ये फिल्म संकेत देती है कि दिक्कतें हैं लेकिन जरूरी नहीं कि वे भौतिक संसार से जुड़ी हों: निर्देशक करज़िस्तोफ़ जानुसी

समग्र समाचार सेवा
पणजी, 29नवंबर। फिल्म ‘परफेक्ट नंबर’ के निर्देशक करज़िस्तोफ़ जानुसी ने कहा कि “ये फिल्म संकेत देने की कोशिश करती है कि दिक्कतें हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि वे भौतिक दुनिया से ही जुड़ी हों।” 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) के दौरान आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में बोलते हुए उन्होंने कहा कि भौतिक दुनिया से परे कोई अन्य वास्तविकता भी हो सकती है। और विज्ञान अब इससे इनकार नहीं कर रहा है क्योंकि हमारे पास क्वांटम भौतिकी है जो महसूस कराती है कि न्यूटन-युग अब खत्म हो गया है और वे सब चीजें जो 19वीं सदी में इतनी निश्चित थीं वे अब इतनी निश्चित नहीं रह गई हैं। उन्होंने कहा कि अब इन सब पर सवाल खड़ा है और इसी सोच के कारण मैंने ये फिल्म बनाई है।

इफ्फी का समापन अनुभवी पोलिश फिल्मकार करज़िस्तोफ़ जानुसी की गूढ़ फिल्म ‘परफेक्ट नंबर’ के अंतर्राष्ट्रीय प्रीमियर के साथ हुआ, जो क्वांटम भौतिकी के गणितीय सिद्धांतों और कैलकुलस में दार्शनिक उत्तरों की खोज करती है और भौतिक विज्ञान की सीमाओं को आगे धकेलती है जहां विज्ञान ट्रान्सेंडेंस से मिल जाता है। ये फिल्म एक युवा गणितज्ञ के बारे में है जो लंबे समय से खोए हुए अपने धनी चचेरे भाई से मिलता है और ये मुलाकात कई मायनों में उनके जीवन को बदल देती है।

इस फिल्म को बनाने के पीछे की प्रेरणा के बारे में बात करते हुए करज़िस्तोफ़ जानुसी ने कहा, “ये एक सच्चे इंसान से प्रेरित है। सेंट पीटर्सबर्ग में रूसी-यहूदी गणितज्ञ हैं, जिन्हें 10 लाख डॉलर का पुरस्कार मिला है। उन्होंने ये कहते हुए चेक वापस भेज दिया कि ये ध्यान भटकाने वाला है और वे भटकाव नहीं चाहते हैं।”

उन्होंने कहा, “इसे देखते हुए मैं सोचता हूं कि यह आजकल काफी उल्लेखनीय है कि सदियों से पैसे के पीछे भागने के बाद अब शायद इस समझ के लिए कि इसे रखना जरूरी नहीं है, मानवता परिपक्व हो रही है। हमारे पास अन्य समस्याएं हैं, जो संभवत: अधिक महत्वपूर्ण और दिलचस्प हैं।”

आस्था और विज्ञान के बीच विरोधाभास, जो परफेक्ट नंबर की मुख्य विषयवस्तु है, पर एक सवाल का जवाब देते हुए करज़िस्तोफ़ जानुसी ने कहा, “यह खुला सवाल है। हम निश्चित रूप से तब तक इसे कभी नहीं जान पाएंगे कि मृत्यु के बाद कुछ है या नहीं, जब तक हमारी मृत्यु नहीं हो जाती। मुझे आशा है कि वहां कुछ है। यह उस उम्मीद पर है, जो आस्था है।”

करज़िस्तोफ़ जानुसी ने इस प्रक्रिया और इसके परिभाषा में निरंतर परिवर्तन पर कहा कि 20 साल पहले प्रगति का जो अर्थ था, अब वह नहीं है। उन्होंने आगे कहा, “चूंकि इस ग्रह पर हमारे अस्तित्व को इकोसिस्टम से संबंधित विनाश, जिसे हम बढ़ावा दे रहे हैं और हमारे निर्मित हथियारों के कारण चुनौती दी जा रही है, हमें कम से कम जीवित रहने के लिए प्रगति की नई परिभाषा या मानवता के नए लक्ष्यों की तलाश करनी होगी। ये हथियार आत्म-विनाश के उपकरण साबित हो सकते हैं।”

करज़िस्तोफ़ जानुसी ने आगे बताया, “मनुष्य अन्य जानवरों के विपरीत आत्म-विनाशकारी है। इसे देखते हुए यह एक ऐसी चीज है, जो मुझे बहुत परेशान करती है। शायद यही बात मैंने फिल्म में दिखाने का प्रयास किया है। विश्व के भविष्य के बारे में मेरी चिंता यह है कि क्या किया जाए, जिससे कि मानवता में वृद्धि सुनिश्चित हो सके।”

“परफेक्ट नंबर” के बारे में:

निर्देशक: करज़िस्तोफ़ जानुसी

निर्माता: ज़बिग्न्यू डोमागाल्स्की, फेलिस फ़रीना, पाओलो मारिया स्पाइना

पटकथा: करज़िस्तोफ़ ज़ानुसी

सिनेमैटोग्राफर: पिओट्र नीमेस्की

संपादक: मिलेनिया फिडलर

अभिनेता: आंद्रेज सेवेरिन, जान मार्क्ज़वेस्की

सारांश:
जीवन को कौन सी चीज़ सार्थक बनाती है: सफलता या प्रेम? जोआचिम इस दुविधा का सामना करता है, एक संतुष्ट व्यक्ति, जो अपने जीवन के समापन काल में, एक युवा गणित प्रतिभा, डेविड की ओर आगे बढ़ता है। ‘द परफेक्ट नंबर’ में, ज़ानुसी अपनी फिल्मों के केंद्रीय विषयों की ओर वापस आते हैं, जो ‘क्रिस्टल स्ट्रक्चर’ और ‘इल्यूमिनेशन’ जैसी क्लासिकल फिल्मों के भी केन्द्रीय भाव रहे हैं। इस बार, जो वे जवाब देते हैं, वह स्पष्ट नहीं है। एक युवा गणितज्ञ-भौतिक विज्ञानी अपने वैज्ञानिक अनुसंधान और अपने विषयों को पढ़ाने में डूबा हुआ है। डेविड के बुजुर्ग यहूदी-पोलिश चचेरे भाई, जोआचिम, अपने जीवनकाल में संचित धन को उन्हें दान करना चाहते हैं। डेविड इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देता है, क्योंकि वह गरीब, लेकिन खुश रहना चाहता है। शहर में, जैसे-जैसे बात फैलती है, बहुत से लोग मानते हैं कि डेविड बहुत अमीर हो गया है, और युवा शोधकर्ता खुद को अगवा किया हुआ पाता है!

निर्देशक:
करज़िस्तोफ़ ज़ानुसी – निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक। विश्व प्रसिद्ध फिल्मों के लेखक: ‘क्रिस्टल स्ट्रक्चर’ (1968), ‘इल्युमिनेशन’ (1973), ‘कॉन्स्टन्स’ (1980), ‘द ईयर ऑफ द क्वाइट सन’ (1984), ‘एनीव्हेयर, इफ यू आर’ (1988) , ‘क्वॉल’ (1996), ‘पर्सोना नॉन ग्राटा’ (2004), ‘रिविजिटा’ (2009), ‘फॉरेन बॉडी’ (2014); समेत कई फिल्मों को कान, वेनिस, लोकार्नो, मास्को, शिकागो, मॉन्ट्रियल, बर्लिन, टोक्यो जैसे अंतरराष्ट्रीय महोत्सवों में सम्मानित किया गया है। करज़िस्तोफ़ ज़ानुसी थिएटर प्रस्तुतियों का भी निर्देशन करते हैं और उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं।

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