इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर से पहली बार व्यापार शुरू, भारतीय अर्थव्यवस्था को होगा बहुत फायदा

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 3जुलाई। देश में तीसरी बार नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री शपथ ले चुके हैं और कुछ दिनों में उनके कार्यकाल का एक महीना भी पूरा हो जाएगा. इसके बाद से वैदेशिक और रणनीतिक मामलों में भी काफी कुछ बदलाव देखने को मिल रहा है. हाल में रूस ने दो ट्रेन कोयला भारत के लिए भेजा है. वो भी पहली बार आइएनएसटीसी यानी कि इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर का उपयोग करते हुए भेजा है, इस रास्ते में कुछ हिस्सा ईरान का भी शामिल है. इसमें ट्रेन के साथ सड़क मार्ग का भी उपयोग होता है.

उबाल पर विश्व की राजनीति
पिछले दो सालों से देखें तो खासकर पूरे विश्व के राजनीति में काफी कुछ बदला है. पूरे विश्व ने यूक्रेन-रूस और हमास एवं इजरायल के युद्ध को देखा है. दक्षिण चीन सागर में भी चीन का बढ़ता प्रभाव भी किसी से छिपा नहीं है. चीन पूरे दक्षिण चीन सागर के इलाके पर खुद का दावा करता रहा है. अभी कुछ समय पहले ही स्वेज नहर में एक जहाज फंस गया था, उसके बाद हजारों करोड़ का आर्थिक नुकसान विश्व के कई देशों को हुआ. पिछले कई साल से कई देश एक अलग रूट चार्ट वैकल्पिक तौर पर खोजने में लगे थे, उसके लिए कई देश काम कर रहे थे.

अगर किसी तरह से युद्ध या कोई अन्य आपदा आ जाती है तो उसके लिए एक वैकल्पिक मार्ग तैयार हो जाए. चीन प्रखर रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर काम कर रहा है. वो एक वैकल्पिक मार्ग खोज लेना चाहता है, जिससे कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार और संबंध दोनों को जारी रख सके. अभी G-20 देशों की बैठक हुई, उसमें भी भारत ने ये कोशिश की गई कि अमेरिका, सउदी अरब, यूरोप और भारत मिलकर एक वैकल्पिक मार्ग खोजने के लिए काम करें.

पिछले कुछ समय में एक वैकल्पिक मार्ग खोजने की दिशा में भारत भी काम कर रहा है, जिसका बहुत ही सामरिक महत्व है. हाल में, भारत को चाबहार बंदरगाह का उपयोग और रख-रखाव 10 वर्षों तक करने के लिए ईरान ने मंजूरी दी है. अगले दस सालों तक ये पोर्ट भारत की निगरानी में रहेगा.

रास्ता हुआ है आसान
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर की बात हुई है, इसका एक कारण चाबहार बंदरगाह पर भारत की निगरानी और एक तरह से स्वामित्व होने के कारण अमलीजामा पहनाया गया. ये मुख्य मार्ग से अलग एक तरह का वैकल्पिक मार्ग है. इससे पहले भारत, रूस के साथ या फिर सेंट्रल एशिया देशों के साथ जो व्यापार होता था वो ज्यादातर स्वेज नहर के माध्यम से करता था. फिलहाल जो कॉरिडोर बना है और एक वैकल्पिक रास्ता तैयार किया गया है, उससे रास्ता काफी आसान हुआ है. स्वेज नहर के माध्यम से पहले व्यापारिक वस्तुओं को लाने में 45 दिनों का समय लगता था, अब वो मात्र 20 दिनों के अंदर ही मुंबई पोर्ट तक आसानी से पहुंच पा रहा है.

आने वाले समय में भारत, रूस और ईरान तीनों को सीधे तौर पर आर्थिक रूप से फायदा होने वाला है. इसके साथ ही कॉरिडोर सेंट पीटर्सबर्ग, रूस से होते हुए सेंट्रल एशिया, बाल्टिक स्टेट सहित कुल 11- 12 देशों को छूता हुआ गुजरता है. वहां से सामान की आवाजाही हो रही है. भारत ने एक आसान और सुगम रास्ता खोज लिया है, जिसमें किसी प्रकार का खतरा भी नहीं है. इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी बेहतर प्रभाव पड़ेगा.

इस पहल से एक तो समय की बचत होगी और दूसरी ओर माल की ढुलाई में खर्च होने वाले पैसे की भी बचत होगी. साथ ही, एक वैकल्पिक रास्ता खोजने के बाद एक माकूल जवाब देने की भी कोशिश की गई है.

अमेरिकी दबाव में नहीं है भारत
अमेरिका शुरु से चाहता है कि भारत से रूस की नजदीकियां कभी भी ना हो. भारत किसी भी देश की धमकी से अलग हटकर अपनी विदेश नीति पर काम कर रहा है. पहले रूस से गैस खरीदी और अब साथ एक कॉरिडोर के लिए भी काम किया. पिछले कुछ समय से रूस और यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के साथ ही अमेरिका के साथ रूस की तल्खियां बढ़ी है.

इजरायल और हमास के बीच युद्ध में ईरान का अलग प्रकार का एटिट्यूड रहा है. अमेरिका की नजर में ईरान का जो सामारिक महत्व है, उससे भी तल्खी बढ़ी है. ऐसे में भारत जिसके अमेरिका से साथ बहुत ही अच्छे संबंध हैं, वो नहीं चाहता कि उनमें खलल आए, लेकिन वह किसी भी तरह की धमकी को भी नहीं सहेगा.

अमेरिका भी भारत का एक रणनीतिक पार्टनर है. चीन को रोकने के लिए भारत, अमेरिका के साथ संबंधों को ठीक रखता है. भारत के लिए इस वक्त का समय एक तरह तनी रस्सी पर चलना है. भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर विश्व के कई देशों के बीच में संतुलन बनाने की कोशिश की है. भारत, अमेरिका और रूस दोनों देशों के साथ संंबंधों को ठीक रखने की कोशिश कर रहा है.

अमेरिका भारत के ऊपर लगातार दबाव बनाता आया है कि ईरान से पारस्परिक रिश्तों को खत्म कर लेना चाहिए. रूस के साथ पेट्रोलियम और गैस तथा कोयला का जो व्यापार भारत कर रहा है, उसमें भी अमेरिका समस्या खड़ा करते आया है. अमेरिका ने रूस के ऊपर आर्थिक प्रतिबंध भी लगाया है. रूस के साथ जो भारत का संबंध है उसको कम करने की अमेरिका की ओर से नसीहत दी गई है.

भारत की साफ है विदेश रणनीति
भारत ने साफ तौर पर कहा है कि राष्ट्रीय हितों को साधने के लिए रूस के साथ रिश्ते जारी रहेंगे. इस मामले में अमेरिका को भी समझाने की कोशिश की गई, लेकिन अमेरिका भी चाहता है कि भारत उसकी कठपुतली बन कर रहे जबकि इससे भारत ने साफ तौर पर इंकार कर दिया है. भारत में एक सशक्त सरकार है, देश में फिर से नरेंद्र मोदी की सरकार आ गई है. एस.जयशंकर भारत के विदेश मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे हैं.अमेरिका के लाख प्रयास डालने के बाद भी भारत ने अपना रुख नहीं बदला है. अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट ब्लिंकन तो खालिस्तानी आतंकी पन्नू के मामले में भी भारत पर दबाव बना चुके हैं, वह अल्पसंख्यकों के ऊपर अत्याचार होने की बात कर चुके हैं.

इसका माकूल जवाब भारत ने अमेरिका को दिया है. उत्तर में एस जयशंकर ने कहा कि अमेरिका को अपने यहां के मामलों को देखना चाहिए , ये सभी मुद्दे भारत के हैं और भारत अपने यहां के मुद्दे को ठीक से हैंडल करना जानता है चाहें उसमें सीएए या फिर यूसीसी की बात ही क्यों ना हो. भारत, अमेरिका के किसी प्रकार के भी दबाव में नहीं आ रहा है. रूस भारत का एक महत्वपूर्ण दोस्त है. रूस, भारत की हर मुसीबत के साथ खड़ा रहा है. इसीलिए, रूस के इस संकट के समय में भारत उसके साथ है. ऐसे में अमेरिका को किसी प्रकार की दिक्कत होना गलत बात है.भारतीय विदेश नीति अमेरिका और रूस के मामले में संतुलन कर के चलने की है.

आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं
एस जयशंकर ने अमेरिका को साफ शब्दों में ये बता दिया है कि भारत किसी के धमकाने और दबाव में फंसने वाला नहीं है. भारत की विदेश नीति को पिछले कुछ सालों में देखे तो जब से नरेंद्र मोदी की सरकार है उस समय से अमेरिका के दबाव में भारत कभी तक नहीं आया है. उससे पहले भी कुछ हद तक उनके प्रेशर में आना पड़ता था, लेकिन जब भी राष्ट्रीय मुद्दों और हितों का मामला सामने आता था तो उस समय भी अमेरिका के दबाव में भारत नहीं आता था. मनमोहन सिंह की सरकार में भी अमेरिका ने ईरान ने रिश्तों को खत्म करने की बात कही थी उस समय भी रिश्तों को खत्म नहीं किया गया.

अभी की सरकार तो पहले से और भी ज्यादा मजबूत है. इस समय की सरकार के कारण अमेरिका के किसी भी प्रेशर में आने वाले नहीं है. पिछले कई सालों से ये देखते आ रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत की नेतृत्व करने की क्षमता बढ़ते जा रही है जिस कारण अमेरिका को मिर्ची लग रही है क्योंकि कुछ सालों में जहां भारत की साख बढ़ी है तो अमेरिका की साख अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गिरी है.

साभार- एवीबीपी

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