नीडोनॉमिक्स के माध्यम से बिरसा मुंडा की विरासत का पुनर्जीवन सतत विकसित भारत हेतु आवश्यक – प्रो. एम. एम. गोयल
रांची (झारखंड), 22 अगस्त: “नीडोनॉमिक्स के माध्यम से बिरसा मुंडा की विरासत का पुनर्जीवन एक सतत और मानवीय विकसित भारत प्राप्त करने के लिए आवश्यक है,” यह कहना था नीडोनॉमिक्स के प्रणेता और पूर्व कुलपति प्रो. मदन मोहन गोयल का। वे सरला बिड़ला विश्वविद्यालय, रांची के प्रबंधन संकाय द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन “बिरसा मुंडा की दृष्टि और आदिवासी ज्ञान: समावेशी, नैतिक और सतत विकास के लिए बहु-विषयी अंतर्दृष्टि” को संबोधित कर रहे थे।सम्मेलन का शुभारंभ स्वागत भाषण से हुआ, जिसमें सम्मेलन समन्वयक डा. विदुषी शर्मा ने प्रो. एम. एम. गोयल का परिचय कराया।प्रो. गोयल ने कहा कि धरती अब्बा बिरसा मुंडा शोषण के प्रतिरोध, प्रकृति के प्रति श्रद्धा और सामुदायिक न्याय के प्रतीक थे—ये मूल्य नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट (एनएसटी) से गहराई से जुड़े हैं।प्रो. गोयल ने स्पष्ट किया कि गीता और अनु-गीता की बुद्धि में निहित नीडोनॉमिक्स, “ग्रीडोनॉमिक्स” (लालच की अर्थव्यवस्था) का प्रतिरोध है, जो नैतिक उपभोग, सतत उत्पादन और न्याय-उन्मुख शासन का समर्थन करता है।उन्होंने बताया कि गीता-प्रेरित नीडोनॉमिक्स तीन स्तंभों—अनुसंधान, लचीलापन और नवीनीकरण—पर आधारित है और ‘योगक्षेमं वहाम्यहम्’ श्लोक से प्रेरित नीडो-लाइफस्टाइल अपनाने का आह्वान करता है, जो नैतिक, अहिंसक और पर्यावरण-हितैषी जीवनशैली को बढ़ावा देता है।प्रो. गोयल ने जोर देकर कहा कि विकसित भारत 2047 की ओर मार्च को केवल सकल घरेलू उत्पाद या अवसंरचना से नहीं मापा जाना चाहिए, बल्कि वंचितों के लिए न्याय, प्राकृतिक संसाधनों की स्थिरता और श्रम की गरिमा से भी आंका जाना चाहिए।प्रो. गोयल ने अपने वक्तव्य का समापन करते हुए कहा “बिरसा मुंडा का सम्मान करने का अर्थ है उनकी भावना को नीडोनॉमिक्स के माध्यम से पुनर्जीवित करना, जो उन मूल्यों को आज के समय में क्रियान्वित बनाता है और एक सतत, न्यायपूर्ण तथा मानवीय विकसित भारत की स्वदेशी राह प्रशस्त करता है।
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