ट्रंप की ऑटो टैरिफ नीति: यूरोपीय और एशियाई सहयोगियों के लिए क्या होंगे प्रभाव?

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,28 मार्च।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 25% ऑटो टैरिफ लगाने के फैसले ने वैश्विक ऑटोमोबाइल उद्योग में भूचाल ला दिया है। इस नीति का सबसे अधिक प्रभाव यूरोपीय और जापानी ऑटोमोबाइल निर्माताओं पर पड़ने वाला है। यह फैसला सिर्फ एक आर्थिक रणनीति नहीं, बल्कि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों—खासकर यूरोप और एशिया—के बीच व्यापार तनाव को और तेज करने वाला कदम है। इन टैरिफ का असर सिर्फ ऑटोमोबाइल कंपनियों के आर्थिक घाटे तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, कूटनीतिक संबंधों और व्यापक आर्थिक परिदृश्य को भी प्रभावित करेगा।

टैरिफ की घोषणा के तुरंत बाद यूरोपीय ऑटोमोबाइल शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गईमर्सिडीज-बेंज, बीएमडब्ल्यू, फॉक्सवैगन, पोर्शे एजी, कॉन्टिनेंटल, स्टेलेंटिस, वोल्वो कार और एस्टन मार्टिन जैसी बड़ी कंपनियों की बाजार कीमतों में $14 बिलियन से अधिक की गिरावट देखी गई। यह दर्शाता है कि अमेरिकी व्यापार नीतियां किस हद तक वैश्विक ऑटोमोबाइल उद्योग को प्रभावित कर सकती हैं

बाजार में आई इस गिरावट ने निवेशकों की चिंताओं को बढ़ा दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे समय में अमेरिकी बाजार में यूरोपीय ऑटोमोबाइल कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता खतरे में पड़ सकती है। 2024 में अमेरिका में बिकने वाली लगभग 50% नई यात्री गाड़ियां विदेशी निर्माताओं द्वारा बनाई गई हैं। ऐसे में, ट्रंप के टैरिफ के कारण विदेशी ब्रांडों की बिक्री घट सकती है, उत्पादन लागत बढ़ सकती है, और इससे हजारों नौकरियां भी प्रभावित हो सकती हैं

इस नीति के राजनीतिक प्रभाव भी गंभीर हैं। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन ने इन टैरिफ पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है और संकेत दिया है कि यूरोप, अमेरिकी निर्यात के खिलाफ जवाबी कार्रवाई कर सकता है। अगर यूरोपीय संघ ने प्रतिशोधी व्यापार नीतियां अपनाईं, तो यह एक लंबे व्यापार युद्ध को जन्म दे सकता है, जिससे दोनों अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान होगा

इस स्थिति में ब्रिटेन की स्थिति बेहद असमंजस वाली है। लंदन ट्रंप की व्यापार संबंधी चिंताओं को समझता है, लेकिन वह खुद को जर्मनी और जापान जैसी अर्थव्यवस्थाओं के साथ दंडित किए जाने के खिलाफ बता रहा है। ब्रेक्सिट के बाद अमेरिका के साथ व्यापार संबंध बनाए रखना ब्रिटेन के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन उसे अपने यूरोपीय सहयोगियों का भी समर्थन करना होगा। ऐसे में ब्रिटेन के लिए संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है

ट्रंप प्रशासन ने इन टैरिफ को अमेरिकी निर्माण क्षेत्र को मजबूत करने और सालाना $100 बिलियन का कर राजस्व उत्पन्न करने वाला कदम बताया है। लेकिन कई अर्थशास्त्री इस तर्क को आर्थिक रूप से त्रुटिपूर्ण मानते हैं।

  • टैरिफ से अल्पकालिक रूप से अमेरिकी निर्माताओं को लाभ हो सकता है, लेकिन लंबी अवधि में यह उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ा सकता है और प्रतिस्पर्धा कम कर सकता है

  • जब कंपनियां अमेरिकी उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त लागत डालेंगी, तो वाहनों की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे मांग में गिरावट आ सकती है।

  • इसके अलावा, अमेरिकी ऑटो निर्माता भी इस नीति से अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि वे यूरोप और एशिया से आयातित कल-पुर्जों पर निर्भर रहते हैं। इन हिस्सों पर लगने वाले टैरिफ से उत्पादन लागत बढ़ सकती है और आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है

ट्रंप की ऑटो टैरिफ नीति व्यापक व्यापार संरक्षणवाद (protectionism) की ओर एक कदम है, जो वैश्विक व्यापारिक परिदृश्य को बदल सकता है।

  • यदि अन्य देश भी इसी तरह के संरक्षणवादी कदम उठाते हैं, तो वैश्विक व्यापार तंत्र खंडित हो सकता है

  • इससे अंतरराष्ट्रीय सहयोग में कमी आ सकती है, खासकर जलवायु परिवर्तन और तकनीकी नवाचार जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में।

  • वर्तमान में, ऑटोमोबाइल उद्योग इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) और स्थायी प्रथाओं की ओर बढ़ रहा है। यदि देश आपसी व्यापार विवादों में उलझे रहते हैं, तो यह इन क्षेत्रों में विकास की गति को धीमा कर सकता है

ट्रंप के ऑटो टैरिफ केवल आर्थिक नहीं, बल्कि वैश्विक व्यापार और कूटनीति को प्रभावित करने वाला एक बड़ा कदम हैं।

  • यूरोपीय और एशियाई ऑटो निर्माताओं को बड़े आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है

  • अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच व्यापार युद्ध छिड़ने की संभावना बढ़ गई है

  • ब्रिटेन के लिए यह नीति व्यापारिक संतुलन बनाए रखने की एक कठिन चुनौती पेश करती है

  • अमेरिकी उपभोक्ताओं को वाहन खरीदने के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ सकती है

  • वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होने से अमेरिकी उद्योग भी अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान उठा सकते हैं

जैसे-जैसे यह व्यापार विवाद आगे बढ़ेगा, नीति-निर्माताओं के लिए राष्ट्रवादी व्यापार रणनीतियों और वैश्विक सहयोग के बीच संतुलन बनाना जरूरी होगा। दुनिया तेजी से आपस में जुड़ रही है, ऐसे में संवाद और सहयोग ही आर्थिक और वैश्विक चुनौतियों का समाधान हो सकते हैं

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