अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर की गिरफ्तारी पर मचा बवाल! NHRC की एंट्री, हरियाणा DGP को नोटिस – पूरा सिस्टम कटघरे में
जीजी न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली,21 मई । अशोका यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर की कथित “रहस्यमयी” गिरफ्तारी अब पूरे देश में सनसनी फैला चुकी है। मामला सिर्फ एक शिक्षक की गिरफ्तारी का नहीं, बल्कि संविधान, अभिव्यक्ति की आज़ादी और मानवाधिकारों की बुनियाद को चुनौती देने वाला बन गया है। अब इस मुद्दे पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने हरियाणा पुलिस के डीजीपी को नोटिस भेजकर पूरी रिपोर्ट तलब कर ली है।
मीडिया रिपोर्ट्स और यूनिवर्सिटी सूत्रों के अनुसार, प्रोफेसर को बीते सप्ताह अचानक पुलिस ने उनके निवास या परिसर से उठा लिया। न तो FIR की कॉपी दिखाई गई, न ही गिरफ्तारी का ठोस आधार। स्टाफ और छात्रों के बीच अफरा-तफरी मच गई।
कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रोफेसर की कुछ क्लासरूम टिप्पणियां और सोशल मीडिया पोस्ट सरकार या स्थानीय प्रशासन को नागवार गुज़री थीं। क्या यह गिरफ्तारी “विचार” पर वार थी? क्या प्रोफेसर की “बोलने की आज़ादी” ही उनकी सबसे बड़ी “गुनाह” बन गई?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस गिरफ्तारी को गंभीरता से लेते हुए हरियाणा के डीजीपी को नोटिस जारी किया है। आयोग ने पूछा है:
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गिरफ्तारी का आधार क्या था?
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किन धाराओं में मामला दर्ज किया गया?
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प्रोफेसर के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की गई या नहीं?
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क्या उन्हें वकील तक पहुंच दी गई?
अशोका यूनिवर्सिटी के सैकड़ों छात्र-छात्राओं और फैकल्टी मेंबर्स ने इस कार्रवाई के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कैंपस में मौन प्रदर्शन, ऑनलाइन कैंपेन और सोशल मीडिया पर #JusticeForProfessor ट्रेंड कर रहा है।
विपक्षी दलों ने इस गिरफ्तारी को ‘तानाशाही’ करार देते हुए हरियाणा सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने मांग की है कि इस पूरे मामले की न्यायिक जांच होनी चाहिए।
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क्या अब भारत में प्रोफेसर भी असहमति जताने से डरेंगे?
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क्या यह अभिव्यक्ति की आज़ादी पर ‘लाठी’ की चोट है?
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क्या हरियाणा प्रशासन अकादमिक आज़ादी को रौंद रहा है?
अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर की गिरफ्तारी अब सिर्फ एक क़ानूनी मामला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय बहस बन चुका है—कि क्या भारत में अब शिक्षा भी सत्ता के डर में जीएगी? NHRC की रिपोर्ट आने तक एक बात तय है: देश की निगाहें अब इस केस पर टिकी हैं।
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