“भारत आने वाले वैभव अध्येता (फेलो) निश्चित रूप से मोदी सरकार के अंतर्गत पिछले नौ वर्षों में कई बदलावों विशेष रूप से वैश्विक नवाचार सूचकांक में भारत की स्थिति में एक लंबी छलांग को देखेंगे “: डॉ. जितेंद्र सिंह
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 24 जनवरी। केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रवासी भारतीय समग्र वैश्विक आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और वे उन देशों और समाजों में मूल्यवर्धन कर रहे हैं, हालांकि इसके साथ ही वे अपनी मातृभूमि से भी जुड़े हुए हैं।
उन्होंने कहा कि आज का भारत उन्हें अधिक अवसरों और काम में अधिक आसानी के साथ वापस बुला रहा है।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ), कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री, पहली वैश्विक भारतीय वैज्ञानिक (वीएआईबीएचएवी) अध्येता प्रस्ताव के परिणामों की घोषणा करने और वैभव कॉल के अगले चक्र के लॉन्च के लिए नई दिल्ली में एक समारोह को संबोधित कर रहे थे।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित और चिकित्सा (एसटीईएमएम) में हमारे भारतीय प्रवासी विशेष रूप से सामाजिक और विकासात्मक क्षेत्रों में।तकनीकी परिवर्तन लाकर और नवीन तरीकों से इसका उपयोग करके हमारे समाज और दुनिया की दिशा निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि “मैं 2017 में प्रवासी भारतीय दिवस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के अविस्मरणीय शब्दों को उद्धृत करना चाहूंगा जब उन्होंने कहा था कि ‘हमारा तो ख़ून का रिश्ता है, पासपोर्ट का नहीं,’ और वह एक वाक्यांश, मुझे लगता है उस पूरी विविधता को दर्शाता है। डॉ. सिंह ने आगे कहा कि “आज हमारा संबंध विदेशों में भारतीय मूल के 3 करोड़ 40 लाख से अधिक लोगों और अनिवासी भारतीयों के साथ है और यही हमें यहां एक साथ लाता है।”
वैभव के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि वैभव फेलो ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फिनलैंड, जापान, सिंगापुर, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन (यूके), संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) के शीर्ष संस्थानों से हैं और अगले 3 वर्षों के दौरान संयुक्त रूप से पहचानी गई समस्याओं पर काम करने के लिए इन्हें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भारतीय विज्ञानं संस्थान (आईआईएससी) आदि भारतीय संस्थानों से जोड़ा जाएगा। यह निश्चित रूप से आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में अनुसंधान क्षमता स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
केन्द्रीय मंत्री महोदय ने कहा कि “प्रतिष्ठित वैभव फेलो भारतीय शैक्षणिक संस्थानों के साथ नेटवर्क बनाएंगे और भारत सरकार के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के साथ तालमेल बिठाते हुए अत्याधुनिक अनुसंधान कार्यक्रमों का एक सहयोगी नेटवर्क बनाने का प्रयास करेंगे। फेलो दोनों देशों के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करेंगे और दोनों देशों के बीच सहयोगात्मक अनुसंधान में चिंता के क्षेत्रों को संबोधित करने का प्रयास करेंगे।”
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, “भारत आने वाले वैभव फेलो निश्चित रूप से मोदी सरकार के अंतर्गत पिछले नौ वर्षों में कई बदलावों विशेष रूप से वैश्विक नवाचार सूचकांक (ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स) में भारत की स्थिति में एक लंबी छलांग को देखेंगे। भारतीय वैज्ञानिक और शोधकर्ता कई विषयों में अत्याधुनिक खोजों और प्रगति में सबसे आगे रहे हैं। भारतीय दिमागों ने वैज्ञानिक समझ की सीमाओं को आगे बढ़ाया है और ऐसे नवाचार को बढ़ावा दिया है जो अंतरिक्ष अन्वेषण से लेकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक, जैव प्रौद्योगिकी से लेकर नैनो प्रौद्योगिकी तक के क्षेत्रों में समग्र रूप से मानवता को लाभ पहुंचाता है। उन्होंने कहा कि ये उपलब्धियाँ वैज्ञानिक प्रगति और तकनीकी नवाचार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को उजागर करती हैं। विभिन्न क्षेत्रों में देश की प्रगति सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और वैश्विक वैज्ञानिक प्रयासों में योगदान देने का आश्वासन देती हैं।”
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रोफेसर अभय करंदीकर ने कहा कि, चूंकि भारत एक विकासशील देश है और हमारे पास अभी भी कई वैज्ञानिक क्षेत्र जैसे कि नवीकरणीय ऊर्जा, अपशिष्ट से ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, साइबर भौतिक प्रणाली (साइबर फिजिकल सिस्टम), क्वांटम प्रौद्योगिकियां (क्वांटम टेक्नोलॉजीज), भविय के विनिर्माण (फ्यूचर मैन्युफैक्चरिंग), नीली अर्थव्यवस्था (ब्ल्यू इकॉनमी), वहनीय स्वास्थ्य देखभाल इत्यादि हैं जिन्हें और पुष्ट करने की आवश्यकता हैI उन्होंने जोर देकर कहा कि “हमारा यह मानना है कि अन्य देशों में काम करने वाले भारतीय प्रवासी अपने ज्ञान और अनुभवों से भारतीय शोधकर्ताओं के क्षितिज का विस्तार करने में सक्षम होंगे। वे अपनी अनूठी विचार प्रक्रिया से हमारे भारतीय शोधकर्ताओं की मदद और मार्गदर्शन कर भी सकते हैं।”
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि प्रवासी भारतीय प्रवासी भारतीय संकायों (फैकल्टी), शोधकर्ताओं और छात्रों के साथ भी जुड़ सकते हैं, जिससे उन्हें अनुसंधान, विकास और नवाचार के प्रति एक नया दृष्टिकोण मिल सके। उन्होंने कहा कि “आजकल, अनुसंधान मात्र संस्थानों की प्रयोगशालाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उद्योगों के सहयोग से नई प्रौद्योगिकियों, उत्पादों को विकसित करने के लिए भी आगे बढ़ रहा है। इसलिए, यह आवश्यक है कि हम सभी परिणाम-आधारित अनुसंधान के महत्व को समझें।”
“हम आशा करते हैं कि भारतीय संस्थान अनुसंधान, विकास और नवाचार पर सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाएंगे। प्रोफेसर करंदीकर ने बताया कि ऐसे मजबूत बंधन बनाने की आवश्यकता है जो फलदायी परिणामों और समाज के कल्याण के साथ लंबे समय तक चल सके।
भारत सरकार का विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), वैश्विक भारतीय वैज्ञानिक (वीएआईबीएचएवी) फेलोशिप कार्यक्रम लागू कर रहा है। इस प्रस्ताव (कॉल) के अंतर्गत कुल 302 आवेदन प्राप्त हुए जिनका मूल्यांकन संबंधित अनुसंधान क्षेत्रों में विशेषज्ञ समीक्षा समितियों (इवैल्यूएशन रिव्यू कमेटीज–ईआरसीएस) द्वारा किया गया। शीर्ष समिति द्वारा ईआरसी की अनुशंसाओं की समीक्षा की गई और 22 वैभव अध्येताओं और 2 प्रतिष्ठित वैभव अध्येताओं के लिए अनुशंसा की गई। वैभव फेलो सहयोग के लिए एक भारतीय संस्थान की पहचान करेंगे और अधिकतम 3 वर्षों के लिए एक वर्ष में दो महीने तक का समय वहां बिता सकते हैं।
इस प्रकार चिन्हित विशिष्ट वैभव अध्येता (फेलो) सहयोग के लिए एक भारतीय संस्थान की पहचान करेगा और जहां वह अधिकतम 3 वर्षों के लिए एक वर्ष में न्यूनतम एक सप्ताह और अधिकतम दो महीने बिता सकता है। विशिष्ट वैभव फेलो भारतीय शैक्षणिक संस्थानों के साथ नेटवर्क बनाएंगे और भारत सरकार के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के साथ समन्वयन करते हुए अत्याधुनिक अनुसंधान कार्यक्रमों का एक सहयोगी नेटवर्क बनाने का प्रयास करेंगे। ये फेलो दोनों देशों के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करने के साथ ही दोनों देशों के बीच सहयोगात्मक अनुसंधान के सम्बन्धित क्षेत्रों में कार्य करने का प्रयास भी करेंगे।
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