सामाजिक न्याय की लड़ाई अभी बहुत लंबी है …

*शिवानन्द तिवारी
सामाजिक न्याय की लड़ाई अभी बहुत लंबी है. आज जब संसद में एक कविता का पाठ करने पर सार्वजनिक रूप से सर काट लेने, जीभ खिंच लेने, हत्या कर देने जैसी धमकी दी जा रही है. आज के दिन भी निडर होकर ऐसी धमकी दी जा सकती है यही प्रमाण है कि सामाजिक न्याय की लड़ाई अभी बहुत लंबी है. मनोज झा ने महिला आरक्षण पर अपने भाषण के दरम्यान ओमप्रकाश वाल्मीकि की ठाकुर का कुआँ नाम की उस कविता को संसद में सुनाया था. वह कविता नहीं है. बल्कि एक दलित की वेदना का मर्मस्पर्शी बयान है. वह कविता आज नहीं लिखी गई है. आज से चौवालीस वर्ष पूर्व लिखी गई इस कविता ने लाखों लोगों के मन को द्रवित किया होगा. जिस समय ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने उस कविता सार्वजनिक पाठ किया होगा उस समय किसी ने उनकी जीभ नहीं काटी, गर्दन नहीं उतारी.
मुझे तो लगता है कि इस कविता का जो थीम है, उसका जो विषय वस्तु है और जिस ढंग से उसमें दलितों की वेदना का बयान है. उसकी प्रेरणा संभवतः ओमप्रकाश वाल्मीकि जी को प्रेमचंद जी से ही मिली होगी. ठाकुर का कुआँ प्रेमचंद जी की सबसे छोटी लेकिन कालजयी कीर्ति मानी जाती है. उस कहानी में वही दर्द है, वही पीड़ा है जिसको वाल्मीकि जी ने अपनी कविता के ज़रिए व्यक्त किया है. बल्कि दोनों का शिर्षक भी एक ही है. प्रेमचंद जी का समय तो बहुत पुराना है. 1936 के पहले का समय. क्योंकि प्रेमचंद जी का इंतकाल 1936 में ही हो गया था. आज के मुक़ाबले प्रेमचंद जी का समय शायद ज़्यादा सामंती रहा होगा. लेकिन ठाकुर का कुआँ नाम की उस कहानी के लिए प्रेमचंद जी को धमकी दी गई हो या उन पर हमला हुआ हो, यह इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है.
मनोज झा द्वारा संसद में एक चरचा के दरम्यान ओमप्रकाश वाल्मीकि की उस कविता के पाठ के लिए तरह तरह की धमकी मिल रही है. कल लालू जी ने मनोज झा का मज़बूती से समर्थन किया था.
आज नीतीश जी के मंत्री मंडल के मज़बूत सदस्य का बयान सुना. संजय झा ताकतवर मंत्री हैं. मीडिया से बातचीत में उन्होंने बहुत उपदेशात्मक अंदाज़ में मनोज झा को संदेश दिया कि उस कविता पाठ से लोगों की भावनायें आहत हुई हैं. इसलिए लोगों की भावनाओं का ध्यान चाहिए था.
आश्चर्य है कि जिन लोगों ने सार्वजनिक रूप से मनोज झा की जीभ उखाड़ने या गर्दन उतार लेने की धमकी दी उस पर उन्होंने कुछ नहीं कहा ! जैसे उस कविता का पाठ करना ऐसा अपराध है जिसके लिये इस तरह की धमकी स्वाभाविक है. दुखद है कि अपनी बात के समर्थन के लिए उन्होंने नीतीश कुमार जी के तौर तरीक़ों का उदाहरण भी दिया. संजय जी से मैं अनुरोध करूँगा कि वे नीतीश जी की राजनीति की धारा को समझें. वह धारा सामाजिक न्याय की है. वह धारा दलितों, अति पिछड़ों, पिछड़ों, महिलाओं को सशक्त बनाने की धारा है. वह दलितों के दर्द और वेदना का बयान करती कविता का पाठ करने पर जीभ उखाड़ने और गर्दन उतारने वालों का समर्थन नहीं बल्कि मज़बूत विरोध करने वाली धारा है. अनुरोध करूँगा कि संजय जी नीतीश जी से सामाजिक न्याय की धारा और इसके इतिहास को पुनः समझने की कोशिश करें.

*शिवानन्द तिवारी
वरिष्ठ समाजवादी नेता व पूर्व सांसद , पटना (बिहार)

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