महापुरुष महात्मा फुले ने क्रांतिकारक कामों से सामान्य लोगों के जीवन में आनंद निर्माण किया- डा श्रीमंत कोकाटे
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 13 अप्रैल।
महात्मा ज्योतिराव फुले ने धर्म व्यवस्था और राजतंत्र को चुनौती दी. सार्वजनिक क्षेत्र में गुलामी को नष्ट करने के लिए तथा देश में शूद्र और अति शुद्र को शिक्षा देने का क्रांतिकारक कार्य करने वाले महात्मा फुले आम जनता के जीवन में आनंद निर्माण करने वाले महामानव थे, कहां विख्यात वक्ता तथा इतिहास संशोधक डा. श्रीमंत कोकाटे ने. महाराष्ट्र सूचना केंद्र की ओर से महाराष्ट्र हीरक महोत्सव व्याख्यान श्रृंखला के तहत 24 में व्याख्यान में वह ‘महात्मा फुले -एक क्रांतिकारक महामानव’ विषय पर बोल रहे थे. उन्होंने आगे कहा कि महात्मा फुले ने मध्ययुग तथा आधुनिक युग को जोड़ने का एक क्रांतिकारी कार्य किया है. आधुनिक महाराष्ट्र को उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज से परिचित कराया. राज्य तथा देश में सार्वजनिक और मुफ्त शिक्षा की नींव महात्मा फुले ने रखी. सदियों से पिछड़े रहे समाज के घटकों को उनका अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने व्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाई. सामान्य लोग, शुद्र तथा अति सुंदर, श्रमिक और वंचितों को मराठी भाषा के साहित्य में स्थान देने का उल्लेखनीय कार्य किया.
डा कोकाटे ने कहा कि महात्मा फुले ने शैक्षिक, सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए और सामान्य लोगों को जीने के लिए शक्ति प्रदान की और उनके जीवन में आनंद निर्माण किया. महात्मा फुले शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तब उन्होंने अनुभव किया कि शिक्षा के बिना कोई दूसरा विकल्प नहीं है. ना ही कोई क्रांति आ सकती है और ना ही परिवर्तन हो सकता है. इस कारण उन्होंने सभी को शिक्षा देने पर बल दिया. उन्होंने समाज में फैली कुछ गलत धारणाएं बदलने की ठान ली. उस समय महिलाओं को शिक्षा देने से धर्म डूबने वाली मिथ्या बातें भारतीय समाज में अस्तित्व में थी और महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता. इसके विरुद्ध बगावत करते हुए वर्ष 1848 में महात्मा फुले ने लड़कियों के लिए पहली पाठशाला शुरू की. इसके पश्चात 1852 में लड़कों के लिए भी अलग पाठशाला स्थापित की. इन स्कूलों में सभी जाति धर्म के स्त्री -पुरुषों को प्रवेश दिया जाता. महात्मा फुले के कार्य की विशेषता यही थी कि स्त्री -पुरुष समानता में विश्वास रखते हुए ही निर्णय किया करते.
वर्ष 1835 में उन्होंने ‘हंटर कमीशन’ के समक्ष गवाही देते हुए इस बात का महत्व समझाया कि समाज को गुलामी से मुक्त करने के लिए महिलाओं को शिक्षा प्रदान करना अनिवार्य है. अपनी पुस्तक ‘शेतकर्यांचे असूड’ के आमुख में महात्मा फुले ने शिक्षा ना होने के कारण देश के शूद्र और वंचितों की अवस्था के बारे में लिखा है-
“विद्येविना मती गेली, मती विना निती गेली, नितीविना गती गेली, गती विना वित्त गेले, वित्ता विना शुद्र खचले ,इतके सगळे अनर्थ एका अविज्ञेने केले”
यहाँ वे स्पष्ट रूप से शिक्षा के न होने को सभी बुराइयों का कारण बता रहे है. महात्मा फुले निर्माण क्षेत्र से संबंधित थे. पुणे- सातारा मार्ग पर कात्रज के निकट उन्होंने एक भव्य सुरंग का निर्माण कार्य किया है. खड़कवासला बांध के अधिकांश काम के साथ ही पुणे में अनेक पुल निर्माण करने का काम भी उन्हीं की कंपनी ने किया है. निर्माण व्यवसाय से मिलने वाला पैसा वह जन कल्याण पर खर्च करते. इस आय से उन्होंने गरीबों को शिक्षा देने के लिए पाठशालाएं शुरू की. महात्मा फुले संकुचित राष्ट्रवाद के विरोधी थे तथा उनके राष्ट्रवाद की संकल्पना सर्वसमावेशक थी.
महात्मा फुले ने महिला भ्रूण हत्या केन्द्र की स्थापना कर दुर्बल, निराधार महिलाओं को सहारा दिया. इन महिलाओं में काशीबाई नाथू नामक महिला के यशवंत नामक बेटे को दत्तक लेकर उन्होंने अपने विचार और संपत्ति का वारस बनाया, इसलिए भी महात्मा फुले को क्रांतिकारक कहा जाना चाहिए ऐसा डा कोकाटे ने कहा.
उन्होंने आगे कहा कि कम आयु में विधवा होने वाली महिलाओं को तत्कालीन समाज के रीति रिवाज के अनुसार सिर मुंडाना पड़ता. इस अमानुष प्रथा को महात्मा फुले ने बंद भी किया और नाभिक की एक संगठन भी गठित की.
महात्मा फुले का साहित्य आम लोगों को आत्मविश्वास देने वाला
महात्मा फुले का साहित्य क्रांतिकारक है क्योंकि इससे दुर्बल और वंचित समाज को प्रेरणा दी और उनका आत्मविश्वास बढ़ाया है. गुलामगिरी, शेतकार्याचा असुड, ब्रह्मनांचे कसब, सार्वजनिक सत्य धर्म, शिवरायांचा पोवाला, तृतीय रत्न नाटक जैसे साहित्य से उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को मिले.
महात्मा फुले ने शिवजन्मोत्सव की नींव रखी
आधुनिक महाराष्ट्र को छत्रपति शिवाजी महाराज का परिचय कराने का अधिकतम श्रेय महात्मा फुले को ही जाता है. वर्ष 1869 में महात्मा फुले रायगढ़ गए और शिवराय की समाधि को ढूंढने के बाद वे चार दिनों तक वही रहे. रायगढ़ से लौटने के पश्चात पुणे में उन्होंने वर्ष 1869 से छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म उत्सव मनाना शुरू किया और देश में शिवजन्मोत्सव की नींव रखी.
डा कोकाटे ने आगे बताया कि 30 सितंबर 1873 को महात्मा फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की और विवेकपूर्ण पीढ़ी का निर्माण कार्य किया. उनकी इस प्रेरणा से श्रमिकों ने संगठन स्थापित करने शुरू किए और नारायण मेघाजी लोखंडे जो महात्मा फुले के अनुयाई थे समूचे देश में श्रमिक संघटना के पहले अध्यक्ष बने.
पुणे, सातारा, जुन्नर आदि संभागों में सूखे के समय महात्मा फुले ने उनके आवास से सटे पानी की विशाल टंकियों को अछूतों के लिए खुला किया और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में लोगों को खाद्य पहुंचाने का काम किया. महात्मा फुले के क्रांतिकारी कम का गौरव करने के लिए उनके अनुयाई, सहयोगी तथा सभी क्षेत्र के लोगों ने 1888 में मुंबई में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उनको महात्मा पदवी से नवाजा. महात्मा फुले ने शैक्षिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में किए हुए उल्लेखनीय कामों से प्रेरणा लेकर महाराष्ट्र में आगे चलकर अनेक विकासशील कार्य हुए हैं, ऐसा भी डा कोकाटे ने बताया.
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