ठाकरे स्मारक को बॉम्बे हाईकोर्ट से हरी झंडी, सभी याचिकाएं खारिज

समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 1 जुलाई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने शिवाजी पार्क स्थित मेयर बंगले को बाला साहेब ठाकरे स्मारक में बदलने के फैसले को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि यह राज्य सरकार का नीतिगत निर्णय है। इसमें हस्तक्षेप का कोई वैध कारण नहीं बनता।

मुख्य न्यायाधीश आलोक आराधे और न्यायमूर्ति संदीप वी. मर्ने की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया। अदालत के सामने 2017 से 2019 के बीच दाखिल चार जनहित याचिकाएं थीं। याचिकाएं सामाजिक कार्यकर्ताओं भगवानजी रायानी, पंकज राजमाचिकर, संतोष दाउंडकर और एनजीओ जन मुक्ति मोर्चा ने दायर की थीं।

इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि मेयर बंगले को स्मारक में बदलने से पर्यावरण नियम, जोनिंग कानून और MRTP एक्ट का उल्लंघन हुआ है। साथ ही, सरकारी प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप भी लगाया गया था।

अदालत ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा कि भूमि उपयोग में बदलाव (ग्रीन ज़ोन से रेसिडेंशियल ज़ोन) कानून के तहत हुआ है। इसमें कोई अनियमितता नहीं है।

MMC एक्ट में जो संशोधन किया गया, वह भी वैध है। इस संशोधन से नगर आयुक्त को यह अधिकार मिला कि वह जमीन को 1 रुपये सालाना किराए पर ट्रस्ट को लीज़ पर दे सकें।

सरकार का हक
अदालत ने कहा, “स्मारक के लिए स्थल चुनना सरकार की नीति का हिस्सा है। जब तक इससे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता, यह न्यायिक समीक्षा का विषय नहीं बनता।”

ट्रस्ट पर सवाल खारिज
कुछ याचिकाकर्ताओं ने कहा कि ट्रस्ट में शिवसेना नेताओं और ठाकरे परिवार के लोग हैं। इसलिए यह सार्वजनिक ट्रस्ट नहीं है। अदालत ने यह तर्क भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ट्रस्ट में वरिष्ठ अफसर और नगरपालिका अधिकारी भी शामिल हैं। इससे इसका सार्वजनिक चरित्र साबित होता है।

पर्यावरण और धरोहर मंजूरी मिली
कोर्ट ने कहा कि स्मारक को मुंबई धरोहर संरक्षण समिति और MCZMA से मंजूरी मिल चुकी है। स्मारक के निर्माण में पुराने बंगले की विरासत संरचना को बनाए रखा गया है। उसके मूल स्वरूप को नुकसान नहीं पहुंचाया गया।

परियोजना की पृष्ठभूमि
सरकार ने स्मारक की घोषणा 2015 में की थी। 2016 में प्रस्ताव पारित हुआ। 2019 में करीब ₹205 करोड़ मूल्य की जमीन को स्मारक के लिए अधिसूचित किया गया। जनसुनवाई प्रक्रिया भी पूरी की गई।

कोर्ट का अंतिम निर्णय
कोर्ट ने कहा, “हम पाते हैं कि किसी भी याचिका में ऐसा कोई आधार नहीं है कि अदालत दखल दे। सभी याचिकाएं खारिज की जाती हैं। किसी पर कोई लागत नहीं लगाई जाती।”

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.