ज्ञान, शोध और विज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने वाला गया

जीजी न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली,21 मई ।
भारत के महान वैज्ञानिक, खगोल भौतिकी के दिग्गज और विज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने वाले अद्वितीय व्यक्तित्व डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर अब हमारे बीच नहीं रहे। 87 वर्ष की आयु में उन्होंने मंगलवार को पुणे में अंतिम सांस ली। उनके निधन के साथ भारत ने न केवल एक वैज्ञानिक को खोया है, बल्कि ब्रह्मांड को समझने वाले एक सच्चे ज्योतिर्धर को अलविदा कहा है।

डॉ. नार्लीकर उन विरलों में थे जिन्होंने विज्ञान को प्रयोगशालाओं और शोध पत्रों की दीवारों से निकालकर आमजन की ज़ुबान और सोच तक पहुँचाया। पद्मविभूषण से सम्मानित यह वैज्ञानिक भारत में खगोल भौतिकी की नींव को सशक्त करने वाला एक स्तंभ थे।

19 जुलाई 1938 को जन्मे डॉ. नार्लीकर का बचपन ज्ञान के वातावरण में बीता। उनके पिता, विष्णु वासुदेव नार्लीकर, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में गणित विभाग के प्रमुख थे। यह अकादमिक परिवेश ही वह बीज था, जिससे भविष्य का वैज्ञानिक अंकुरित हुआ।

अपनी विलक्षण प्रतिभा के चलते वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय पहुँचे, जहाँ उन्होंने गणितीय ट्रिपोस में रैंगलर और टायसन पदक जैसे प्रतिष्ठित सम्मान अर्जित किए। यह वो दौर था जब उन्होंने विश्व विज्ञान समुदाय में अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी।

डॉ. नार्लीकर 1972 में भारत लौटे और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) से जुड़ गए। यहीं से उनके नेतृत्व में खगोल भौतिकी के सिद्धांतों पर काम करने वाले समूह ने अंतरराष्ट्रीय पहचान बनानी शुरू की। परंतु उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही IUCAA (इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स) की स्थापना, जिसके वे 1988 में संस्थापक निदेशक बने।

2003 तक IUCAA के निदेशक पद पर रहते हुए उन्होंने इसे देश का अग्रणी शोध संस्थान बना दिया। बाद में वे वहीं एमेरिटस प्रोफेसर के रूप में जुड़े रहे।

डॉ. नार्लीकर सिर्फ वैज्ञानिक नहीं थे, वे विज्ञान के कथाकार भी थे। उन्होंने दर्जनों लोकप्रिय विज्ञान पुस्तकें, लेख, विज्ञान कथाएँ, और रेडियो-टीवी कार्यक्रम तैयार किए। 1996 में उन्हें यूनेस्को का ‘कलिंग पुरस्कार’ विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए मिला। उनकी आत्मकथा को साहित्य अकादमी द्वारा 2014 में मराठी भाषा में सर्वोच्च सम्मान से नवाज़ा गया।

  • 1965 – मात्र 26 वर्ष की उम्र में पद्मभूषण

  • 2004 – देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण

  • 2011 – महाराष्ट्र सरकार का महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार

  • 2012 – थर्ड वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा विज्ञान में उत्कृष्टता का पुरस्कार

डॉ. नार्लीकर का जाना खगोल विज्ञान की दुनिया का एक अपूर्णनीय क्षय है। वे न केवल शोधकर्ता थे, बल्कि आम आदमी को ब्रह्मांड से जोड़ने वाला सेतु थे। उनकी लेखनी, उनकी व्याख्याएँ और उनका व्यक्तित्व आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।

आज जब हम आकाश की ओर देखें, तो कहीं न कहीं कोई तारा थोड़ा और तेज़ चमक रहा होगा – शायद वह डॉ. नार्लीकर ही हैं, जो ब्रह्मांड में भी विज्ञान के रहस्य सुलझा रहे हैं।

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