उनका व्यक्तिगत जुड़ाव और मेहनत का नतीजा है।
निष्कर्ष:
सुप्रिया सुले का ‘फकीर’ की तरह बारामती लोकसभा चुनाव लड़ने का अनुभव यह दिखाता है कि राजनीति में कोई भी जीत सुनिश्चित नहीं होती। उनकी ईमानदारी, जनता के साथ जुड़ाव और सेवा भाव ने उन्हें बारामती की जनता का विश्वास दिलाया है। सुले का कहना है कि चुनावी जीत केवल कड़ी मेहनत और जनता के विश्वास को बनाए रखने से ही संभव होती है, और इसी सोच के साथ उन्होंने अपनी राजनीति को आगे बढ़ाया है।
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