राजधानी दिल्ली में धीमी पड़ी वैक्सीनेशन की रफ्तार, खुले आसमान के नीचे रहने वालें कहां से लाए पहचान पत्र

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्‍ली, 23जून। देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना का सबसे केंद्र होने के बाद भी यहां की वैक्सीनेश की रफ्तार धीमी पड़ी हुई है। और हो भी क्यों ना..राजधानी दिल्ली में हजारों की संख्या में लोगों के पास ना रहने को घर है ना ही उनके जीविका चलाने का कोई साधन ना ही उनके पास कोई पहचान पत्र है। वे नाइट शेल्टर में सोकर अपनी रात गुजारते है।
देश की राजधानी दिल्‍ली में 200 नाइट शेल्‍टर और सड़क पर खुले आसमान के नीचे रहने वाले लोगों को अब तक कोरोना वैक्‍सीन की पहली डोज भी नहीं लगी है दिल्‍ली में रहने वाले ये लोग या तो रिक्‍शा या फिर मेहनत मजदूरी या कोई सामान ढोने का काम करके अपना जीवन यापन कर रहे हैं। यही नहीं, इनमें कुछ तो घरों में साफ सफाई का काम भी करते हैं।
बहरहाल, दिल्‍ली के करीब 200 नाइट शेल्‍टर में 4000 लोग रहते हैं और खुले आसमान के नीचे रहने वालों की संख्‍या भी काफी है। जानकारी के मुताबिक, दिल्‍ली में करीब छह हजार लोग खुले आसमान के नीचे अपनी रात गुजारते हैं। यही नहीं, लॉकडाउन के बाद जब यह लोग काम पर लौटे तो इन्‍हें अपना वैक्‍सीनेशन सर्टिफिकेट दिखाने को बोला गया, लेकिन इनके पास कोई आईडी नहीं है, तो वैक्‍सीन नहीं लग पा रही है और काम भी नहीं मिल पा रहा है।
दरअसल, दिल्‍ली में नाइट शेल्‍टर और खुले आसमान के नीचे रहने वालों के पास ना तो आधार कार्ड है, ना ड्राइविंग लाइसेंस, ना पैन कार्ड, ना पासपोर्ट और ना बैंक के कोई कागजात हैं। इसी वजह से इनका वैक्‍सीनेशन नहीं हो पा रहा है। हालांकि बेघरों के मामले को लेकर कई संस्‍थाएं सरकार और डीएम को पत्र लिख चुकी हैं, लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला है। दिल्ली सरकार अपनी एयर कंडिशनर घरों में सो रही है जबकि उसकी जनता बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि दिल्ली के शेल्टर हाउस में रहने वाले इतनी बड़ी संख्या में इन लोगों के पास आखिर कोई पहचान पत्र क्यों नहीं है। क्या दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी में ये लोग नहीं आते है??

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