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राष्ट्रप्रथम

राष्ट्रप्रथम- बछिया का खूंटा, जिस पर कूदे बछिया

पार्थसारथि थपलियाल कल 10 जून शुक्रवार देश के अनेक भागों में दोपहर की नमाज के बाद नमाजी सड़कों पर उतर आए और प्रदर्शन करने लगे। इन प्रदर्शनों का कोई घोषित नेता नही था। यह विचारणीय है कि जिस प्रदर्शन का कोई नेता न हो तो वह अचानक कैसे…

राष्ट्रप्रथम- चोर नही चोर की माँ को पकड़ें

पार्थसारथि थपलियाल भारत मे अधिकतर लोगों को यह ज्ञान नही कि बताने, बोलने, कहने, चिल्लाने और भौंकने में शब्दों का ही अंतर नही बल्कि क्रिया का भी अंतर है, भावना और संस्कृति का भी अंतर है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में वर्णित…

राष्ट्रप्रथम- पंजाब के आब को दूषित करते कड़वे बोल

पार्थसारथि थपलियाल भारत के सच्चे राष्ट्रीय नेता की पार्टी जबसे पंजाब में सरकार बनाई है, तब से ऐसे ऐसे गुल खिला रही है जिसकी कभी उम्मीद भी नही की गई होगी। इस देश मे कई लोगों ने फोर्ड फाउंडेशन की आर्थिक मदद से कई तरह के फ़्रॉड किये,…

राष्ट्रप्रथम- रेगिस्तानी सर्दरातों में झोपड़ी का एक ऊंट

पार्थसारथि थपलियाल इन दिनों गंगा जमुनी या भाई चारा शब्दों पर लंबी लंबी और बड़ी बड़ी बातें कही सुनी जा रही हैं। सुनी ही नही जा रही हैं बल्कि इन शब्दों का ऑपरेशन भी हो रहा है। भारत सदियों से समन्वयवादी संस्कृति का देश रहा। भारतीय राजाओं…

राष्ट्रप्रथम- कश्मीर : सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है!

पार्थसारथि थपलियाल कश्मीर में जब भी कोई आतंकवादी घटना कारित होती है तो मीडिया से जानकारी मिलती है कि प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। यह कभी नही सुना कि पहले से कड़ी की गई सुरक्षा व्यवस्था को ढील कब दी गई? अगर सुरक्षा…

राष्ट्रप्रथम- राजनीति राष्ट्र के लिए या धंधे के लिये

पार्थसारथि थपलियाल बात 1975 की है। उन दिनों सर्वोदयी नेता एवं स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र आंदोलन चल रहा था। देशभर में रामधारी सिंह दिनकर की कविता की ये पंक्ति आंदोलन का हिस्सा बन गई थी- "सिंहासन खाली करो अब…

राष्ट्रप्रथम- देशद्रोह या राजद्रोह – केवल राजगद्दी का मोह

पार्थसारथि थपलियाल भारतीय समाज में सास बहू के झगड़े बिल्कुल ऐसे ही रहे हैं जैसी आधुनिक राजनीति। अपना मौका मिलते ही परिभाषाएं भी बदल जाती हैं, आचरण भी बदल जाता है। यह उस धारणा के आलोक में है जिस धारणा में अंग्रेजों के शासन काल में 1870…