धारण करना ही धर्म है, जो सनातन का सार है !

कुमार राकेश
कुमार राकेश

प्रस्तुति -कुमार राकेश

एक राजा ने घोषणा की कि जो धर्म श्रेष्ठ होगा,
मैं उसे स्वीकार करूँगा और आगे बढ़ाने में मदद दूँगा.
अब तो उसके पास अपने धर्म की श्रेष्ठता का गुण गाते
एकसेएक विद्वान् आने लगे, जो दूसरे धर्मों का दोष गिनाते
और अपने धर्म की श्रेष्ठता बखानते।इससे यह तय न हो पाया कि आख़िर वह धर्म
कौन सा है, जिसे राजा अपनाये व प्रश्रय दे आगे बढ़ाये.
अनिर्णय की इस स्थिति से राजा बेहद दु:खी हुआ
और अधर्म में ही जीता रहा; लेकिन उसने
अपनी खोज ख़त्म नहीं की. अन्वेषण में जुटा रहा.

इसी तरह प्रतीक्षा में वर्षों बीत गये और राजा बूढा होने लगा.
अधर्म का जीवन उसे पीड़ा पहुँचाये, मनस्ताप दे.
आख़िर एक प्रसिद्ध संत से राजा की मुलाक़ात हुई ,उनसे अपनी समस्या का हल पूछा.
कहा,’मैं सर्वश्रेष्ठ धर्म की खोज में हूँ, पर मुझे वह नहीं मिल रहा.
आप ही कुछ मार्गदर्शन करें!

उस संत ने माथे पर बल डाल अचंभे से पूछा,’ सर्वश्रेष्ठ धर्म ?
क्या संसार में बहुत से धर्म होते हैं, जो श्रेष्ठ या अश्रेष्ठ की बात उठे?
धर्म तो एक ही है….सनातन -जो आदि से अनंत है ,पूर्ण है .

हाँ, अहंकार बेशक़ अनेक हो सकते हैं.
पर धर्म तो वही होता है, जिसे धारण किया जाये.
जहाँ व्यक्ति बिल्कुल निष्पक्ष होता है; क्योंकि पक्षपाती मन में धर्म हर्गिज़ नहीं हो सकता, वहाँ तो अहंकार का ही आग्रह होगा.’*

राजा ने संत की बातों से प्रभावित हो पूछा,
‘तो मैं फिर क्या करूँ? आप ही कुछ उपयुक्त मार्ग सुझायें.’

संत नदी की दिशा में जा रहा था, सो बोला,’आओ, नदी किनारे चलते हैं. वहीं आराम से समस्या सुलझायेंगे.’

नदी पर पहुँच संत बोला,’ पहले पार जाने के लिये किसी
सर्वश्रेष्ठ नाव का प्रबंध करो. पर देखना, नाव हर तरह से
मज़बूत और दिखने में सुंदर होनी चाहिए.’

उसके बाद एक से बढ़कर एक सुंदर नौकाएँ लायी गयीं.
पर संत उन सबमें कुछ न कुछ कमी बताकर नकारते रहे .
सुबह से शाम हो गयी और संत को कोई नाव ही न जँच सका।

इससे तंग आ भूखा प्यासा राजा बेतरह चिढ़ गया.
तुनकते बोला, ‘इनमें कोई भी नाव हमें आसानी से नदी पार करवा देगी.
यदि फिर भी नाव पसंद नहीं तो हम ख़ुद भी तो तैरकर नदी पार कर सकते हैं. इसमें मुश्क़िल क्या है? छोटी सी तो नदी है. पार करने में कितनी देर लगेगी!’

इस पर संत खिलखिलाकर हँस दिये.बोले -यही तो मैं तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता था।
भला धर्म की भी कोई नाव होती है? वह हदों में नहीं बँधता.
धर्म ख़ुद तैरकर पार करना होता है, स्वयं अपने उद्यम से.प्रयास से , अभ्यास से ..कोई किसी दूसरे को बिठाकर पार नहीं करा सकता.’

राजा को मुद्दे की बात समझ आ गयी कि –
*धर्म के नियमों और उसके तत्वों को धारण करना ही धर्म है.जिसके सारे तत्व सनातन में निहित है ।इसलिए विला वजह
दिमाग़ी कसरत में जुटे लोग आज सनातन धर्म की
बखिया उधेड़ने में लगे हैं और उसी सहारे पार होना चाहते हैं;
जबकि धर्म की मान्य संहिता को आचरण में लाये बिना,
उसके उसूलों को अमली जामा पहनाये बिना,
सिवा मौखिक ज़बानदराजी या कसरत के,
किसी महत्त्व के मुकाम तक नहीं पहुँच सकते।
आप किसी भी धर्म में हो , कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. परंतु उसको ईमानदारी से व्यवहार में लाना ज़रूरी है -वो भी विश्व बंधुत्व के लिए व मानवता के लिए -जो सिर्फ़ सनातन का सार है । क्योंकि धर्म सिर्फ़ सनातन है बाक़ी सब पंथ है ।

प्रस्तुति -कुमार राकेश

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