महर्षि परिक्रमा-2 का तीसरा पड़ाव: ब्रह्मस्थान में गूंजे वैदिक मंत्र, 1331 पंडितों के रूद्राभिषेक से प्रतिध्वनित हुआ ‘शांति का संकल्प’!

ब्रह्मस्थान, जबलपुर | 22 अप्रैल 2025भारत के भौगोलिक केंद्र पर आज का दिन इतिहास में दर्ज हो गया। महर्षि परिक्रमा-2 के तीसरे चरण में साधकों का दल जब ब्रह्मस्थान (राजा बंगला) पहुँचा, तो समूचे क्षेत्र की हवाओं में मानो ध्यान, ज्ञान और दिव्यता की तरंगें फैल गईं। यह दिन केवल पूजन या प्रवचनों का नहीं, बल्कि वेदों की प्रत्यक्ष अनुभूति का था।

सुबह की शुरुआत वैदिक गुरु परंपरा पूजन, प्राणायाम और भावातीत ध्यान सिद्धि कार्यक्रम के साथ हुई। राजा बंगला का शांत वातावरण एक बार फिर ऊर्जा से भर उठा। साधकों की चेतना जैसे एक अलग ही आयाम में प्रविष्ट हो चुकी थी।

इसके बाद 9:30 बजे सभी परिक्रमा सदस्य सभागार में एकत्र हुए, जहां महर्षि विद्या पीठ के संस्थापक श्री अरविंद जी ने ब्रह्मस्थान की गरिमा, उसका रहस्य और उसका वैश्विक महत्व विस्तार से साझा किया।
उनकी वाणी में वह अग्नि थी, जो ह्रदयों में चेतना की लौ जला दे – उन्होंने बताया कि कैसे नित्य अतिरुद्राभिषेक, महर्षि विद्या पीठ की नींव और ब्रह्म स्थान की ऊर्जा मिलकर विश्व शांति की दिशा में अनोखा कार्य कर रहे हैं।

इसके बाद वह दृश्य आया जिसे देखकर सभी निर्वाक और अभिभूत रह गए – 1331 वैदिक पंडितों द्वारा सामूहिक रूप से किया गया “अतिरुद्राभिषेक”!
मंत्रोच्चारण, जलाभिषेक और ध्वनियों की कंपन ने वातावरण को दिव्यता से भर दिया। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे स्वयं देवताओं की उपस्थिति में यह अनुष्ठान संपन्न हो रहा हो।

इसके पश्चात सभी सदस्य ब्रह्मस्थान में स्थित पंच यज्ञ मंडपों की ओर बढ़े – श्री गणेश, विष्णु, शिव, सूर्य और वरुण यज्ञ मंडप – इन स्थलों पर ध्यान केंद्रित करते ही सभी को जैसे पंचतत्वों से संवाद होने लगा। यह दृश्य अध्यात्म की गहराइयों को छू जाने जैसा था।

दोपहर 3 बजे साधक पहुंचे महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय, जहां एक बार फिर वैदिक परंपरा पूजन से कार्यक्रम की शुरुआत हुई।
प्रो. मानवेन्द्र पांडेय जी ने भावातीत ध्यान की वैज्ञानिकता और पंचतत्वों की विस्तृत व्याख्या कर सभी को ज्ञान के सागर में उतारा।
श्री आर.एस. पटवारी जी ने महर्षि जी के विश्वशांति के संकल्प को दोहराते हुए एक बार फिर प्रेरणा की लहर दौड़ा दी।
प्रो. शशि कुमार ओझा ने भावभीनी शुभकामनाएं दीं और परिक्रमा के अगले चरण के लिए सभी को शुभाशीष दिया।

शाम को राजा बंगला के सभागार में भावातीत ध्यान सिद्धि कार्यक्रम के उपरांत “महर्षि अमृत प्रवाह” का श्रवण किया गया – विषय था “गुरुदेव की कृपा का फल”
फिर आया वो बहुप्रतीक्षित क्षण जब आर.एस. पटवारी जी ने महर्षि जी द्वारा बताए गए ज्ञान के 40 क्षेत्रों और उनके शरीर से संबंध को इतने स्पष्ट व सहज शब्दों में समझाया कि हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया।
प्रश्नोत्तर सत्र में भी एक दिव्य संतोष का अनुभव हुआ – हर उत्तर जैसे भीतर के संदेहों को शांति में बदलता गया।

यह केवल परिक्रमा नहीं, आध्यात्मिक युग का प्रवर्तन है। ब्रह्मस्थान की पावन भूमि पर आज जो ऊर्जा प्रवाहित हुई, वह केवल भारत नहीं, पूरे विश्व की चेतना को स्पर्श कर रही है।
महर्षि जी का यह दिव्य संकल्प आज पूर्णता की ओर अग्रसर है – और महर्षि परिक्रमा-2 इसकी जीवंत मिसाल बन चुकी है।

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