समग्र समाचार सेवा
नैनीताल,13 अप्रैल।
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सोमवार को सचिव गृह और आईजी जेल दोनों द्वारा जारी आदेशों जिसमें वरिष्ठ जेल अधीक्षक और जेल अधीक्षक का अतिरिक्त प्रभार प्रदेश के पुलिस अधिकारियों को देना जिनके पास कानून व्यवस्था संभालने का भी जिम्मा है को दरकिनार कर दिया है।
मुख्य न्यायाधिश आरएस चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की पीठ ने राज्य सरकार को इन पदों को या तो सीधी भर्ती के माध्यम से या पदोन्नति के माध्यम से भरने का भी निर्देश दिया है।
इसमें कहा गया है कि चूंकि नियम तदर्थ पदोन्नति को अस्थायी उपायों के रूप में अनुमति देते हैं, इसलिए इसे “नियमित पदोन्नति होने तक राज्य द्वारा प्रदान किया जा सकता है” । इसमें कहा गया है कि यह पूरी कवायद अधिमानत एक महीने के भीतर पूरी हो जानी चाहिए ।
यह निर्देश फैसलों को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद लिया गया है । इसमें गृह सचिव नितेश कुमार झा एवं आईजी (जेल) एपी अंशुमन द्वारा जारी आदेश उन दो आदेशों को चुनौती दी गई थी, जिसमें पुलिस अधिकारियों को अतिरिक्त प्रभार देने के साथ-साथ अधिकारियों को अपने पद का कार्यभार संभालने का निर्देश दिया गया था। याचिका में कहा गया था कि यह कदम जेलों और पुलिस विभाग के बीच की रेखा को प्रभावी ढंग से धुंधला कर देता है जो मूल रूप से होता है । याचियों के अनुसार, “पुलिस विभाग को जेलों का प्रभार सौंपना स्वतंत्र और निष्पक्ष विचार के मौलिक सिद्धांत के खिलाफ जाता है क्योंकि पुलिस विभाग द्वारा आरोपियों पर अतिरिक्त न्यायिक दबाव डाला जा सकता है क्योंकि वह ही मामले की जांच करते हैं और न्यायिक हिरासत के मामले संभालते हैं।
गृह विभाग के आदेशों को दरकिनार करते हुए अदालत ने कहा कि यह आदेश संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी ‘ नेल्सन मंडेला नियमों ‘ और विभिन्न समितियों की सिफारिशों के खिलाफ जाते हैं।
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