समग्र समाचार सेवा
लखनऊ, 31जुलाई। आगामी लोकसभा चुनाव के लिए फूंक फूंक कर कदम रख रही मायावती इस बार कई नए फार्मूर्ले पर काम कर रही हैं। अभी तक वह न एनडीए में हैं और न ही विपक्ष इंडिया में शामिल हुई हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो आगे आने वाले चार राज्यों के चुनाव में नतीजों के माहौल के बाद अकेले चलने या किसी गठबंधन में जाने का फैसला कर सकती हैं।
जानकारों की मानें तो लगातार चुनावों में हार का मुंह देख रही बसपा लोकसभा जीतने के लिए इस समय तीन फॉर्मूले पर काम कर रही है। मायावती ने पहले कहा था कि हम किसी गठबंधन में शामिल नहीं होंगे। उन्होंने एनडीए के साथ दूरी बनाए रखी तो वहीं विपक्षी एकजुटता की पूरी कवायद से भी।
लेकिन कुछ दिनों बाद उनके रुख में बदलाव आया है और उन्होंने चुनाव बाद गठबंधन के संकेत दिए हैं तो इसके भी अपने मायने हैं। जिन चार राज्यों में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें से तीन में भाजपा और कांग्रेस मुख्य प्रतिद्वंदी है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है।
इन राज्यों में सरकार भाजपा या कांग्रेस में किसी की सरकार बनेगी। ऐसे में बसपा जिसकी सरकार बनेगी उस ओर रुख कर सकती हैं।
अभी वह माहौल भांफ रही हैं। इसीलिए उन्होंने ‘बैलेंस ऑफ पावर’ का हवाला देते हुए संकेत दिया है कि भविष्य में वह किसी गठबंधन का हिस्सा जरूर बन सकती हैं।
बसपा के वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि पार्टी को समझ में आ गया है कि सत्ता में रहने से लोग जुड़ते हैं, बाहर रहने पर लोग टूट जाते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि बसपा चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए भी अपना ऑफर दे रही है। इसके अलावा एक चर्चा ने और जोर पकड़ा है। इंडिया और एनडीए के इतर तीसरा ऐसा मोर्चा बनाया जाए जो इतना मजबूत हो कि सरकार चाहे किसी की भी बने, उसे मजबूर कर दे। यानी राजनीतिक हिस्सेदारी के लिए मायावती ने अपने नए फार्मूले पर काम शुरू कर दिया है।
माना जा रहा है कि इसके लिए मायावती औवेसी की पार्टी आईएमआईएमआई व अन्य किनारे खड़े दलों को साथ ले सकती हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बसपा इन दिनों दलित मुस्लिम समीकरण को लेकर आगे बढ़ रही हैं। दलित उनके पाले में पहले से ही हैं। मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए वह नया दांव चल रही है। राजनीतिक चर्चा है कि वह औवेसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (आईएमआईएमआई ) के साथ गठबंधन कर सकती हैं।
इसके अलावा अन्य और कई छोटे दलों को अपने पाले में लिया जा सकता है। यह यूपी में दोनों के लिए एक बड़ी उम्मीदों का मंच हो सकता है।
राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि मायावती ने सारे आप्शन खोले रखे हैं। वह भाजपा के खिलाफ ज्यादा मुखर नहीं होती है। वह अपने दल की स्थित भी देख रही है। अभी चुनाव में काफी देरी है। कई राज्यों में चुनाव भी होने हैं, इसीलिए वो सधे कदम से राजनीति कर रही हैं। जब आगे गठबंधन की ताकत उभर कर सामने आयेगी तब वह अपने पत्ते खोलेंगी।
एक अन्य वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल ने कहा कि 2012 से बसपा सत्ता से बाहर है। मायवती किसी पार्टी के सामने अपने वर्करों के साथ एक जुट रखने का तरीका है कि आप सत्ता में आ जाएं। 2012 के बाद वो सारे कॉम्बिनेशन का प्रयोग कर चुकी हैं। इन्होंने अपने तीनों ऑप्शन खोल रखे हैं। सपा, कांग्रेस और भाजपा के साथ जाने के दरवाजे खोल रखे हैं। जो पार्टी मजबूत होकर उभरेगी तो वह उसी ओर झुकाव करेंगी। पांच राज्यों के चुनाव के बाद ही यह अपने पत्ते खोलेंगे। इनका जो रुख आज दिख रहा है। यह अभी आने वाले चुनाव तक दिखेगा।
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