प्रौद्योगिकी आधार है लेकिन सौंदर्यबोध, बुद्धि, कौशल, मूल्य और दृढ़ता फिल्म निर्माण रूपी शिल्प के लिए महत्वपूर्ण हैं: अरविंद सिन्हा
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 22नवंबर। भारतीय पैनोरमा गैर-फीचर फिल्म जूरी के अध्यक्ष अरविंद सिन्हा ने कहा “डिजिटल मीडिया के उदय के साथ, प्रौद्योगिकी तक बढ़ती पहुंच ने व्यापक स्तर पर व्यक्तियों को फिल्म निर्माण में शामिल होने का अवसर दिया हैं। हालांकि प्रौद्योगिकी एक प्रमुख कारक है, किन्तु सौंदर्यशास्त्र, बुद्धि, कौशल, मूल्य और दृढ़ता फिल्म निर्माण रूपी शिल्प के महत्वपूर्ण अंग हैं।”
अरविंद सिन्हा की अध्यक्षता में भारतीय पैनोरमा गैर-फीचर फिल्मों की सात सदस्यीय जूरी ने मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन में आईएफएफआई-54 के गैर-फीचर फिल्म खण्ड में प्रदर्शित फिल्मों के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किए।
जूरी अध्यक्ष ने कहा कि अतीत के विपरीत इन दिनों कल्पित फिल्मों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है जबकि वृत्तचित्रों की संख्या कम है। उन्होंने कहा कि यह बदलाव डिजिटल माध्यमों और प्रौद्योगिकी के आगमन के कारण हो सकता है, जिससे फिल्म निर्माण तक पहुंच बढ़ गई है।
जूरी अध्यक्ष ने कहा कि वृत्तचित्रों के निर्माण के लिए धन संबंधी समस्याएं हैं और आजकल ये स्व-वित्त पोषित हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में बन रही डॉक्यूमेंट्री की गुणवत्ता में कमी आई है और हमें इसके लिए ऐसे बेहतर काम करने की जरूरत है जो सटीक वास्तविकता को दर्शाते हों। उन्होंने कहा कि बेहतर फिल्म निर्माण के लिए दृढ़ता, कड़ी मेहनत, कौशल और सिनेमा से जुड़े मूल्यों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक हैं।
जूरी सदस्यों में से एक पौशाली गांगुली ने कहा “पुरानी परिपाटियों से हटते हुए युवा पीढ़ी से जुड़े विषयों पर ध्यान केंद्रित करके वृत्तचित्रों को फिर से नया रूप दिए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि चेरनोबिल की सफलता आकर्षक कथाओं की जरूरत को दर्शाती है, जिससे युवाओं में वृत्तचित्र के प्रचार-प्रसार के प्रति रुचि पैदा होती है।”
विषयगत मूल्य बनाम फिल्म की लोकप्रियता/पहुंच से जुड़े विमर्ष पर चर्चा करते हुए जूरी अध्यक्ष ने बताया कि फिल्म में अनिवार्य रूप से एक सिनेमाबद्ध मूल्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि उसमें एक ‘सार्वभौमिकता का तत्व’ होना चाहिए ताकि यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों दर्शकों तक पहुंच बना सके। सार्वभौमिकता का ऐसा भाव जो नस्ल, पंथ और विविधता से परे सभी मनुष्यों के अंतर्मन को छूता है।’ उन्होंने मास्टर फिल्म निर्माता सत्यजीत रे और अदूर गोपालकृष्णन का उदाहरण दिया जिनकी फिल्में सार्वभौमिकता के लोकाचार को आगे बढ़ाती थीं और पूरी दुनिया के दर्शक इन्हें पसंद करते थे।
गैर-फीचर फिल्म जूरी
सात सदस्यों से युक्त गैर-फीचर फिल्म जूरी की अध्यक्षता अरविंद सिन्हा कर रहे हैं। अरविंद सिन्हा एक प्रसिद्ध वृत्तचित्र फिल्म निर्माता हैं और वह 8 राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। वह कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय फिल्म समारोहों के लिए जूरी के रूप में अपनी भूमिका निभा चुके हैं। गैर-फीचर जूरी में शामिल निम्नलिखित सदस्यों का नाम कई प्रशंसित फिल्मों से जुड़ा हैं और ये सदस्य व्यक्तिगत रूप से विभिन्न फिल्म संस्थाओं और व्यवसायों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि सामूहिक रूप से समृद्ध और विविध भारतीय फिल्म बिरादरी का भी प्रतिनिधित्व करते हैं:
1. श्री अरविन्द सिन्हा (अध्यक्ष)
2. श्री अरविन्द पांडे
3. श्री बॉबी वाहेंगबाम
4. श्री दीप भुइयां
5. श्री कमलेश उदासी
6. श्रीमती पौशाली गांगुली
7. श्री वरुण कुर्तकोटि
डिजिटल/वीडियो प्रारूप में बनाई गई किसी भी भारतीय भाषा में बनी फिल्में और 70 मिनट तक की डॉक्यूमेंट्री/न्यूजरील/नॉन-फिक्शन/फिक्शन फिल्में गैर-फीचर फिल्म खण्ड के लिए पात्र हैं।
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