कैकयी नंदन भरत के पुत्र तक्ष के नाम पर बसा तक्षशिला, बनता जा रहा “टैक्सिला”: इस नामांतरण से झटका किसे लगता है?

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 8फरवरी।इन दिनों एक पाकिस्तानी धारावाहिक आ रहा है। यूट्यूब पर चलते चलते कुछ भी आ सकता है, आपके ब्राउजिंग इतिहास के आधार पर! ऐसे ही एक धारावाहिक आने लगा, चलने लगा! वहां का उच्च मध्यवर्ग दिखाया गया था। ऐसा लगा जैसे भारत की बुर्का ब्रिगेड के बीच एक ताजा हवा का झोंका, जहाँ पर पर्दा नहीं हैं, जींस कुरते हैं आदि आदि! परन्तु जो सांस्कृतिक आघात मिलता है, वह झेलना भी आवश्यक है, वह इसलिए आवश्यक है जिससे चेतना चौंके तो सही!

एक लड़की ने कहा “अब्बा, मुझे प्रोजेक्ट के लिए टैक्शिला” जाना है! “टैक्शिला” यह शब्द सुनते ही ऐसा लगा जैसे किसी ने छाती में घूँसा मार दिया हो। आँखों से आंसू झर झर झरने लगे। यह शब्द क्यों महत्वपूर्ण हो गया था। यूट्यूब पर रोक दिया उस धारावाहिक को! फिर दस सेकण्ड पीछे लेकर गयी और फिर चलाया! “टैक्शिला” जाना है अब्बा, एक प्रोजेक्ट के लिए!”

न जाने कब तक उस क्षण को रोती रही! यह रुदन हर उस हिन्दू का रुदन है, जिसमें चेतना है, जिसकी चेतना उसे बार बार झकझोरती है, जिसकी चेतना उसे बताती है कि भारत में नालंदा और तक्षशिला नामक दो विश्वविद्यालय हुआ करते थे, सबसे प्राचीन, इतने प्राचीन कि कोई और सभ्यता तब थी ही नहीं। जब किसी और सभ्यता का प्रादुर्भाव नहीं था, उस समय तक्षशिला में ज्ञान की गंगा बहा करती थी।

मगर अब वह तक्षशिला अचानक से ही “टैक्शिला” हो गया है। उसका नाम ही बदल दिया। वैसे भी कई लोगों को पता ही नहीं होगा कि तक्षशिला का रामायण या प्रभु श्री राम से क्या सम्बन्ध है? वह अधिक से अधिक प्राचीन काल में जाएँगे तो यह कहेंगे कि तक्षशिला का सम्बन्ध सम्राट अशोक से है। दरअसल उनकी ज्ञान की सीमा वहीं तक है, क्योंकि रामायण तो उनके लिए एक झूठ का पुलिंदा है।

उनके लिए रामायण तभी सत्य है जब प्रभु श्री राम को अपशब्द कहते हैं। उनके लिए रामायण मात्र तभी सत्य है, जब उन्हें हिन्दुओं को गाली देनी है।

परन्तु रामायण हर उस हिन्दू के लिए सत्य है, जो प्रभु श्री राम को अपना इतिहास मानता है। जो प्रभु श्री राम से प्रेम करेगा वह तक्षशिला के इस नामांतरण पर रो जाएगा। क्योंकि तक्षशिला का उल्लेख रामायण में है। गांधार देश वही क्षेत्र है जहाँ पर एक समय में रघुवंशी भरत ने शासन किया था। तक्षशिला नगर का निर्माण ही रघुवंशी प्रभु श्री राम से जुड़ा है।

“नामांतरण” पीड़ा देता है। यह ऐसी पीड़ा देता है, जिसे वही हिन्दू समझ सकता है जिसमें हिन्दू चेतना बह रही है! तक्षशिला क्षेत्र गांधार देश के भाग के रूप में वर्णित है। जहां पर सुख है, समृद्धि है। वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड में यह वर्णन है कि कैसे प्रभु श्री राम अपने भाई भरत को भेजते हैं कि वह वहां पर जाकर दो नगर बसाएं

वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड में गंधार देश को एक ऐसे देश के रूप में वर्णित किया गया है, जो हर प्रकार की प्राकृतिक सम्पदा से परिपूर्ण है, परन्तु वहां पर गन्धर्वों का राज्य है, अत: राम उस देश को उन गन्धर्वों से मुक्त कराएं। वह लिखते हैं:

युधाजित्प्रीतिसंयुक्तं श्रूयतां यदि रोचते।

अयं गंधर्वविषय: फलमूलोपशोभित:।[1]

इसके आगे वह लिखते हैं कि यह गंधर्व देश सिन्धु नदी के किनारे बसा हुआ है।

सिन्धोरूभयत: पार्श्वे देश: परशोभमन:।

तं च रक्षन्ति गन्धर्वा: सायुधा युद्धकोविदा:[2]

राम अपने मामा का यह आदेश पाकर प्रसन्न होते हैं, तथा भरत को गंधर्व देश को मुक्त करागन्धर्वों को कर उसे दो भागों में विभाजित करने के लिए कहते हैं। भरत राजा राम की आज्ञा को शिरोधार्य कर गंधर्व देश पर आक्रमण कर पराजित करते हैं तथा दो नगरों की स्थापना करते हैं, तथा अपने पुत्रों तक्ष एवं पुष्कल के नाम पर तक्षशिला एवं पुष्कलावत नाम रखते हैं। तथा यह दोनों ही प्रांत धन ,धान्य एवं मानव मूल्यों से परिपूर्ण थे।

तक्षं तक्षशिलायां तु पुष्कल पुष्कलावते,

गंधर्वदेशे रुचिरे गान्धार विषये च स:[3]

वाल्मीकि रामायण में इन दोनों नगरों के विषय में अत्यंत ही आकर्षक वृतांत प्रस्तुत किया गया है। दोनों ही नगरों में भव्य मंदिरों का वर्णन किया गया है।

परन्तु अब नामांतरण में यह “टैक्सिला” हो गया है। भरत पुत्र तक्ष विलुप्त हो गए हैं। यह नामांतरण अब लोगों को चुभता नहीं है। कोई साहित्य में, साहित्यिक इतिहास में या इतिहास के साहित्य में कोई झांकता ही नहीं क्योंकि सभी को हिन्दू पहचान से डर लगता है। हिन्दू पहचान बाजार की पहचान नहीं है, राजनीति की पहचान नहीं है, इसलिए भरत का बसाया तक्षशिला जब विमर्श में “टैक्शिला” होता है, तो कोई दुखी नहीं होता।

उदयशंकर भट तक्षशिला काव्य में लिखते हैं

“त्रेता युग में भीरु मंद था,

गांधार का एक सुदेश,

कानन सकुल, कोकिल कूजित,

पुष्प सुगन्धित वीर निवेश,

रघुकुल कमल दिवाकर राघव,

भरत भूप ने सर्व प्रथम

भूप युधाजित के कहने से,

किया हस्तगत देशोत्तम

फिर सुपुत्र रण दक्ष तक्ष को,

देकर शासन भार समस्त,

किये व्यतीत शेष दिन अपने,

ले गृहस्थपन से सन्यस्त![4]

जो तक्षशिला साहित्य में है, जो तक्षशिला इतिहास में है, जो तक्षशिला चेतना में है, जो तक्षशिला हमारे गौरव में है, वही जब एक दिन “टैक्शिला” बनकर हमारे आपके सामने आता है, कोई है जो ठहर जाता है, कोई है जो अश्रु थाम लेता है, कोई है जो रो लेता है और कई हैं जो अंग्रेजी उच्चारण का भ्रम पालते हुए कह देते हैं “तक्षशिला” हो या “टैक्शिला” क्या फर्क पड़ता है!

परन्तु अंतर पड़ता है, टैक्शिला” से तक्ष विस्मृत हो जाता है, तक्ष के विस्मृत होने से भरत विस्मृत हो जाते हैं, भरत के विस्मृत होते ही प्रभु श्री राम पर प्रहार होता है, प्रभु श्री राम पर प्रहार होते ही अयोध्या पर प्रहार होता है और अयोध्या पर प्रहार होते ही महाराज मनु पर प्रहार होता है और महाराज मनु पर प्रहार होते ही “मनुष्य या मानव” की अवधारणा पर प्रहार होता है!

इस पर प्रहार होते ही आदम या मैन शेष रह जाता है, मनुष्य या मानव नहीं!

हर भाषा का एक धर्म है, हर शब्द का धर्म है क्योंकि हर शब्द का एक इतिहास है! तक्षशिला से “टैक्शिला” की यात्रा मानव से आदम की यात्रा तो नहीं है?

साभार- hindupost.in

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