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*राकेश शर्मा
कुछ दिनों से मन बहुत व्यथित और विचलित है। मेरे देश को क्या हो गया है , हम कहाँ जा रहे हैं , क्या १९४७ दोहराया जा रहा है और हम मूकदर्शक बने एक और विघटन का हाथ पर हाथ धरे इंतज़ार कर रहें है। कुछ लोगों को यह कथन असहज लग सकता है लेकिन देश में लगातार बड़ते सांप्रदायिक विद्वेष से तो ऐसा ही लगता है।छद्म धर्मनिरपेक्ष ताक़तें इस तांडव को देखकर एकदम मौन हो जाती है और सरकार पर दोषारोपण करने लगती हैं। धार्मिक जलूसों और उत्सवों पर पथराव, गोलीबारी, आगज़नी करने वालों को कुछ नहीं कहते। क्या हम अपने ही देश में बिना सुरक्षा कवच अपने त्योहार भी नहीं मना सकते। धार्मिक उत्सव में शामिल होना कौनसा अपराध है जो भक्तों को, पत्थरों, गोलियों, तलवारों का सामना करना पड़ता है और विपक्ष रटा रटाये तोते की तरह एक ही बात हर बार कहता है सुरक्षा व्यवस्था कहाँ थी। उपद्रवियों के लिए मुँह में दही ज़मी होती है क्यूँकि उससे इनका वोट बैंक नाराज़ हो जाएगा , देश जाए भाड़ में।
यह कुछ जेहादी तत्वों द्वारा सोचे समझे षड्यंत्र का हिस्सा भी हो सकता है जिसमें भारत के विकास से चिढ़ी विदेशी शक्तियाँ भी हो सकती हैं जो अंतरराष्ट्रीय टूलकिट का हिस्सा हैं और गजवाये हिन्द के पोषक इसे हाथों हाथ ले रहे हैं।जॉर्ज सोरोस का वक्तव्य हल्के में ना लें की मोदी को हटाने के लिए मैंने लाखों डॉलर अलग रखें हुए है।
हाल ही में हुई घटनाएँ जिसमें नांगलोई में मुहर्रम का जलूस निकालते हुए कुछ आपराधिक तत्वों ने तयशुदा रूट से भिन्न रूट पर जाने को लेकर ऐसा आतंक मचाया की हज़ारों निर्दोषों को दुबक कर, बसों में घंटों लेटकर अपनी जान बचानी पड़ी, नूह्ण में शिवभक्त मंदिर में जल चढ़ाने जा रहे थे और उनपर अचानक ही पत्थरबाज़ी, गोलीबारी, बम से हमला, आगज़नी, वाहनों और दुकानों का जलाना, सुरक्षा कर्मियों और साधारण नागरिकों को मारना , घायल करना बहुत से प्रश्न खड़े करता है। दोनो ही घटनाएँ और देश में सैकड़ों ऐसी घटनाएँ अचानक नहीं हो रही। सोची समझी साज़िश के तहत यह सब हो रहा है जिसकी तैयारी बहुत पहले से होती है वर्ना इतना असला अचानक से कहाँ से आ जाता है।
इस देश विरोधी साज़िश का पर्दाफ़ाश होना ही चाहिए और ऐसे सख़्त क़ानून बनाये जायें जिससे ऐसे तत्वों की हिम्मत ही ना हो सके।
यह सब देश द्रोह से कम नहीं है। जब देश में सांप्रदायिक सौहार्द और शांति को हर रोज़ चुनौती दी जा रही हो तो इसे और क्या कहेंगे। इन लोगो को कवर फायर देने वाले प्रवक्ताओं और नेताओं पर भी देशद्रोह के मुक़दमे क़ायम होने चाहिए।
इन जेहादियों , आतंकवादियों की आदत सी हो गई है की जब चाहें, जहां चाहें अराजकता फेलाओ, रास्ते रोको, हिंसक हो जाओ निर्दोषों को मारो , एक धर्म विशेष के प्रभुत्व के इलाक़े बनाना और बढ़ाना किस और इशारा कर रहें है। यह ज़मीनी हक़ीक़त है इसे झुठलाने वाले बिल्ली को देखकर कबूतर द्वारा आँखें बंद करने की कहावत चरितार्थ कर रहें है।
हाँ ऐसी घटनाओं पर योगी बाबा की बहुत याद आती है। सबसे ज़्यादा योगीजी से पहले यही सब उत्तर प्रदेश में होता था लेकिन एक दृढ़ निश्चयी , निष्पक्ष और ईमानदार शासक के शासन काल में यह सब शांत कैसे हो गया। कर्तव्य विमुख मुख्यमंत्रियों को योगी जी से सीखना चाहिए जिससे देश विरोधी नकारात्मक लोगो के बावजूद भारत में शांति स्थापित हो सके, देश आगे बढ़ सके।
केंद्र को भी इन घटनाओं को
ना होने देने के लिए सख़्त से सख़्त क़ानून बनाने चाहिए, न्यायालय को भी ऐसे विध्वंसक तत्वों के प्रति कोई हमदर्दी नहीं होनी चाहिए बल्कि सरकारों से पूछना चाहिए इनसे सख़्ती से सरकारें क्यूँ नहीं निबटती। मैं तो ऐसे निर्दयी और देश विरोधी लोगो को मृत्यु दंड का पक्षधर हूँ।
*राकेश शर्मा, नई दिल्ली
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