संसद की प्राथमिक भूमिका संविधान को सुरक्षित रखना और लोकतंत्र की रक्षा करना है- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 28जुलाई। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज संसद भवन में नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्यों के लिए आयोजित ऑरिएंटेशन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए इस बात पर बल दिया कि संसद की प्राथमिक भूमिका संविधान को सुरक्षित रखना और लोकतंत्र की रक्षा करना है। उन्होंने कहा, “यदि लोकतंत्र पर कोई संकट आता है, यदि लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला होता है, तो आपकी भूमिका निर्णायक होती है।”

उपराष्ट्रपति ने कहा कि संसद के सदस्यों से अधिक गंभीर लोकतंत्र का संरक्षक कोई नहीं हो सकता। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि संसद में चर्चा के लिए कोई भी विषय वर्जित नहीं है, बशर्ते उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए। सदन की प्रक्रिया के नियमों में निर्धारित उचित प्रक्रिया का पालन किए जाने पर सभा अध्यक्ष के आचरण सहित किसी भी विषय पर चर्चा की जा सकती है।

संसद की स्वायत्तता पर जोर
संसद की स्वायत्तता और अधिकार पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि “संसद अपनी प्रक्रिया और कार्यवाही के लिए सर्वोच्च है। सदन में, संसद में कोई भी कार्यवाही समीक्षा से परे है, चाहे वह कार्यपालिका हो या कोई अन्य प्राधिकारी।” उन्होंने कहा कि “संसद के अंदर जो कुछ भी होता है, उसमें सभा अध्यक्ष के अलावा किसी को भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। यहां हस्तक्षेप कार्यपालिका या किसी अन्य संस्था का नहीं हो सकता।”

हिट एंड रन रणनीति पर चिंता
उपराष्ट्रपति ने संसद में सदस्यों द्वारा अपनाई जाने वाली हिट एंड रन रणनीति पर अत्यधिक चिंता व्यक्त की। उन्होंने इस प्रवृत्ति की आलोचना की, जिसमें एक सदस्य संसद में बोलने से पहले मीडिया को बाइट देता है, संसद में आता है और केवल ध्यान और मीडिया का स्थान पाने के लिए बोलता है और फिर अन्य सदस्यों की बात सुने बगैर सदन से बाहर चला जाता है और फिर बाहर जाकर मीडिया को बाइट देता है।

उन्होंने सदस्यों में मुद्दों पर बात करने के बजाय व्यक्तिगत हमले करने की बढ़ती प्रवृत्ति और सिर्फ़ कुछ लोगों को खुश करने के लिए चिल्लाने और नारे लगाने की प्रवृत्ति को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “इससे बड़ी विभाजनकारी गतिविधि कोई और नहीं हो सकती।”

आपातकाल का संदर्भ
उपराष्ट्रपति ने आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का एक दर्दनाक, हृदय विदारक और सबसे काला अध्याय बताते हुए इस बात पर बल दिया कि उस दौरान हमारा संविधान केवल एक कागज़ तक सीमित रह गया था, जिसमें मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन किया गया था और नेताओं को अन्यायपूर्ण तरीके से जेल में डाला गया था। उन्होंने संसद के समग्र प्रदर्शन पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे संसद सदस्यों ने शुरू से ही आम लोगों के समर्थन में काम किया है और आपातकाल की अवधि को छोड़कर इस राष्ट्र के विकास में योगदान दिया है।

राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता
देश में संसदीय प्रणाली की वर्तमान स्थिति पर दुख व्यक्त करते हुए, उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे क्षण होते हैं कि जब राष्ट्रीय मुद्दों और हितों को राजनीतिक हितों से ऊपर रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज (वर्तमान) जो स्थिति है वह चिंताजनक है और संसद में व्यवधान और गड़बड़ी को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “यह लोकतंत्र की मूल भावना पर हमला है। गरिमा को नुकसान पहुंचाना, लोकतंत्र की जड़ों को हिलाना है। लोकतंत्र के लिए इससे बड़ा कोई खतरा नहीं हो सकता कि यह धारणा बनाई जाए कि संसद और राष्ट्र की प्रतिष्ठा की कीमत पर राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए व्यवधान और गड़बड़ी राजनीतिक हथियार हैं।”

संविधान सभा की सराहना
विचार-विमर्श के संरक्षक तथा संवैधानिक मूल्यों एवं स्वतंत्रता के किले के रूप में संसद की प्रतिष्ठित भूमिका पर रोशनी डालते हुए, उपराष्ट्रपति ने विशुद्ध रूप से राजनीतिक दृष्टिकोण से राष्ट्रवाद और देश के व्यापक कल्याण पर केंद्रित दृष्टिकोण की ओर बदलाव का आह्वान किया। उन्होंने संविधान सभा की कार्यवाही की सराहना की और इसे आधुनिक भारतीय लोकतंत्र के लिए एक ध्रुव तारा और मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में उल्लेखित किया।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग
सदन में बोलने वाले सदस्यों को संविधान द्वारा दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग के बारे में चिंताओं को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह स्वतंत्रता सदस्यों को लोकतंत्र की रक्षा करने और संविधान की सुरक्षा करने के लिए दी गई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी दुरुपयोग से संसदीय नियमों के अनुसार निपटा जाएगा और कहा कि उन्हें सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई करने में कोई खुशी नहीं मिलती है।

प्रधानमंत्री की भूमिका
उपराष्ट्रपति ने यह भी बताया कि छह दशकों में पहली बार किसी प्रधानमंत्री के लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए चुना गया है। उन्होंने सदन के नेता के रूप में प्रधानमंत्री की भूमिका पर जोर दिया, जो पार्टी लाइन से परे पूरे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। राज्यसभा में हाल ही में हुए व्यवधानों पर चिंता व्यक्त करते हुए, उपराष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री के प्रति धन्यवाद प्रस्ताव के जवाब के दौरान दिखाए गए सम्मान की कमी की आलोचना की।

निष्पक्षता और पारदर्शिता
उपराष्ट्रपति ने पक्षपात के किसी भी आरोप को दृढ़ता से खारिज किया और संविधान, कानून के शासन और राष्ट्रीय हितों के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता की पुष्टि की। उन्होंने सभी सदस्यों से इन मूलभूत सिद्धांतों पर विचार करने और संसदीय कार्यवाही की गरिमा बनाए रखने का आह्वान किया।

पूर्व-निर्धारित व्यवधानों की आलोचना
राजनीतिक दलों द्वारा पूर्व-निर्धारित व्यवधानों की प्रथा का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने ऐसी कार्रवाइयों की वैधता पर सवाल उठाया तथा उनकी तुलना अन्य देशों के मजबूत लोकतंत्रों से की, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत न होने के बावजूद, प्रभावी संसदीय प्रथाओं को बनाए रखते हैं।

लोकतांत्रिक स्तंभों की मजबूती
उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के बुनियादी स्तंभों-कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के कमजोर होने से अंततः आम नागरिक पर असर पड़ता है। उन्होंने सदन में सम्मान और रचनात्मक संवाद की वापसी का आह्वान किया और सरकार से पारदर्शिता, जवाबदेही और दूरदर्शी योजना की जरूरत पर जोर दिया, जो वर्तमान प्रथाओं के कारण बाधित है।

प्रश्नकाल की प्रभावशीलता
हर सवाल पर अनुपूरक प्रश्न पूछने की कोशिश करने की प्रथा को हतोत्साहित करते हुए, उन्होंने सदस्यों से मंत्रियों के उत्तरों की गहन समीक्षा करने और प्रासंगिक अनुपूरक प्रश्न पूछने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने प्रश्नों का चयन करते समय लिंग और पार्टी संतुलन सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया और वरिष्ठ नेताओं से एक उदाहरण स्थापित करने के लिए सक्रिय रूप से भाग लेने का आग्रह किया।

मनोनीत सदस्यों की भूमिका
समाज को जागरूक करने में राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त मनोनीत सदस्यों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, उपराष्ट्रपति ने उन्हें अपने योगदान का दस्तावेजीकरण करने के लिए एक वार्षिक पुस्तिका बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने सदस्यों से महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए विशेष उल्लेखों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने का भी आग्रह किया और जोर दिया कि ये केवल औपचारिकताएं नहीं हैं, बल्कि कार्रवाई शुरू करने के साधन हैं।

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