राष्ट्र का कौशल और शक्ति बढ़ रही है, वैश्विक मान्यता प्राप्त हो रही है – उपराष्ट्रपति धनखड़
उपराष्ट्रपति ने सफलता को ग्रेड से परे सीखने के जुनून के रूप में परिभाषित किया
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 11दिसंबर। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को इस बात पर जोर दिया कि “भारत विश्व गुरु के अपने गौरव को पुनः प्राप्त करने के लिए अपना मार्ग प्रशस्त कर रहा है।” उन्होंने युवा नेताओं से भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक रास्ता बनाने, एक ऐसे भारत की विरासत पाने के लिए आशा और धैर्य को बढ़ावा देने का आग्रह किया जो अपने समृद्ध सभ्यतागत लोकाचार को संजोता है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “आइए विश्वास करें, कार्यान्वित करें, सहयोग करें और सबसे बढ़कर, परिवर्तन लाने वाले बनने की आकांक्षा करें क्योंकि हम 2047 की ओर बढ़ रहे हैं।”
आज जमशेदपुर में एक्सएलआरआई – जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के प्लैटिनम जुबली समारोह को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने छात्रों को इरादे और कार्यान्वयन दोनों में आर्थिक राष्ट्रवाद को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करके युवाओं के बीच “स्वदेश” की भावना को फिर से विकसित करने की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने विदेशी मुद्रा भंडार को संरक्षित करने से लेकर उद्यमिता को बढ़ावा देने और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने तक इसके कई लाभ बताए।
असफलता के डर को ‘विकास विरोधी और वृद्धि विरोधी’ बताते हुए, श्री धनखड़ ने रेखांकित किया कि डर के कारण किसी विचार को आगे बढ़ाने से बचना न केवल खुद के साथ अन्याय करता है, बल्कि बड़े पैमाने पर मानवता पर भी अन्याय करता है।
इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि हम “चौथी औद्योगिक क्रांति के द्वार” पर खड़े हैं, उपराष्ट्रपति ने कई अभूतपूर्व प्रौद्योगिकियों के उद्भव को रेखांकित किया, जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, मशीन लर्निंग, क्वांटम कंप्यूटिंग, 6जी तकनीक और हरित हाइड्रोजन शामिल हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ये नवाचार अद्वितीय अवसर प्रदान करेंगे, उद्योगों को नया आकार देंगे, समाधानों की फिर से कल्पना करेंगे और हमारे जीवन और कार्य के तरीके में मौलिक क्रांति लाएंगे।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि “यह समझना महत्वपूर्ण है कि सफलता केवल किताबों के भार या ग्रेड के दबाव से नहीं मापी जाती है, बल्कि सीखने के जुनून और चुनौतियों पर काबू पाने के लचीलेपन से मापी जाती है।”
देश की बढ़ती ताकत और वैश्विक मान्यता को रेखांकित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने सराहना की कि, “भारत की ढांचागत प्रगति नए संसद भवन, भारत मंडपम और विशाल यशोभूमि, प्रधानमंत्री म्यूज़ियम जैसे आधुनिक चमत्कारों से भरी हुई है” और उन्हें कम से कम संभव समय में पूरा किए जाने की सराहना की।
अपने संबोधन के दौरान, उपराष्ट्रपति ने टिप्पणी की कि “तनाव-मुक्त मानसिकता न केवल रचनात्मकता और नवीनता को बढ़ाती है बल्कि समग्र विकास को भी बढ़ावा देती है।” उन्होंने बताया कि यह दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक छात्र न केवल शैक्षणिक रूप से बल्कि एक सर्वांगीण व्यक्ति के रूप में भी विकसित हो, जो कक्षा से परे जीवन की जटिलताओं से निपटने में सक्षम हो।
धनखड़ ने जमशेदपुर को ‘नवाचार और उद्यम’ का शहर बताते हुए छात्रों को ‘नया सोचने’ के लिए प्रेरित किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि “एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद है जहां यह आपको अपनी प्रतिभा, क्षमता का पूरी तरह से उपयोग करने, अपने सपनों और आकांक्षाओं को साकार करने की अनुमति देता है।”
इस अवसर पर झारखंड के राज्यपाल श्री सी.पी. राधाकृष्णन, एक्सएलआरआई के निदेशक फादर एस. जॉर्ज, एक्सएलआरआई के अकादमिक डीन प्रोफेसर संजय पात्रो और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
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