महिलाओं का सम्मान, कभी नहीं करता तालिबान

जिया मंजरी
आखिरकार 20 वर्षों बाद अफगानिस्तान में बर्बर तालिबान युग की वापसी हो ही गई। किसने सोचा था कि मात्र 100 दिनों के अन्दर तालिबान अफगान सेना को घुटनों पर लाकर पूरे देश पर कब्ज़ा कर लेगा?अमेरिकी सेना की वापसी, तालिबान का काबुल की सड़कों पर नंगा नाच और अफगानी नागरिकों का दहशत के मारे दौड़ना पूरे विश्व की पेशानी पर बल डाल रहा है।वैश्विक समुदाय की तालिबान को लेकर अपनी चिंताएं हैं जिनका निराकरण निकट भविष्य में खोजना होगा किन्तु अफ़ग़ान नागरिकों में जो दहशत पैदा हुई है उससे पार पाना आसान नहीं होगा। खासकर महिलाओं के लिए तालिबान की वापसी किसी दुस्वप्न से कम नहीं है।हालांकि अपनी पहली सार्वजनिक पत्रकार वार्ता में तालिबान ने महिलाओं को लेकर अपनी नीति का खुलासा करते हुए कहा है कि महिलाएं शरिया कानून के तहत पढ़ाई व नौकरी कर सकती हैं। इस बार बदला-बदला सा नजर आ रहा तालिबान क्या सच में बदल गया है या यह सिर्फ अपनी कट्टर छवि से पार पाने की उसकी कवायद है? चूँकि महिलाओं को लेकर तालिबान की बर्बरता हृदयविदारक रही है अतः उसकी इस बदली छवि से कोई अंतर आने वाला नहीं है। पूर्व में जब तालिबान अफगानिस्तान पर हुकूमत करता था तो महिलाओं को घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी। यदि बहुत आवश्यक हो तो घर से किसी पुरुष के साथ ही वे बाहर निकल सकती थीं। यदि किसी महिला को अकेले घूमते पकड़ा जाता था तो उसे मारपीट कर वापस घर भेज दिया जाता था। महिलाओं को अपना चेहरा दिखाने की आजादी नहीं थी। वे सौन्दर्य प्रसाधनों का प्रयोग नहीं कर सकती थीं। वे जेवर नहीं पहन सकती थीं। वे हमेशा बुर्खे में रहने को बाध्य थीं। वे किसी से बात नहीं कर सकती थीं। वे पुरुषों से आँख नहीं मिला सकती थीं। वे सार्वजनिक स्थलों पर हंसने से वंचित थीं। यहाँ तक कि उन्हें नौकरी करने की भी मनाही थी। यदि कोई महिला अपने नाखून पर रंग लगाती थी तो उसकी वह ऊँगली काट दी जाती थी। पूरे देश में लड़कियों के विद्यालय बंद कर दिए गए थे। यदि कोई महिला विवाहेत्तर संबंधों में लिप्त पाई जाती थी तो उसे आधा जमीन में गाड़कर पत्थर मार-मार कर उसकी जान ले ली जाती थी।और यह बर्बरता होती थी शरिया कानून के नाम पर।

दरअसल, इस्लाम में महिलाओं को दोयम दर्जे का माना जाता रहा है। तीन तलाक, बहु विवाह, हलाला जैसी प्रथाएं सदा से ही मुस्लिम महिलाओं के लिए असहनीय पीड़ा का कारण बनी हैं।तालिबान ने इससे एक कदम आगे बढ़कर महिलाओं को भोग की वस्तु माना और उनके अस्तित्व को योनि तक सीमित कर दिया। तालिबान लड़ाकों के हरम में 14 वर्ष से लेकर 40 वर्ष तक की महिलाओं की मौजूदगी यह साबित करने के लिए पर्याप्त थी कि महिलाओं को लेकर उनकी सोच में कितनी गन्दगी भरी थी। आज अफगानिस्तान में पीढियां बदल गई हैं किन्तु महिलाओं के प्रति तालिबान की बर्बरता और सोच वही है। ऐसी खबरें आई हैं कि तालिबान ने पुनः 14 से 40 वर्ष की महिलाओं की सूची मांगी है। यह क्या साबित करता है? यही कि अफगान महिलाएं एक बार फिर हरम में भोग की वस्तु बनने की ओर अग्रसर हैं। तालिबान के साए में आम महिलाओं की स्थिति की कल्पना से ही रूह काँप जाती है वहीं अफगान सेना में शामिल महिलाओं ने भी अपनी दयनीय स्थिति को बयान करते हुए कहा है कि अब तालिबान उन्हें नहीं छोड़ेगा। या तो उनका सामूहिक बलात्कार किया जाएगा या सीधे गोली मार दी जायेगी। पूर्व में तालिबान ने महिला पुलिसकर्मियों के गले रेत दिए थे क्योंकि उन्होंने नौकरी पर जाकर तालिबान को सीधे चुनौती दी थी। महिला पत्रकारों से लेकर कला जगत से जुड़ी महिलाओं ने भी ऐसी ही आशंका व्यक्त की है।यहाँ तक कि महिला पत्रकारों को एंकरिंग करने से भी मना कर दिया गया है।

महिलाओं की आजादी से लेकर उनके मुद्दों पर किसी भी देश या समाज की सोच में अधिक अंतर नहीं है किन्तु तालिबान ने महिलाओं पर अत्याचार को ही अपनी ताकत मान लिया है। दुःख की बात तो यह भी है कि बहुसंख्यक आम अफगानी नागरिक भी महिलाओं के मुद्दे पर तालिबान के साथ खड़ा नजर आता है। जब काबुल हवाईअड्डे पर अफगानिस्तान से बाहर निकलने को भीड़ उमड़ी थी तो उसमें कितनी महिलाओं को आपने देखा? दो दिन पहले अफगान सरकार के एक अधिकारी जब दिल्ली आये तो उन्होंने बताया कि मैं बचकर भाग आया किन्तु मेरी पत्नी और बच्चियां वहीं हैं। क्या उनका यह कृत्य शोभनीय है? अब उनके घर की महिलाओं का क्या होगा? क्या तालिबान की गिद्धदृष्टि से वे बच पाएंगी? क्या इस कायराना और घटिया हरकत करने के बाद उन अधिकारी को नींद आयेगी? पूरे अफगानिस्तान में यही हो रहा है। पुरुष और युवा को देश छोड़ रहे हैं किन्तु अपने घर की महिलाओं को वहीं मरने के लिए छोड़ा जा रहा है। ऐसे में यदि तालिबान के हौसले बुलंद न हों तो क्या हो?

वैसे अब सारा दारोमदार वैश्विक समुदाय पर भी है कि वह महिलाओं को यौन दासता में धकेलने की तालिबानी कवायद से नजरें नहीं फेरे और इसका पुरजोर विरोध करे। अफगानिस्तान में पिछले 3 महीने में 9 लाख से अधिक परिवार विस्थापित हुए हैं क्योंकि उनकी महिलाओं को तालिबान की यौन दासता का डर सता रहा था और उनका यह डर वाजिब भी है क्योंकि इस वर्षजुलाई की शुरुआत में जब तालिबान अपनी ताकत बढ़ा रहा था तब स्थानीय धार्मिक नेताओं को तालिबान लड़ाकों के साथ निकाह के लिए 15 साल से बड़ी लड़कियां और 45 साल से कम उम्र की विधवाओं की फेहरिस्त देने का फरमान सुनाया गया था।इन परिस्थितियों में मुस्लिम महिलाएं वास्तविकता की दुनिया से दूर तालिबानी सोच में अपना अस्तित्व तलाशने को मजबूर हुई हैं जो 21वीं सदी की दुनिया के लिए बड़े ही शर्म की बात है।अफगानिस्तान की महिलाओं को ईश्वर शक्ति दे ताकि वे तालिबानी राक्षसी सोच का मुकाबला कर सकें।

(जिया मंजरी, स्वतंत्र स्तंभकार व सामाजिक कार्यकर्ता)

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