स्वामीनाथन की जयंती पर मोदी का संदेश: “खेती की नहीं, लोगों की खेती होती है”

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 7 अगस्त:
नई दिल्ली में आयोजित एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामीनाथन की अटल विरासत और कृषि में आत्मनिर्भरता की दिशा पर अपने विचार साझा किए। प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और कृषि के हितधारकों को सम्बोधित करते हुए बताया कि कैसे स्वामीनाथन जी ने “science is not just discovery but delivery” की सीख दी, जिसे देश ने अपनी नीतियों में रूपांतरित किया।

स्वामीनाथन: फूड सिक्योरिटी का पुरोधा

मोदी ने सभा की शुरुआत में स्वामीनाथन परिवार को प्रणाम करते हुए कहा कि ऐसे व्यक्तित्व कालखंड तक सीमित नहीं रहते, बल्कि उनकी चेतना आने वाले दशकों तक देश की नीतियों की दिशा बनती रहती है। उन्होंने उस समय की भू‑संकट की स्थिति का स्मरण करते हुए बताया जब सूखा और रेगिस्तानी मौसम ने कृषि को गंभीर संकट में डाल दिया था। तब स्वामीनाथन जी ने Soil Health Card योजना और पर्यावरण‑सुरक्षित खेती को सफल दिशा दी, जिससे गुजरात के किसानों को नई उम्मीद मिली।

हरित क्रांति से आगे: एवरग्रीन सोच

प्ररोफ़ेसर स्वामीनाथन ने न सिर्फ खेती का उत्पादन बढ़ाने पर काम किया, बल्कि स्थायी खेती‑प्रणाली की दिशा तय की। उन्होंने Monoculture के खतरे और रासायनिक खेती के पर्यावरणीय प्रभावों की चेतना दी। एवरग्रीन रेवोल्यूशन की अवधारणा से उन्होंने यह दिखाया कि उत्पादन के साथ जमीन की उर्वरता भी सुरक्षित रखी जा सकती है।

उन्होंने Bio‑village, Community Seed Bank और Opportunity Crops जैसे मॉडल पेश किए, जिससे स्थानीय सामुदायिक आत्मनिर्भरता बढ़ती रही। Millets‑धार्य और salt‑tolerant genetic varieties जैसे प्रयोग तब शुरू किए गए जब ये फसलें किसी की नजर में नहीं थीं। यह सोच आज Climate‑Resilient कृषि के केंद्र में है।

बायोहैप्पीनेस: जीवन और जैव विविधता का गठजोड़

मोदी ने बायोहैप्पीनेस—local bio‑diversity पर आधारित विकास मॉडल—के सिद्धांत की प्रशंसा की। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे पर्यावरण‑अनुकूल खेती ने किसान, मछुआरा, आदिवासी और ग्रामीण समुदायों की आजीविका को मजबूत किया। स्वामीनाथन जी की वैज्ञानिक कवायद की ताकत यही थी कि उनके विचार रिसर्च से सीधे जमीन तक पहुँचे। उन्होंने फूड सिक्योरिटी को जीवन सुरक्षा का आधार माना।

प्रधानमंत्री ने ‘एम.एस. स्वामीनाथन अवॉर्ड फॉर फूड एंड पीस’ की शुरुआत का उल्लेख किया। यह पुरस्कार विकासशील देशों के उन वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को सम्मानित करेगा जिन्होंने खाद्य सुरक्षा, पोषण और जलवायु न्याय में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पहले पुरस्कार विजेता नाइजीरीय वैज्ञानिक प्रो. आडेनले को बधाई देते हुए उन्होंने कहा, यह पुरस्कार वैश्विक खाद्य और शांति के रिश्ते को गहराई से समझता है।

भारत की बढ़ती कृषि क्षमता: आंकड़ों की कहानी

मोदी जी ने गर्व के साथ बताया कि आज भारत दूध, दाल और जूट उत्पादन में नंबर वन है, जबकि चावल, गेहूं, फल एवं सब्जी उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। पिछले साल का record food grain उत्पादन, oil seeds की बढ़त, और soyabean‑सरसों जैसे फसलों में अभूतपूर्व वृद्धि उन नीतियों का परिणाम है जिन्हें स्वामीनाथन जी ने प्रेरित किया था।

उन्होंने किसानों की आय बढ़ाने, लागत घटाने और नए आय स्रोतों की तलाश को सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता बताया। PM किसान सम्मान निधि, पीएम फसल बीमा योजना, 10,000 FPOs का गठन, eNAM और PM किसान संपदा जैसी नीतियों से ग्रामीण त्रिवेदी का आधार मजबूत हुआ है।

किसान, धरती और विज्ञान का त्रिमूर्ति आश्रम

स्वामीनाथन जी ने खेती को मात्र फसल उत्पादन नहीं बल्कि जीवन‑निर्माण का साधन माना। उनकी विचारधारा ने विज्ञान और समाज को धागे में पिरो दिया। पीएम की बातों में किसान, किसान समुदाय, महिलाओं की गरिमा और प्राकृतिक संतुलन की प्रतिबद्धता स्पष्ट झलकती है।

आज जब कृषि‑प्रौद्योगिकी (AI, micro irrigation, climate-smart crops) आगे बढ़ रही है, तो स्वामीनाथन की सोच हमें मार्गदर्शक बनकर दिख रही है। हर जिले का वैज्ञानिक‑किसान संवाद, precision agriculture की जिम्मेदारी और पर्यावरण‑सुरक्षित खेती—ये सब उनके विजन की प्रत्यक्ष उपज हैं।

स्वामीनाथन का संदेश, भारत की प्रगति

प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि अन्न संकट जीवन संकट है। जब जीवन की अस्था अन्न पर आधारित होती है, तो कृषि नीति जीवन नीति बन जाती है। स्वामीनाथन जी ने यह संदेश विज्ञान के माध्यम से जनता तक पहुँचाया, और आज सरकार उसे अभ्यास में बदल रही है।

उनकी जयंती पर आयोजित यह सम्मेलन केवल स्मरणोत्सव नहीं था— यह एक प्रेरणा‑यज्ञ था, जिसमें खाद्य सुरक्षा, पोषण, जलवायु‑लचीलापन और ग्रामीण सशक्तिकरण को साथ लेकर चलने की संकल्पना फिर से जगाई गई।

स्वामीनाथन का जीवन हमें दिखाता है कि वैज्ञानिक दृष्टि न सिर्फ भविष्य गढ़ सकती है, बल्कि धरती की आत्मा से जुड़ सकती है। और जब प्रधानमंत्री उसके मार्ग पर चलते हैं, तो एक राष्ट्र का भविष्य सुनिश्चित होता है।

 

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