केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने इन य़ोजनाओं पर लगाई मुहर, यहां जानें सरकार की योजनाएं

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 12जनवरी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अप्रैल 2022 से एक वर्ष की अवधि के लिए रुपे डेबिट कार्ड और कम मूल्य वाले भीम-यूपीआई लेनदेन (व्यक्ति से व्यापारी) को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन योजना को मंजूरी दे दी है।

रुपे डेबिट कार्ड और कम मूल्य वाले भीम-यूपीआई लेनदेन (पी2एम) को बढ़ावा देने के लिए स्वीकृत प्रोत्साहन योजना का वित्तीय परिव्यय 2,600 करोड़ रुपये है। उक्त योजना के तहत, चालू वित्त वर्ष 2022-23 के लिए रुपे डेबिट कार्ड और कम मूल्य के भीम-यूपीआई लेनदेन (पी2एम) का उपयोग करके पॉइंट-ऑफ-सेल (पीओएस) और ई-कॉमर्स लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए, अधिगृहीत किए जाने बैंकों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा।
वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 2022-23 के बजट के दौरान अपने भाषण में, पिछले बजट में घोषित डिजिटल भुगतानों के लिए वित्तीय सहायता जारी रखने की सरकार की मंशा की घोषणा की, जो कि किफायती और उपयोगकर्ता के अनुकूल भुगतान प्लेटफार्मों के उपयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। यह योजना उपरोक्त बजट घोषणा के अनुपालन में तैयार की गई है।
वित्त वर्ष 2021-22 में, सरकार ने डिजिटल लेनदेन को और बढ़ावा देने के लिए वित्त वर्ष 2021-22 की बजट घोषणा के अनुपालन में एक प्रोत्साहन योजना को मंजूरी दी थी। परिणामस्वरूप, कुल डिजिटल भुगतान लेनदेन में 59 प्रतिशत की साल-दर-साल वृद्धि दर्ज की गई है, जो वित्त वर्ष 2020-21 में 5,554 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 8,840 करोड़ हो गया है। भीम-यूपीआई लेनदेन ने 106 प्रतिशत की साल-दर-साल वृद्धि दर्ज की है, जो वित्त वर्ष 2020-21 में 2,233 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 4,597 करोड़ हो गया है।
डिजिटल भुगतान प्रणाली के विभिन्न हितधारकों और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने डिजिटल भुगतान संबंधी इकोसिस्टम के विकास पर शून्य एमडीआर शासन के संभावित प्रतिकूल प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की। इसके अलावा, नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) ने भीम-यूपीआई और रुपे डेबिट कार्ड लेनदेन को प्रोत्साहित करने के लिए इकोसिस्टम से जुड़े हितधारकों के लिए किफायती मूल्य प्रस्ताव तैयार करने, व्यापारियों द्वारा इसकी स्वीकार्यता बढ़ाने और नकद भुगतान के स्थान पर डिजिटल भुगतान करने के लिए अनुरोध किया।
भारत सरकार देश भर में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए अनेक पहल कर रही है। पिछले वर्षों में, डिजिटल भुगतान लेनदेन में जबरदस्त वृद्धि देखी गई है। कोविड-19 संकट के दौरान, डिजिटल भुगतान ने छोटे व्यापारियों सहित व्यवसायों के कामकाज को सुगम बनाया और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने में मदद की। यूपीआई ने दिसंबर 2022 के महीने में 12.82 लाख करोड़ रुपये के मूल्य के साथ 782.9 करोड़ डिजिटल भुगतान लेनदेन का रिकॉर्ड बनाया है।
यह प्रोत्साहन योजना एक मजबूत डिजिटल भुगतान इकोसिस्टम के निर्माण और रुपे डेबिट कार्ड व भीम-यूपीआई डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने की सुविधा प्रदान करेगी। ‘सबका साथ, सबका विकास’ के उद्देश्य के अनुरूप, यह योजना यूपीआई लाइट और यूपीआई 123पे को किफायती और उपयोगकर्ता के अनुकूल डिजिटल भुगतान समाधान के रूप में भी बढ़ावा देगी तथा देश में सभी क्षेत्रों और लोगों के अन्य वर्गों में डिजिटल भुगतान को और भी अधिक प्रमुखता प्रदान करने में सक्षम बनाएगी।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने बहु-राज्य सहकारी समिति (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 के तहत एक राष्ट्रीय स्तर की बहु-राज्य सहकारी निर्यात समिति की स्थापना को मंजूरी दी

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बहु-राज्य सहकारी समिति (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 के तहत संबंधित मंत्रालयों, विशेष रूप से विदेश मंत्रालय तथा वाणिज्य विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के समर्थन से एक राष्ट्रीय स्तर की बहु-राज्य सहकारी निर्यात समिति की स्थापना और इसके संवर्धन को मंजूरी दे दी है। प्रासंगिक केंद्रीय मंत्रालय, ‘संपूर्ण सरकारी दृष्टिकोण’ का पालन करते हुए अपनी निर्यात संबंधी नीतियों, योजनाओं और एजेंसियों के माध्यम से सहकारी समितियों और संबंधित संस्थाओं द्वारा उत्पादित सभी वस्तुओं व सेवाओं के निर्यात के लिए प्रस्तावित समिति को समर्थन प्रदान करेंगे।

प्रस्तावित समिति निर्यात करने और इसे बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक (अम्ब्रेला) संगठन के रूप में कार्य करते हुए सहकारी क्षेत्र से निर्यात पर जोर देगी। इससे वैश्विक बाजारों में भारतीय सहकारी समितियों की निर्यात क्षमता को गति देने में मदद मिलेगी। प्रस्तावित समिति ‘संपूर्ण सरकारी दृष्टिकोण’ के माध्यम से सहकारी समितियों को भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की विभिन्न निर्यात संबंधी योजनाओं और नीतियों का लाभ प्राप्त करने में भी सहायता प्रदान करेगी। यह सहकारी समितियों के समावेशी विकास मॉडल के माध्यम से “सहकार-से-समृद्धि” के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी मदद करेगी, जहां सदस्य, एक ओर अपनी वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात के माध्यम से बेहतर मूल्य प्राप्त करेंगे, वहीँ दूसरी ओर वे समिति द्वारा उत्पन्न अधिशेष से वितरित लाभांश द्वारा भी लाभान्वित होंगे।

प्रस्तावित समिति के माध्यम से होने वाले उच्च निर्यात के कारण सहकारी समितियां, विभिन्न स्तरों पर अपनी वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि करेंगी, जिससे सहकारी क्षेत्र में रोजगार के ज्यादा अवसर पैदा होंगे। वस्तुओं के प्रसंस्करण और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप सेवाओं को बेहतर बनाने से भी रोजगार के अतिरिक्त अवसर पैदा होंगे। सहकारी उत्पादों के निर्यात में वृद्धि, “मेक इन इंडिया” को भी प्रोत्साहन देगी, जिससे अंततः आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा मिलेगा।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बहु-राज्य सहकारी समिति (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 के तहत एक राष्ट्रीय स्तर की बहु-राज्य सहकारी जैविक सोसायटी की स्थापना को स्वीकृति दी
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विशेष रूप से वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय (एम/डोनर) की नीतियों, योजनाओं और एजेंसियों के माध्यम से ‘संपूर्ण सरकार के दृष्टिकोण’ के समर्थन के साथ बहु-राज्य सहकारी समिति (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 के तहत जैविक उत्पादों के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की सहकारी समिति को स्थापित करने और बढ़ावा देने के एक ऐतिहासिक निर्णय को स्वीकृति दे दी है।

प्रधानमंत्री ने कहा है कि सहकारी समितियों की क्षमता का लाभ उठाने के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए और उन्हें “सहकार-से-समृद्धि” के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए सफल और प्रेरक व्यावसायिक उद्यमों में बदलना चाहिए। इस प्रकार सहकारी समितियों के लिए वैश्विक स्तर पर विचार करना और इसका तुलनात्मक लाभ उठाने के लिए स्थानीय रूप से कार्य करना अनिवार्य है।

इसलिए, जैविक क्षेत्र से संबंधित विभिन्न गतिविधियों के प्रबंधन के लिए एक संगठन के रूप में कार्य करके सहकारी क्षेत्र से जैविक उत्पादों पर जोर देने के लिए एमएससीएस अधिनियम, 2002 की दूसरी अनुसूची के अंतर्गत पंजीकृत होने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की सहकारी समिति की आवश्यकता महसूस की गई है।

पैक्स से एपेक्स: प्राथमिक से राष्ट्रीय स्तर की सहकारी समितियां, जिनमें प्राथमिक समितियां, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के संघ, बहु राज्य सहकारी समितियां और किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) शामिल हैं, इसके सदस्य बन सकते हैं। इन सभी सहकारी समितियों के उपनियमों के अनुसार सोसायटी के बोर्ड में उनके निर्वाचित प्रतिनिधि शामिल होंगे।

सहकारी समिति प्रमाणित एवं प्रामाणिक जैविक उत्पाद उपलब्ध कराकर जैविक क्षेत्र से संबंधित विभिन्न गतिविधियों का संचालन करेगी। यह घरेलू के साथ-साथ वैश्विक बाजारों में जैविक उत्पादों की मांग और खपत क्षमता को जानने में मदद करेगी। यह सोसायटी सहकारी समितियों और अंततः उनके किसान सदस्यों को सस्ती कीमत पर जांच व प्रमाणन की सुविधा देकर व्यापक स्तर पर एकत्रीकरण, ब्रांडिंग और विपणन के माध्यम से जैविक उत्पादों के उच्च मूल्य का लाभ प्राप्त करने में मदद करेगी।

सहकारी समिति प्राथमिक कृषि ऋण सहित सदस्य सहकारी समितियों के माध्यम से जैविक किसानों को एकत्रीकरण, प्रमाणन, जांच, खरीद, भंडारण, प्रसंस्करण, ब्रांडिंग, लेबलिंग, पैकेजिंग, रसद सुविधाओं, जैविक उत्पादों के विपणन और वित्तीय सहायता की व्यवस्था के लिए संस्थागत मदद भी प्रदान करेगी। सोसायटी/किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) और सरकार की विभिन्न योजनाओं और एजेंसियों की मदद से सभी जैविक उत्पादों के प्रचार व विकास संबंधी गतिविधियों में भागीदारी करेंगे। यह उन मान्यता प्राप्त जैविक परीक्षण प्रयोगशालाओं और प्रमाणन निकायों को सूचीबद्ध करेगी, जो परीक्षण और प्रमाणन की लागत को कम करने के लिए समाज द्वारा निर्दिष्ट मानदंडों को पूरा करते हैं।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने बहु-राज्य सहकारी समितियां (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 के अंतर्गत एक राष्ट्रीय स्तर की बहु-राज्य सहकारी बीज समिति की स्थापना को मंजूरी दी

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बहु-राज्य सहकारी समितियां (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 के अंतर्गत एक राष्ट्रीय स्तर की बहु-राज्य सहकारी बीज समिति की स्थापना करने और उसे प्रोत्‍साहन देने के एक ऐतिहासिक निर्णय को मंजूरी दी है। यह समिति संबंधित मंत्रालयों, विशेष रूप से कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और राष्ट्रीय बीज निगम (एनएससी) की सहायता और उनकी योजनाओं व एजेंसियों के जरिए देश भर की विभिन्न सहकारी समितियों के माध्यम से ‘सम्‍पूर्ण सरकारी दृष्टिकोण’ का पालन करते हुए गुणवत्तापूर्ण बीजों के उत्पादन, खरीद, प्रसंस्करण, ब्रांडिंग, लेबलिंग, पैकेजिंग, भंडारण, विपणन और वितरण; महत्‍वपूर्ण अनुसंधान एवं विकास; और स्‍थानीय प्राकृतिक बीजों के संरक्षण व प्रोत्‍साहन के लिए एक प्रणाली विकसित करने के लिए एक शीर्ष संगठन के रूप में कार्य करेगी।

माननीय प्रधानमंत्री का कहना है कि सहकारी समितियों की ताकत का लाभ उठाने के हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए और उन्हें “सहकार-से-समृद्धि” के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए सफल और ऊर्जावान व्यावसायिक उद्यमों में बदला जाना चाहिए, क्योंकि सहकारी समितियों के पास देश के कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में ग्रामीण आर्थिक परिवर्तन की कुंजी मौजूद है।

पैक्स से एपेक्स : प्राथमिक से राष्ट्रीय स्तर की सहकारी समितियां जिनमें प्राथमिक समितियां, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के संघ और बहु राज्य सहकारी समितियां शामिल हैं, इसकी सदस्य बन सकती हैं। इसके उपनियमों के अनुसार, सोसायटी के बोर्ड में इन सभी सहकारी समितियों के निर्वाचित प्रतिनिधि होंगे।

राष्‍ट्रीय स्‍तर की यह बहु राज्‍य समिति संबंधित मंत्रालयों, विशेष रूप से कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और राष्ट्रीय बीज निगम (एनएससी) की सहायता और उनकी योजनाओं व एजेंसियों के जरिए देश भर की विभिन्न सहकारी समितियों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण बीजों के उत्पादन, खरीद, प्रसंस्करण, ब्रांडिंग, लेबलिंग, पैकेजिंग, भंडारण, विपणन और वितरण; महत्‍वपूर्ण अनुसंधान एवं विकास; और स्‍थानीय प्राकृतिक बीजों के संरक्षण और प्रोत्‍साहन के लिए एक प्रणाली विकसित करने के लिए एक शीर्ष संगठन के रूप में कार्य करेगी।

प्रस्तावित समिति सभी स्तरों की सहकारी समितियों के नेटवर्क का उपयोग करके बीज प्रतिस्थापन दर, किस्‍म प्रतिस्थापन दर को बढ़ाने, गुणवत्तापूर्ण बीज की खेती और बीज किस्म के परीक्षणों में किसानों की भूमिका सुनिश्चित करने, एकल ब्रांड नाम के साथ प्रमाणित बीजों के उत्पादन और वितरण में मदद करेगी। गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता से कृषि उत्पादकता बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा को मजबूत बनाने तथा किसानों की आय में भी वृद्धि करने में मदद मिलेगी। इसके सदस्यों को गुणवत्तापूर्ण बीजों के उत्पादन से बेहतर कीमतों की प्राप्ति, उच्च उपज वाली किस्म (एचवाईवी) के बीजों के उपयोग से फसलों के उच्च उत्पादन और समिति द्वारा उत्पन्न अधिशेष से वितरित लाभांश, दोनों से लाभ होगा।

बीज सहकारी समिति गुणवत्तापूर्ण बीज की खेती और बीज किस्म के परीक्षणों, एकल ब्रांड नाम के साथ प्रमाणित बीजों के उत्पादन और वितरण में किसानों की भूमिका सुनिश्चित करके एसआरआर, वीआरआर को बढ़ाने के लिए सभी प्रकार के सहकारी ढांचों और अन्य सभी साधनों को शामिल करेगी।

राष्ट्रीय स्तर की इस बीज सहकारी समिति के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन से देश में कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी। इससे कृषि और सहकारी क्षेत्र में रोजगार के अधिक अवसरों का सृजन होगा; आयातित बीजों पर निर्भरता कम होगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, “मेक इन इंडिया” को बढ़ावा मिलेगा और आत्मनिर्भर भारत का मार्ग प्रशस्‍त होगा।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने कोलकाता के जोका में स्थित राष्ट्रीय पेयजल, स्वच्छता एवं गुणवत्ता केंद्र का नाम बदलकर ‘डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय जल और स्वच्छता संस्थान (एसपीएम-निवास)’ किए जाने को कार्योत्तर मंजूरी दी

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने कोलकाता के जोका में स्थित राष्ट्रीय पेयजल, स्वच्छता एवं गुणवत्ता केंद्र का नाम बदलकर ‘डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय जल और स्वच्छता संस्थान (एसपीएम-निवास)’ किए जाने को कार्योत्तर मंजूरी दी है।

इस संस्थान को कोलकाता, पश्चिम बंगाल के जोका, डायमंड हार्बर रोड पर 8.72 एकड़ भूमि पर स्थापित किया गया है। इस संस्थान की परिकल्पना प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से जन स्वास्थ्य इंजीनियरिंग, पेयजल, स्वच्छता और साफ-सफाई के क्षेत्र में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में क्षमता विकसित करने वाले एक प्रमुख संस्थान के रूप में की गई है। इन क्षमताओं की परिकल्पना न केवल स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन के कार्यान्वयन में लगी फ्रंट-लाइन वर्कफोर्स के लिए की गई है, बल्कि ग्रामीण और शहरी दोनों स्तर के स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों के लिए भी की गई है। इसी अनुसार ट्रेनिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर, आरएंडडी ब्लॉक और एक आवासीय परिसर सहित उपयुक्त बुनियादी ढांचा विकसित किया गया है। इस संस्थान में प्रशिक्षण की सुविधा के लिए जल, स्वच्छता और साफ-सफाई (वॉश) प्रौद्योगिकियों के वर्किंग और लघु मॉडल भी स्थापित किए गए हैं।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी पश्चिम बंगाल के सबसे योग्य सपूतों में से एक और राष्ट्रीय एकता में अग्रणी, औद्योगीकरण के लिए प्रेरणा और एक प्रतिष्ठित विद्वान व शिक्षाविद थे। वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे कम उम्र के कुलपति भी थे। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम से इस संस्थान का नामकरण किया जाना तमाम हितधारकों को प्रेरित करेगा कि वे डॉ. मुखर्जी के ईमानदारी, अखंडता के मूल्यों को अपनाएं और संस्थान के कामकाज के लोकाचार में अपनी प्रतिबद्धता रखते हुए उन्हें सच्चा सम्मान दें। दिसंबर, 2022 में प्रधानमंत्री द्वारा इस संस्थान का उद्घाटन किया गया।

 

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