समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 22 जुलाई: उत्तर प्रदेश में बंद हो रहे सरकारी स्कूलों के मुद्दे को आम आदमी पार्टी (AAP) ने राष्ट्रीय बहस का विषय बना दिया है। AAP के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने शिक्षा के इस संकट को लेकर संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन राज्यसभा में नियम 267 के तहत नोटिस दिया है। उनका स्पष्ट कहना है कि सरकार अगर शिक्षा में सुधार चाहती है, तो स्कूल बंद करना नहीं, बल्कि उन्हें मज़बूत करना होगा।
सड़क से संसद तक AAP की लड़ाई
संजय सिंह ने सोशल मीडिया पर भी यह दोहराया कि आम आदमी पार्टी सड़क से लेकर संसद तक इस लड़ाई को जारी रखेगी। उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों की बंदी शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है और यह संविधान के अनुच्छेद 21A के साथ-साथ 2009 के शिक्षा अधिकार अधिनियम के भी खिलाफ है। उनका कहना है कि यह मुद्दा केवल राज्य का नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय चिंता है।
‘भविष्य की शिक्षा’ बनाम जमीनी हकीकत
संजय सिंह ने यह भी रेखांकित किया कि सरकार बार-बार भविष्य के लिए डिजिटल शिक्षा और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की बात करती है, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि 90 हजार से ज्यादा सरकारी स्कूल देशभर में बंद हो चुके हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में ही 25 हजार विद्यालय बंद किए जा चुके हैं और लगभग 5 हजार को बंद करने का आदेश जारी हो चुका है।
ग्रामीण, दलित और आदिवासी समुदाय के बच्चों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है, जो अब शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। उन्होंने चेताया कि कई बच्चों को तीन से चार किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ता है, जो खासकर प्राथमिक शिक्षा के लिए चुनौतीपूर्ण है।
शिक्षा में ‘सुधार’ या ‘संविधान से खिलवाड़’?
राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने यह भी बताया कि यूपी में 1.93 लाख से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली हैं। हजारों माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में भी शिक्षकों की भारी कमी है। कई स्कूल ऐसे हैं जहां एक ही शिक्षक पूरी संस्था चला रहा है, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना लगभग असंभव हो गया है।
उनका मानना है कि प्रशासनिक दक्षता के नाम पर अगर स्कूलों को बंद किया जाएगा, तो यह शिक्षा के संवैधानिक वादे को पूरी तरह नष्ट कर देगा। उन्होंने सरकार से इस नीति पर तुरंत पुनर्विचार करने की अपील की।
शिक्षा के अधिकार की सुरक्षा जरूरी
संजय सिंह ने नोटिस के अंत में यह अपील की कि संसद की कार्यवाही को स्थगित कर इस मुद्दे पर तत्काल चर्चा कराई जाए, क्योंकि यह सिर्फ एक राज्य का नहीं, बल्कि पूरे देश की शिक्षा प्रणाली के भविष्य का सवाल है।
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