यूएसएआईडी: वामपंथी इकोसिस्टम का पोषक और वैश्विक राजनीति का छिपा चेहरा

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,3 मार्च।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में आर्थिक सहायता के नाम पर वैचारिक घुसपैठ कोई नई बात नहीं है। इसी क्रम में, यूएसएआईडी (United States Agency for International Development) का नाम अक्सर चर्चा में रहता है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी द्वारा स्थापित यह एजेंसी स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाली संस्था के रूप में जानी जाती है, लेकिन इसकी वैचारिक प्रतिबद्धता और झुकाव डेमोक्रेटिक पार्टी और वामपंथी संगठनों की ओर स्पष्ट रूप से झलकता है

यूएसएआईडी और वैश्विक वामपंथी नैरेटिव

यूएसएआईडी की स्थापना 1961 में शीत युद्ध के दौरान सोवियत प्रभाव को कमजोर करने और दुनिया भर में अमेरिकी राजनीतिक नैरेटिव को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। तब से लेकर अब तक, यह एजेंसी विभिन्न देशों में लोकतंत्र, मानवाधिकार, जलवायु परिवर्तन, और महिला स्वास्थ्य के नाम पर कई वामपंथी संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करती रही है

अमेरिका में रिपब्लिकन सरकारें भी सत्ता में आईं, लेकिन रिचर्ड निक्सन, गेराल्ड फोर्ड, रोनाल्ड रीगन, जॉर्ज बुश (सीनियर और जूनियर) जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने भी इस संस्था की कार्यप्रणाली में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया। हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप जब राष्ट्रपति बने, तो उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि अमेरिका में सरकार रिपब्लिकन की हो सकती है, लेकिन सत्ता तंत्र डेमोक्रेट्स के प्रभाव में चलता है। यही कारण था कि यूएसएआईडी पर पहली बार कड़ी निगरानी रखी गई और इसकी भूमिका को चुनौती दी गई।

भारत और यूएसएआईडी: एक छिपा एजेंडा?

भारत में यूएसएआईडी के वित्तीय सहयोग से चलने वाले कई एनजीओ, मीडिया हाउस, और शोध संस्थान कार्यरत हैं, जो अक्सर वामपंथी विचारधारा को बढ़ावा देते हुए भाजपा और अन्य राष्ट्रवादी दलों के खिलाफ एक समानांतर नैरेटिव गढ़ने का काम करते हैं

2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूएसएआईडी ने 30 से अधिक देशों के 6,200 पत्रकारों, 707 मीडिया आउटलेट्स और 279 मीडिया केंद्रित एनजीओ को आर्थिक सहायता प्रदान की। इससे स्पष्ट होता है कि यह संस्था केवल मानवीय सहायता तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक स्तर पर मीडिया और राजनीतिक नैरेटिव को प्रभावित करने में भी सक्रिय भूमिका निभा रही है

सीईपीपीएस और भारत में विदेशी हस्तक्षेप

यूएसएआईडी ने सीईपीपीएस (The Consortium for Elections and Political Process Strengthening) को भारत में दाता एजेंसी के रूप में नामित किया था। यह एजेंसी एनडीआई (National Democratic Institute), आईआरआई (International Republican Institute), और आईएफईएस (International Foundation for Electoral Systems) के साथ मिलकर दुनिया भर में लोकतंत्र को मजबूत बनाने और चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने का काम करती है।

लेकिन, जब भारत सरकार ने यूएसएआईडी की गतिविधियों पर जांच बिठाई, तो सीईपीपीएस की वेबसाइट और सोशल मीडिया अकाउंट अचानक हटा दिए गए। यह सवाल उठता है कि यदि यह संगठन पारदर्शिता और लोकतंत्र की मजबूती के लिए काम कर रहे थे, तो उन्हें अपनी ऑनलाइन उपस्थिति क्यों मिटानी पड़ी?

जॉर्ज सोरोस और वैश्विक वामपंथी गठजोड़

यूएसएआईडी को अमेरिकी अरबपति और उदारवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक जॉर्ज सोरोस का भी अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त है। सोरोस कई वैश्विक संगठनों के माध्यम से राष्ट्रवादी सरकारों और नेताओं के खिलाफ अभियान चलाने के लिए कुख्यात हैं

2023 में सीईपीपीएस द्वारा प्रकाशित भारत के नक्शे में लद्दाख और कश्मीर को शामिल नहीं किया गया था। यह एक स्पष्ट संकेत था कि कैसे विदेशी वित्तपोषित संगठन भारत की अखंडता और संप्रभुता पर सवाल उठाने की कोशिश कर रहे हैं

निष्कर्ष: सतर्क रहने की जरूरत

भारत में विदेशी फंडिंग वाले एनजीओ और मीडिया संस्थानों की भूमिका को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। यह जरूरी है कि देश के नागरिक और सरकार ऐसी वैश्विक संस्थाओं के छिपे एजेंडे को पहचानें और भारत की संप्रभुता और लोकतंत्र की रक्षा करें

इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने हाल ही में वाशिंगटन में सीपीएसी 2025 सम्मेलन में यह स्पष्ट किया था कि

“वामपंथी वैश्विक स्तर पर घबराए हुए हैं। ट्रंप की संभावित जीत उनके लिए एक बड़ा झटका होगी, क्योंकि अब राष्ट्रवादी ताकतें एकजुट होकर काम कर रही हैं। जब क्लिंटन और टोनी ब्लेयर ने वामपंथी उदारवादी नेटवर्क खड़ा किया, तो उन्हें प्रगतिशील नेता कहा गया, लेकिन जब ट्रंप, मोदी, और मेलोनी एक साथ आते हैं, तो उन्हें लोकतंत्र के लिए खतरा बताया जाता है।”

यह बयान स्पष्ट करता है कि वैश्विक राजनीति में राष्ट्रवादी और वामपंथी ताकतों के बीच संघर्ष केवल एक देश तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक रणनीतिक लड़ाई है। भारत को भी अपने हितों की रक्षा करने के लिए इन वैश्विक चालों से सतर्क रहना होगा

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