वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर अपने टैरिफ (आयात शुल्क) फैसले पर यू-टर्न लेते हुए 90 दिनों के लिए राहत देने की घोषणा की है। यह फैसला उस समय आया है जब अमेरिकी बॉन्ड बाजार में भारी गिरावट दर्ज की गई और अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंका तेज़ हो गई।
ट्रम्प अक्सर दावा करते हैं कि “व्यापार युद्ध जीतना आसान होता है”, लेकिन बुधवार को उनके फैसले ने संकेत दिया कि शायद वे निवेशकों की चिंता को नजरअंदाज नहीं कर सकते। चीन को छोड़कर अधिकांश देशों पर लगने वाले सबसे कड़े टैरिफ को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है।
इस घोषणा के बाद अमेरिकी शेयर बाजारों में तेजी देखने को मिली। डॉलर में आई गिरावट और बॉन्ड यील्ड में उछाल के बाद निवेशकों ने कुछ राहत महसूस की। बुधवार को 10-वर्षीय ट्रेज़री यील्ड 4.47% तक पहुंच गया, जो 2001 के बाद तीन दिनों की सबसे तेज़ बढ़त थी। विशेषज्ञों का मानना है कि टैरिफ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है।
इस निर्णय से एक ओर प्रशासन की अस्पष्ट रणनीति भी उजागर हुई। वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कुछ ही समय पहले निवेशकों को भरोसा दिलाया था कि “अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है” और बॉन्ड बाज़ार में आई गिरावट को सामान्य व्यापार बताया था। फिर सवाल उठता है—अगर सब कुछ सामान्य है तो टैरिफ में राहत क्यों?
जहां एक ओर कुछ देशों को राहत दी गई है, वहीं चीन के साथ टैरिफ युद्ध और तेज़ हो गया है। ट्रम्प ने चीन से आयातित वस्तुओं पर कुल 125% तक टैरिफ बढ़ा दिया है, जबकि चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर 84% तक शुल्क और कड़े नियामक प्रतिबंध लगा दिए हैं। यह दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं के बीच दशकों में सबसे बड़ा टकराव माना जा रहा है।
टैरिफ के कारण कंपनियों में निवेश को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। डेल्टा एयरलाइंस ने पूंजी निवेश में कटौती की घोषणा की है, वहीं वॉलमार्ट जैसी बड़ी कंपनियों ने भविष्य की आय के अनुमान वापस ले लिए हैं। जेपी मॉर्गन के सीईओ जेमी डाइमोन ने भी अब मंदी की आशंका जताई है। यूरोपीय संघ ने भी अमेरिकी उत्पादों पर €22 अरब के बदले टैरिफ लागू कर दिए हैं।
ट्रेज़री बॉन्ड की मांग बनी रहेगी, लेकिन सवाल यह है—किस कीमत पर? ट्रम्प की अनिश्चित और आक्रामक व्यापार नीतियां अमेरिकी उधारी की लागत को बढ़ा सकती हैं। इससे वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर भी असर पड़ने की आशंका है, यहां तक कि जापान ने वैश्विक स्थिरता के लिए एक अंतरराष्ट्रीय प्रयास का आह्वान किया है—एक ऐसी भूमिका जिसे सामान्यतः अमेरिका निभाता रहा है।
अमेरिका पर विश्वास करना निवेशकों की पुरानी आदत रही है, लेकिन ट्रम्प की टैरिफ नीति ने उस भरोसे को झटका दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अब महज 90 दिनों की राहत नहीं, बल्कि पूरी नीति में बदलाव की आवश्यकता है।
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