केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने एमओईएस के तहत स्वायत्त संस्थानों की पहली संयुक्त सोसायटी बैठक की अध्यक्षता की

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 9 नवंबर।केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के स्वायत्त संस्थानों (आईआईटीएम, आईएनसीओआईएस, एनसीईएसएस, एनसीपीओआर और एनआईओटी) की पहली संयुक्त समिति (सोसायटी) की बैठक बुलाई और “एकीकरण तथा “संपूर्ण सरकार” दृष्टिकोण के साथ काम करने के लिए “जड़ता (साइलो)” को तोड़ने का आह्वान किया।

सभी पांच स्वायत्त निकाय समितियों अर्थात् – भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस), राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र (एनसीईएसएस), राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर) और राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एकल सोसायटी में मिला दिया गया है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह कदम दोहराव से बचने और साइलो में काम करने के लिए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश के अनुरूप है और अधिकतम कार्य सिद्धि प्राप्त करने के लिए अधिक एकीकृत होकर कार्य करने के लक्ष्य से उठाया गया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमन्त्री मोदी का न केवल विज्ञान के प्रति झुकाव है, बल्कि वे पिछले 7-8 वर्षों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित पहलों और परियोजनाओं को समर्थन और बढ़ावा देने में भी आगे आ रहे हैं।

सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र सिंह के अलावा सदस्यों, डॉ. एम. रविचंद्रन, सचिव, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, श्री एस. सोमनाथ, सचिव, अंतरिक्ष विभाग, डॉ. एन कलैसेल्वी, महानिदेशक, सीएसआईआर और सचिव डीएसआईआर, डॉ. के. राधाकृष्णन, पूर्व अध्यक्ष, इसरो, बेंगलुरु, डॉ. पी.एस. गोयल, पूर्व सचिव, एमओईएस, डॉ. हर्ष के गुप्ता, पूर्व सचिव, महासागर विकास विभाग (डीओडी) / पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस), डॉ. शैलेश नायक, पूर्व सचिव, एमओईएस और निदेशक, एनआईएएस, बेंगलुरु, डॉ. जीए रामदास, निदेशक, एनआईओटी, डॉ. टी श्रीनिवास कुमार, निदेशक, आईएनसीओआईएस, डॉ. आर. कृष्णन, निदेशक, आईआईटीएम, प्रो. ज्योतिरंजन एस रे, निदेशक, एनसेस, डॉ. थंबन मेलोथ, निदेशक, एनसीपीओआर ने आज के विचार- विमर्श में भाग लिया।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस अवसर पर कहा कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने “समुद्री निगरानी” की धारणा को एक ऐसे नए स्तर पर ले लिया है, जहां सुरक्षा एजेंसियों के साथ महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान सूचनाएं (इनपुट) साझा करने के लिए अंतरिक्ष अनुप्रयोगों का भी उपयोग किया जा रहा है। मंत्री महोदय ने बताया कि ओशनसैट 26 नवंबर, 2022 को अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित (लॉन्च) किया जाएगा और नासा – इसरो रडार सिस्टम की स्थापना एक उन्नत चरण में है। उन्होंने रेडियो नौवहन प्रणाली (नेविगेशन सिस्टम) के साथ-साथ स्थिति की जानकारी के प्रमुख स्रोतों में से एक के रूप में वैश्विक नौवहन उपग्रह प्रणाली (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम- जीएनएसएस) के अधिक से अधिक उपयोग की जानकारी दी, जो पोत की स्थिति, उसके यात्रा कार्यक्रम और गति के बारे में आस-पास के समुद्री पोतों (जहाजों) और भूमि-आधारित पोत यातायात सेवाओं (वीटीएस) के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान करती हैं ।

मानवयुक्त पनडुब्बी (सबमर्सिबल) – मत्स्य (एमएटीएसवाईए) 6000 के डिजाइन और विकास की समीक्षा करते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान– पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एनआईओटी – एमओईएस) को अनुसंधान पोत ओआरवी सागर निधि का उपयोग करके 2024 की पहली तिमाही के दौरान मानवयुक्त पनडुब्बी के उथले पानी के परीक्षण के लिए सभी परीक्षणों को पूरा करना है । उन्होंने बताया कि चल रही प्रगति के आधार पर, यह आशा की जाती है कि 2023 की तीसरी तिमाही तक डीएनवी अनुमोदित इंटरफेस प्रक्रियाओं का पालन करते हुए उप-घटक एकीकरण और परीक्षण के सभी दीर्घकालिक प्रमुख घटक प्राप्त हो जाएंगे ।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, समुद्र वैज्ञानिक समुदाय के लाभ के लिए, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के गहन महासागर अभियान (डीप ओशन मिशन) के समुद्रयान कार्यक्रम के अंतर्गत, गहरे पानी में मानवयुक्त पनडुब्बी (सबमर्सिबल) – मत्स्य (एमएटीएसवाईए) 6000 को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एक स्वायत्त संस्थान राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) द्वारा स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित किया गया है। बैटरी चालित सबमर्सिबल मत्स्य 6000 में तीन व्यक्तियों को 6000 मीटर पानी की गहराई तक ले जाने और 12 घंटे की सामान्य सहनशीलता (एंड्यूरेन्स) अवधि और 96 घंटे के लिए आपातकालीन सहायता के साथ वैज्ञानिक अन्वेषण करने की क्षमता होगी। मानवयुक्त सबमर्सिबल में जैविक नमूने, पर्यावास (हैबिटैट) विश्लेषण और समुद्री खनिज अन्वेषण के लिए इन – सीटू प्रयोगों द्वारा चरम वातावरण में जीवन पर अनुसंधान के लिए वैज्ञानिकों को गहरे समुद्र के क्षेत्रों में ले जाने के अलग ही लाभ हैं ।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओइस) सचिव, डॉ. एम रविचंद्र ने कहा कि गहराई से निर्धारित (रेटेड)  घटक कस्टम डिजाइन में जटिलता (कॉम्प्लेक्सिटी) को देखते हुए, अन्य उप-प्रणालियों की प्राप्ति और परीक्षण एवं उप-घटकों की प्राप्ति के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ दीर्घकालिक लीड वाली मदों के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए थे। विक्रम साराभाई अनुसन्धान केंद्र (वीएसएससी) – इसरो (आईएसआरओ) के साथ 6000 मीटर संचालन क्षमता के लिए टाइटेनियम मिश्र धातु क्षेत्र का कार्य  प्रगति पर है । अनुमोदन के लिए डीएनवी को एक डिज़ाइन दस्तावेज़ प्रस्तुत किया गया है और मिश्र धातु निगम (मिधानी – एमआईडीएचएएनआई) में पिंड (इनगोट) सामग्री का प्रसंस्करण किया जा रहा है और एल एंड टी (लार्सन एंड टुब्रो) में इसकी गढ़ाई (फोर्जिंग) की योजना बनाई गई है। द्रव नोदन प्रणाली केंद्र (लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर – एलपीएससी) – भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान सन्गठन (इसरो) में इलेक्ट्रॉन बीम वेल्डिंग सुविधा वृद्धि का कार्य पूरा किया जा रहा है।

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