तमिलनाडु में हिंदी बैन पर बवाल: क्या सांस्कृतिक अस्मिता है या चुनावी चाल?

DMK सरकार हिंदी होर्डिंग्स, फिल्मों और गानों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी में

  • तमिलनाडु सरकार ने हिंदी होर्डिंग्स, फिल्मों और गानों पर प्रतिबंध लगाने वाला एक विधेयक लाने की योजना बनाई थी, जिसे व्यापक विरोध के कारण फिलहाल स्थगित कर दिया गया है।
  • मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन इसे हिंदी थोपने के खिलाफ तमिल अस्मिता की लड़ाई मानते हैं, जबकि विपक्ष ने इसे वोट बैंक की राजनीति और अन्य प्रशासनिक विफलताओं से ध्यान भटकाने का प्रयास बताया है।
  • वरिष्ठ DMK नेताओं ने स्पष्ट किया है कि उनका विरोध संविधान के विरुद्ध नहीं, बल्कि हिंदी थोपे जाने के खिलाफ है, जिसके चलते इस कदम को कानूनी रूप से सावधानीपूर्वक आगे बढ़ाया जा रहा है।

समग्र समाचार सेवा

चेन्नई, तमिलनाडु, 17 अक्टूबर: तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के नेतृत्व वाली सरकार राज्य में हिंदी भाषा के सार्वजनिक इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक विधेयक लाने की तैयारी कर रही है। हालांकि, व्यापक आलोचना और विरोध के बाद फिलहाल इस प्रस्तावित विधेयक को स्थगित करने का फैसला किया गया है। यह विधेयक पूरे तमिलनाडु में हिंदी होर्डिंग्स, बोर्ड, फिल्मों और गानों पर रोक लगाने की बात कहता है। यह कदम राज्य की राजनीति में भूचाल ला दिया है, जहाँ भाषा की राजनीति हमेशा से एक संवेदनशील और प्रभावी मुद्दा रहा है।

DMK की रणनीति: आत्म-सम्मान बनाम चुनावी लाभ

DMK सरकार का यह कदम 2026 के आगामी विधानसभा चुनावों से पहले उठाया गया है और इसे तमिल भाषा और सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास बताया जा रहा है।

हिंदी थोपने का विरोध

मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और DMK लंबे समय से केंद्र सरकार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत त्रि-भाषा फॉर्मूले के माध्यम से हिंदी थोपने का आरोप लगाते रहे हैं। स्टालिन का कहना है कि तमिलनाडु में दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) सफल रही है और किसी भी भाषा को थोपना तमिलों के आत्म-सम्मान के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। उनका यह कदम DMK की पुरानी हिंदी विरोधी आंदोलनों की विरासत को पुनर्जीवित करने का प्रयास है, जिसका उद्देश्य तमिल भावनाओं को एकजुट करना है।

विपक्ष का हमला: ‘मूर्खतापूर्ण राजनीति’

भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस कदम की कड़ी आलोचना करते हुए इसे “मूर्खतापूर्ण और बेतुका” बताया है। BJP नेताओं का तर्क है कि भाषा का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के रूप में नहीं किया जाना चाहिए और यह कदम समावेशिता की भावना के विरुद्ध है।

BJP का आरोप है कि DMK सरकार हाल के न्यायिक झटकों और राज्य में विवादास्पद फॉक्सकॉन निवेश जैसे आर्थिक मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए इस भाषाई मुद्दे का सहारा ले रही है।

आलोचकों का मानना है कि केवल एक भाषा पर प्रतिबंध लगाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समावेशी भारत की भावना के विपरीत है, और यह क्षेत्रीय राजनीति के लिए एक खतरनाक मिसाल कायम करता है।

कानूनी और सांस्कृतिक दांवपेंच

यह विधेयक न केवल राजनीतिक, बल्कि सांस्कृतिक और कानूनी मोर्चों पर भी जटिलताएँ पैदा कर सकता है।

संवैधानिक अनुपालन

विधेयक पर हंगामा होने के बाद, DMK के वरिष्ठ नेता टीकेएस एलंगोवन ने स्पष्ट किया कि “हम संविधान के विरुद्ध कुछ नहीं करेंगे। हम उसका पालन करेंगे। हम हिंदी थोपने के खिलाफ हैं।” इस बयान के बाद ही प्रस्तावित विधेयक को स्थगित कर दिया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार कानूनी विशेषज्ञों के साथ परामर्श कर रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रतिबंध संवैधानिक रूपरेखा के भीतर हो।

सांस्कृतिक पहचान का टकराव

तमिलनाडु में यह मुद्दा केवल एक भाषा को बैन करने का नहीं है, बल्कि उत्तर-केंद्रित भाषाई प्रभुत्व के खिलाफ तमिल सांस्कृतिक पहचान की रक्षा की एक लंबी लड़ाई है। DMK का तर्क है कि यह विधेयक स्थानीय कला और संस्कृति को बढ़ावा देने और स्थानीय फिल्म उद्योग को हिंदी फिल्मों के वर्चस्व से बचाने के लिए आवश्यक है। हालांकि, आलोचक मानते हैं कि आत्मविश्वास से भरी संस्कृति को सेंसरशिप की नहीं, बल्कि खुलेपन की आवश्यकता होती है।

डीएमके सरकार द्वारा राष्ट्रीय रुपये के प्रतीक चिह्न ‘को तमिल अक्षर ‘ரூसे बदलने जैसे पिछले प्रतीकात्मक कदम भी इसी भाषाई अस्मिता को दर्शाते हैं। यह पूरी घटना दर्शाती है कि 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले, DMK तमिल अस्मिता के अपने मूल राजनीतिक आधार को मजबूत करने के लिए पूरी तरह से तैयार है।

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